गाँव की गलियों में मीरा की बातें हमेशा चलती थीं। कभी उसके नई साड़ी की चर्चा, तो कभी उसके पति के
शहर से आए पैसे की। पर असली मज़ा तब आता, जब मोहल्ले की औरतें चौपाल पर जुटतीं और मीरा के
पीछे नमक मिर्च लगाकर कहानियाँ बनातीं।
एक दिन मीरा ने अपनी बेटी की पढ़ाई को लेकर कुछ ज़मीन बेच दी। बात बस इतनी थी कि उसने अपनी
बेटी के लिए एक अच्छा स्कूल चुना था। पर बात गाँव में ऐसे फैली जैसे आग में घी पड़ गया हो।
सुना है, मीरा के किसी शहर वाले से चक्कर हैं, शोभा ने कहा, आँखों में चमक लिए।
अरे हाँ! तभी तो पैसे की कोई चिंता नहीं, और देखो ना, बेटी को भी शहर भेज रही है, राधा ने तुरंत नमक
मिर्च छिड़क दिया।
उधर मीरा सब जानती थी। उसे बुरा तो लगता, पर वो मुस्कुरा कर रह जाती।
कुछ दिन बाद, गाँव में एक सामाजिक कार्यकर्ता आया। उसने गाँव की औरतों को आत्मनिर्भर बनने के लिए
मीरा की कहानी सुनाई। एक माँ जिसने अपने सपनों को नहीं, अपनी बेटी के सपनों को चुना।
अब वही औरतें, जो उसके खिलाफ कहानियाँ बनाती थीं, तालियाँ बजा रही थीं।
शोभा चुपचाप मीरा के पास आई और बोली, माफ़ कर देना बहन, हमने तो बस बातों में नमक मिर्च लगा दी
थी।
मीरा ने मुस्कुराकर कहा, नमक मिर्च स्वाद बढ़ाता है, पर कभी-कभी ज़िंदगी कड़वी भी कर देता है।
गाँव में उस दिन सिर्फ मीरा की बात नहीं हुई, उसकी हिम्मत की भी चर्चा हुई।
स्वरचित…
रजनी रियाल