आज दुबारा मनीषा के पापा का फ़ोन आया था …पुष्पा ! तुमने कुछ सोचा …. संजू से बात की क्या?
नहीं जी …. बस देविका से थोड़ा ज़िक्र किया था पर उसकी बातों से ऐसा लगा कि वो इस हक़ में नहीं कि मनीषा की छोटी बहन से संजू की शादी हो ….. आपको याद है ना मनीष के लिए जब देविका ने अपनी छोटी बहन से शादी की बात कही थी तो मनीष ने खुद ही कह दिया था कि एक घर में दो बहनें नहीं आनी चाहिए । इसलिए आज उसी बात को दोहरा रही थी।
हाँ….. मनीष ने तो केवल बहाना बनाया था । देविका के व्यवहार को देखकर, भला कैसे उसकी छोटी बहन को लाने का साहस करते ? वो तो शुक्र है कि मनीष ने खुद ही बात सँभाल ली थी, और हमें बुरा बनने से बचा लिया ।
पर मनीषा ने तो पूरे घर- परिवार, रिश्तेदारी में कितना बढ़िया नाम कमाया है । उसकी बहन भी बहुत ही मिलनसार है …. क्या करें ?
पुष्पा! एक बार संजू से तो बात कर लो ।
अजी …. संजू तो मान जाएगा .…. पर देविका ज़रूर अड़ंगा लगाएगी । चलो …. देखेंगे उसे भी ।
अपने तीसरे सबसे छोटे बेटे संजीव की शादी के बारे में बात करते हुए दोनों पति- पत्नी राकेश जी और पुष्पा सो गए । अगले दिन सुबह जब दोनों बहुएँ देविका और मनीषा रसोई में नाश्ते की तैयारियों में व्यस्त थी तो राकेश जी और पुष्पा ने दोनों बेटों मोहित और मनीष को बुलाकर मनीषा के पापा द्वारा भेजे रिश्ते की बातचीत की ।
मोहित, तुम क्या कहते हो? अच्छी रिश्तेदारी है…. देखी-भाली लड़की है । आजकल नए लोगों से रिश्ता जोड़ना भी ख़तरे से ख़ाली नहीं रहा ।
हाँ माँ…. यही बात मैं सोच रहा हूँ । मेरे हिसाब से तो हाँ कह दें। घर- परिवार संजोकर चलने वाले लोग हैं । क्यों मनीष?
मैं इस बारे में कुछ नहीं कहूँगा । आप सब बड़े और अनुभवी हैं जो परिवार के हित में हो , वो ही फ़ैसला कर लेना । संजू से भी पूछ लें ।
अरे…. उसने तो पहले ही कह रखा है कि उसे हमारा फ़ैसला मंज़ूर होगा …. उसकी तरफ़ से कोई चिंता नहीं है ।
तो ठीक है…. कल मैं फ़ोन करके हाँ कह दूँगा ।
अगले दिन राकेश जी ने दूसरी बहू मनीषा के पिता को अपने छोटे बेटे के रिश्ते की हाँ कह दी । पुष्पा ने दोनों बेटों को कह दिया था कि वे अपनी – अपनी पत्नियों को अपने तरीक़े से इस रिश्ते की जानकारी दे दें । पुष्पा को पता था कि देविका ज़रूर थोड़ी नाराज़गी ज़ाहिर करेगी पर मोहित ने पता नहीं, कैसे उसे अपने तरीक़े से समझाया कि वह सास से बोली —-
चलो माँ जी , संजू को तो इस बात से कोई आपत्ति नहीं कि दो बहनें एक घर में नहीं होनी चाहिए । अच्छा है मनीषा और मोना की तो मौज हो गई ।
ये तो सब संजोग की बात होती है देविका….. वैसे तुम तीनों ही बहनों की तरह रहना ।
तीन दिन बाद घर लौटे संजू को जब इस रिश्ते की जानकारी मिली तो उसने माँ- बाप के रिश्ते को सहर्ष स्वीकार कर लिया । राकेश जी और पुष्पा को तसल्ली हुई कि बेटे को उनके फ़ैसले पर कोई आपत्ति नहीं है । दोनों ही परिवारों में सगाई की तैयारियाँ होने लगी । पर सगाई के दिन शाम को घर वापसी पर देविका ने रो-रोकर पूरा घर सिर पर उठा लिया—-
जब शादी से पहले ही मेरे साथ परायों सा व्यवहार करने लगी दोनों बहनें …..तो शादी के बाद मेरी घर में क्या कदर रहेगी । बड़े बुजुर्ग सही कहते हैं कि एक घर में दो बहनें नहीं ब्याहनी चाहिए । अपने घर- परिवार को टूटने से बचाने के लिए मनीष ने तो समझदारी दिखाई थी पर संजू की शादी इस घर को बर्बाद करेगी माँ जी , आप लिखवा कर रख लो …..
