समाज में परिवर्तन होता रहता है। अक्सर हम अपने आसपास हो रहे बदलावों को मूक होकर देखते रहते हैं। देखना एक तरीके से सही भी है क्योंकि परिवर्तन होना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। फिर प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही निजी समस्याओं में भी घिरा होता है तो वह समाज की समस्याओं में दखल देने से बचता ही है किंतु कभी-कभी कुछ घटनाएं हमें झंझोड़ देती हैं। सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि हर बात को मौन स्वीकृति दे देना भी हानिकारक हो सकता है क्योंकि समाज का ही हिस्सा है हम, उससे पृथक नहीं हैं।
पिछले दिनों हुए श्रद्धा हत्याकांड ने कई प्रश्न खड़े कर दिए तो कई प्रश्नों के उत्तर भी दे दिए। हमेशा से ही नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी के विचारों, उसूलों, नियमों को दकियानूसी बता कर खुद को आधुनिक व ज्यादा समझदार जताती आई है। यह सही है कि हमेशा नई पीढ़ी गलत नहीं होती है तो यह भी सही है कि हमेशा नई पीढ़ी सही भी नहीं होती है। सामाजिक वर्जनाओं को, बंधनों को तोड़ने में उन्हें वीरता नज़र आती है। लेकिन वह यह नहीं समझती कि यह सब नियम हमारी ही सुरक्षा करने का काम करते हैं। हम अपने चारों ओर बने सुरक्षा घेरे को तोड़कर कैसे अक्लमंद कहला सकते हैं।
यदि आप सोच रहे हैं कि मैं लिव इन रिलेशन के बारे में बात कर रही हूं तो आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। मेरे अनुसार लिव इन रिलेशन को भारतीय कानून ने मान्यता देकर बिल्कुल सही नहीं किया है।
हमेशा ऐसा दिखाया जाता है कि माता-पिता संतान के दुश्मन हैं और सरकार या कानून या सामाजिक संस्थाएं बड़ी हितैषी हैं। जबकि ऐसा कैसे हो सकता है जिसने जन्म दिया है वह माता-पिता अपनी चीज़ (यानी संतान को) खंरोच भी नहीं आने दे सकते हैं इसलिए ही वह रोक-टोक लगाते हैं।
प्रेम विवाह भी गलत तो नहीं है लेकिन उसके साइड इफेक्ट से भी मां-बाप घबराते हैं इसलिए बच्चों को रोकते टोकते हैं और कोशिश करते हैं कि वे उनकी इच्छा अनुसार ही शादी ब्याह करें। जब भी आप किसी के प्रेम में होंगे तो जाहिर सी बात है कि आकर्षण की पट्टी आपकी आंखों पर बंधी होगी और आप अपने भावी जीवनसाथी के दुर्गुणों को अनदेखा करेंगे जबकि माता-पिता आपके लिए जीवन साथी चुनते वक्त उसकी पूरी जानकारी लेते हैं। वैसे भी जब आप किसी व्यक्ति से जोड़ते हैं तो स्वत: ही उसके पूरे परिवार से आपका रिश्ता बन जाता है। तो वह परिवार क्या वैसा है जिस तरह के वातावरण में आप सहज महसूस कर सकें। माता पिता आपकी इसी सुविधा का ध्यान रखते हैं तो वो ग़लत क्या करते हैं।
मैं यह नहीं कहती कि प्रेम विवाह करना गलत है लेकिन यदि उसमें आपके माता-पिता की भी रजामंदी हो तब ही प्रेम विवाह सही है। यह कहना कि मां-बाप को आप के मामले में बोलने का क्या अधिकार है या निर्णय लेने का क्या अधिकार है , पूर्णता गलत है। एक वही हैं जिन्हें यह अधिकार है, एक वही हैं जिन्होंने हमें सुरक्षित रखने के लिए, हमारे सुखों के लिए अनेकों त्याग किए हैं, तो उनका हम पर हम से भी पहले अधिकार है।
हां ऐसे परिवार जो विघटित हों या माता-पिता में से कोई भी स्वयं ही दिग्भ्रमित हो या रिश्तो के मूल्यों को ना समझता हो उन अपवाद स्थितियों की बात अलग है।
अब रही बात लिव इन रिलेशन की तो इसमें किसी भी लड़की को क्या फायदा नजर आता है मेरी समझ से परे है। किसी भी पराए लड़के के साथ बिना किसी बंधन में उसे बांधे रहकर तो वह उसके लिए ही सब कुछ सुविधाजनक बना रही हैं। खुद को उसके लिए वस्तु बना देती हैं जिसका वह जब चाहे उपभोग करें और जब मन भर जाए तो अपनी जिंदगी से बड़ी आसानी से बाहर कर दें।
अगर बाहर कर दें तो फिर भी अच्छा है लेकिन आफताब जैसे किसी से यदि पाला पड़ गया तो अंजाम श्रद्धा सा ही होगा ।क्योंकि आप खुद को उस से जोड़ तो रही हो लेकिन समाज से भी खुद को तोड़े ले रही हो। यदि समाज साथ खड़ा हो माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची इत्यादि सभी रिश्तेदारों की दखल जिंदगी में हो तो आप कभी 35 टुकड़ों में नहीं बंटेगी यह तो तय है।
क्या यह बेहतर नहीं होगा कि समाज को साथ में लेकर सफलता की सीढ़ियां चढ़ी जाएं। सफर कुछ खट्टा-मीठा और तीखा जरूर होगा, लेकिन कड़वा नहीं होगा।
स्वरचित द्वारा
खुशबू पुरी