उमा के मन-मस्तिष्क में विचित्र झंझावात द्वन्द मचाए हुए था।उसके अपनत्व का यह परिणाम हो सकता है,यह उसकी कल्पना से परे था।उमा के मन में यादों की धुॅंध गहराने लगी। अतीत बाढ़ के पानी की तरह हर हद को तोड़कर उसके दिलो-दिमाग पर हावी होने लगा।उमा और नीना का वर्षों पुरानी दोस्ती का रिश्ता आज खंड-खंड होकर बिखर गया। रिश्तों की डोर को टूटने-बिखरने से बचाने की उसने काफी कोशिशें की, परन्तु नाकामयाब ही रही।
उमा ने नीना को हमेशा अपनी छोटी बहन के समान माना।उसके सुख-दुख में निस्वार्थ भाव से खड़ी रही।जब भी नीना कोई परेशानी में घिरती,तो उमा बारिश की फुहार बनकर उसके दर्द पर मरहम लगाती।इस क्रम में कभी-कभी उसके बच्चे और पति भी उपेक्षित हो जाते। कभी-कभी उसके पति झल्लाते हुए कहते -“उमा! हवन करते हुए हाथ जलाने की तुम्हारी आदत तुम्हें ही सदमा दे देगी।
जमाना बहुत स्वार्थी हैं।जबतक व्यक्ति का अपना स्वार्थ सिद्ध होता है,तभी तक अपनेपन का ढोंग रचता है।स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर उसे मुॅंह मोड़ते भी देर नहीं लगती!”
उमा पति की बातों से असहमति जताते हुए कहती -“मेरी दोस्त नीना ऐसी नहीं है!हाॅं!उसकी आर्थिक स्थिति जरूर कुछ कमजोर है।हमारी थोड़ी -सी मदद से उसके बच्चों की जिंदगी सॅंवर सकती है!”
समय के साथ उमा के बच्चे पढ़ -लिखकर विदेश फुर्र हो गए।अब उमा दिल खोलकर नीना की मदद करने लगी।उमा नीना के बच्चों में अपने बच्चों की छवि देखने लगी। खासकर नीना का बेटा पवन से उसे विशेष लगाव था। नीना भी उसे दोस्त कम बड़ी बहन ज्यादा मानती थी।कुछ दिनों से शीला उमा और नीना के पड़ोस में रहने आ गई थी।
वह भी अपनी चिकनी-चुपड़ी बात से दोनों को दोस्त बना चुकी थी।उन दोनों की दोनों की गहरी दोस्ती शीला की ऑंखों में खटकती थी।वह साधारण -सी बात को भी नमक-मिर्च लगाकर उन दोनों की दोस्ती में नफ़रत के बीज बोने लगी। धीरे-धीरे एक-दूसरे के प्रति दोनों के मन में कड़वाहट भरने लगी।
नीना के बेटे पवन को सरकारी नौकरी लग गई।इस खुशी में नीना ने घर में पूजा रखी थी।पूजा समाप्ति पर औरतों ने उमा से कहा -” बहन जी!आप धन्य हो।अगर आपने नहीं मदद की होती,तो नीना के बच्चे काबिल नहीं बनते!”
उमा ने हॅंसते हुए कहा -“अरे नहीं! अगर मेरी मदद से भी बच्चे नहीं काबिल बनते ,तो मैं क्या कर लेती?समाज में एक-दूसरे की मदद करनी ही चाहिए।”
शीला खामोशी से उनकी बातों को सुन रही थी।अगले दिन उसने बातों में नमक-मिर्च लगाते हुए कहा -“नीना बहन!कभी दूसरों से मदद नहीं लेनी चाहिए।कल उमा बहन ढिंढोरा पीटकर सबको कह रही थी कि मेरी मदद से ही नीना के बच्चों की जिंदगी सॅंवरी है,वरना ये दर-ब-दर की ठोकरें खाते रहते।”
नीना ने चुपचाप शीला की बातों को सुन लिया, परन्तु एक फाॅंस उसके दिल में जरूर चुभ गई। धीरे-धीरे शीला छोटी-छोटी बातों में नमक-मिर्च लगाकर उमा और नीना के रिश्तों में जहर घोलने लगी,परिणामस्वरुप दोनों के रिश्तों में दरार आ गई।जिस पवन को उमा ने बेटे के समान प्यार किया,उसी की शादी का आमंत्रण न देकर नीना ने उसके दिल को छलनी -छलनी कर डाला। सोचते-सोचते उमा की ऑंखों से ऑंसू की बूॅंदें ढुलक पड़ीं।
उमा के पति ने उसे चेतना से झकझोरते हुए कहा -“उमा! गीता में कहा गया है कि मनुष्य को फल की चिन्ता किए वगैर बस अपना कर्म करते रहना चाहिए ।
ऑंसू पोंछते हुए सहमति में उमा सिर हिलाती है।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)