क्या हुआ देविका! ऐसा क्या कर दिया उन लोगों ने ?
बात यह हुई थी कि जब सगाई की रस्म के लिए राकेश जी का परिवार मनीषा के मायके गया तो मनीषा की मामी ने मनीषा को इशारे से अंदर बुलाया, जहाँ मोना पहले से ही बैठी हुई थी । मनीषा को इस तरह बुलाने से देविका ने अपमानित महसूस किया और उसे लगा कि मनीषा की तो दोनों तरफ़ पूछ बढ़ गई और वह अलग-थलग पड़ गई ।बस उसने घर पहुँचते ही बखेड़ा शुरू कर दिया । मनीषा ने जेठानी को समझाने की बहुत कोशिश की —-
नहीं दीदी…..आपको ग़लतफ़हमी हुई है,दरअसल मामी जी सिर्फ़ यह पूछ रही थी कि शगुन के लिफ़ाफ़े में वे अपनी तरफ़ से कितने रुपये डालें ?
मुझे बेवकूफ समझती हो क्या मनीषा? अगर तुम्हारे मायके वाले मुझे तुम्हारी जैसी मानते तो ये छोटी सी बात मेरे सामने ही पूछ लेते । असल में मैं अकेली पड़ गई, तुम्हारे से तो यहाँ भी पूछ-पूछकर काम होगा और वहाँ भी …… संजू! तुम तो छोटे थे पर पूछो मनीष से कि किस कारण से उसने मेरी छोटी बहन से शादी करने से मना कर दिया था ?
देविका…… बहू तुम बड़ी हो, छोटी सी बात को इतनी हवा नहीं देनी चाहिए । अरे , मनीषा के मम्मी- पापा ने तो कोई भेद वाली बात नहीं की तुम दोनों में …… वो तो बस मामी ने पूछने के लिए अलग बुला लिया । इस तरह नफ़रत की दीवार खड़ी नहीं करते बेटा!
घर के एक-एक आदमी ने देविका को समझाने की कोशिश की पर उसने इस बात का पीछा नहीं छोड़ा । वह जब भी संजू को देखती ….. छींटाकशी करने से बाज नहीं आती थी । धीरे-धीरे संजू को लगने लगा कि बड़ी भाभी के साथ सचमुच अन्याय हो रहा है । मनीषा भाभी चालाक है ….चुप रहकर अच्छी बहू का दिखावा करके पूरे घर को अपनी मुट्ठी में क़ैद कर रखा है जबकि बड़ी भाभी सीधी भोली और स्पष्ट वक्ता हैं , इसी कारण सबकी बुरी बन जाती हैं । बस एक दिन संजू ने कह दिया—-
माँ…..बहुत सोचने पर मुझे भी यही लगता है कि दो बहनें एक घर में नहीं आनी चाहिए । मनीष भाई ने एकदम सही फ़ैसला किया था ।
ये क्या कह रहा है? दूसरे आदमी की भी इज़्ज़त है । हम इंकार नहीं करेंगे । जो कहना चाहता है….. खुद कहेगा , हम तो इस तरह दूसरे को बेइज्जत नहीं करेंगे ।
कई दिन तो मनीषा चुप रही कि शायद मामला दब जाएगा पर जिस दिन संजू ने खुले तौर पर इस शादी के खिलाफ बोल दिया उस दिन मनीषा ने अपनी मम्मी से इस बात का ज़िक्र कर दिया था । दो दिन बाद ही मनीषा के माता-पिता आए और उन्होंने भी इसे साधारण सी ग़लतफ़हमी बताकर माफ़ी माँगी पर क़िस्मत को शायद यह रिश्ता जोड़कर इसी तरह तोड़ना था । कुल मिलाकर सगाई टूट गई । संजू के लिए दो ही महीने बाद राकेश जी के पुराने दोस्त की बेटी का रिश्ता आया हालाँकि माता-पिता ने ग़ुस्से में संजू से कह दिया था कि अब वे किसी रिश्ते की हामी नहीं भरेंगे…. जो करना होगा, खुद कर लेना पर माँ-बाप की नाराज़गी तो पानी का बुलबुला होती है , जिसे दूर होने में समय नहीं लगता । ठीक वैसा ही यहाँ हुआ, जब बेटे का रिश्ता आया तो राकेश जी और पुष्पा को फ़ैसला लेना पड़ा तथा निधि के साथ संजू का रिश्ता तय हो गया । धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ और निधि संजू की पत्नी के रूप में नए परिवार की सदस्य बन गई । शुरू के दो/तीन महीने तो निधि ने सबको जानने पहचानने की कोशिश की पर उसके बाद धीरे-धीरे उसका झुकाव मनीषा की तरफ़ हो गया । संजू जब भी निधि के मुँह से केवल मनीषा की बड़ाइयाँ सुनता तो कहता—-
निधि! तुम अभी नई-नई इस घर में आई हो । तुम्हारे लिए बड़ी भाभी तथा छोटी भाभी दोनों बराबर होनी चाहिए ।
मेरे लिए दोनों बराबर हैं पर जब बड़ी भाभी मुझसे केवल देवरानी की तरह व्यवहार करेंगी, हर बात में तेरा- मेरा करेंगी, मेरा काम बाँटकर ही अपने हिस्से का काम करेंगी और दूसरी तरफ़ मनीषा भाभी छोटी बहन की तरह मिलजुल कर चलेंगी, तो मेरे मन में भी तो उनके लिए वैसे ही भाव जन्म लेंगे ना ।
धीरे-धीरे मनीषा और निधि में इतना अच्छा तालमेल बैठ गया कि उन्हें देखकर कोई कह नहीं सकता था कि वे सगी बहनें नहीं बल्कि देवरानी- जेठानी हैं । अपनी पत्नी के मुँह से मनीषा की बातें सुनकर अक्सर संजू सोचता था कि शायद उसने निर्णय लेने में बहुत जल्दबाज़ी कर दी थी । वह अपने माता-पिता और मनीषा भाभी से माफ़ी माँगना चाहता था । एक दिन उसने अपने जीवन की उस घटना का ज़िक्र अपनी पत्नी निधि से किया—-
तुमने तरह किसी निर्दोष का दिल दुखाकर बहुत बुरा किया है संजीव….. अगर सचमुच तुम इस भार से मुक्त होना चाहते हो तो माँ- पापा, मनीषा भाभी और उनके मम्मी- पापा से माफ़ी माँग लो वरना किसी न किसी कारण तुम बेचैन ही रहोगे ।
निधि के समझाने पर संजू ने अपने माता-पिता और मनीषा से तो माफ़ी माँगी ही ….. निधि के कहने पर , निधि और मनीषा के साथ उसके मायके भी गया । वहाँ जाने पर निधि ने कहा—-
आँटी- अंकल ! मेरी क़िस्मत में शायद मनीषा दीदी का प्यार और आपकी किस्मत में एक ओर बेटी थी , इसलिए तो क़िस्मत ने इस तरह मिलाया । आप प्लीज़ इन्हें माफ़ कर दीजिए ।
आज तक ग़ुस्सा और दुख था बेटी …… पर तुम्हें देखकर अब कोई मलाल नहीं है । मोना अपने घर में सुखी है बस हमें बहुत तसल्ली है ।
घर लौटते समय संजू को ऐसा लग रहा था मानो दिल पर कोई बड़ा पत्थर रखा था जिसके उतर जाने पर वह बहुत हल्का महसूस कर रहा था ।
लेखिका : करुणा मलिक