मम्मी इतनी सुबह से उठकर क्या खटर पटर कर रही हो….. आराम से सोती क्यों नहीं हो ….?? मायके आई बिटिया स्वरा ने माँ सुगंधा से कहा ……..अरे तू सो ना भाई….. मुझे काम करने दे …… 12:00 बजे तक समधन जी लोग आ जाएंगी….. सारा काम कैसे होगा….?
सुगंधा ने भी तुरंत जवाब दे ही डाला…..
हालांकि वो जानती थी बेटी है…. चाहती है माँ आराम करें ……पर सब लोग आराम ही करेंगे तो काम कैसे होगा……. ये सब सोचकर मुस्कुराती हुई सुगंधा ने काम की तारतम्यता को बनाए रखा ….।
उठ गई बहू…… सुगंधा ने अपनी बहू को रसोई में देख कर कहा….. हाँ मम्मी …..देर हो गई …आंख ही नहीं खुली …….कोई बात नहीं ……भीगे हुए बादाम के छिलके उतार लो …….हाँ मम्मी सुगंधा ने बहू अक्षरा से कहा…..। मम्मी आपने सब्जी बना भी ली…..??
कड़ाही में रखी सब्जी की ओर इशारा करते हुए अक्षरा ने पूछा ……अब तू भी ना …स्वरा के समान ये मत बोलना कि इतनी जल्दी उठ कर काम करने की क्या जरूरत थी…. अक्षरा ने जवाब में सिर्फ मुस्कुरा दिया….।
भाभी आप बहुत किस्मत वाली हैं ……स्वरा ने रसोई में कदम रखते ही अक्षरा का हाथ पकड़ कर कहा… अक्षरा ने भी स्वीकृति में सिर हिलाया…… खुलकर कुछ बातें तो नहीं हुई पर सुगंधा और अक्षरा की समझ में आ चुकी थी कि ……
” सास बहू के सौहार्द पूर्ण रिश्ते के बारे में ही स्वरा इंगित कर रही है ” …!
शायद स्वरा को अपने घर (ससुराल ) का कुछ पुराना वाक्या याद आ गया….. स्वरा की आंखों में आंसू झलक पड़े ……सुगंधा को समझते देर न लगी…… उसने स्वरा को गले लगाते हुए बस इतना ही कहा…… अरे पगली सभी लोग एक जैसे थोड़ी ना होते हैं …..सबकी सोच अपनी अपनी जगह अपने अपने नजरिए से ठीक ही होता है बेटा …..
फिर हम जिसे अपनाते हैं ना …तो उसकी अच्छाई बुराई जो भी है सभी के साथ पूरा का पूरा अपनाते हैं …..ऐसा थोड़ी ना है कि… अच्छी चीजें हमारी रहेंगी और बुरी चीजें सामने वाले की….।
हाँ दीदी ….कुछ बातों में यहाँ मम्मी जी के साथ मैं ज्यादा कंफर्टेबल हूं …….वरना मायके में भी मेरी माँ भी ना ……मुझे ……अक्षरा आगे कुछ कहती उससे पहले ही सुगंधा ने बात काटते हुए कहा ……ये तुम दोनों ना ….बंद करो ये सब बातें …….और मुझे मक्खन लगाना छोड़ो…… तुम लोग बड़े चालाक हो ……मेरी तारीफ कर करके मुझसे काम लेना अच्छी तरह जानते हो ……शायद मुझमे ही कुछ कमी है ….जो मैं पूरे अनुशासन से तुम लोगों पर रौब नहीं जमा पाती …….! माहौल को हल्का और खुशनुमा बनाने की सुगंधा ने भरपूर कोशिश की….।
अच्छा चल …..टेस्ट कर और बता सब्जी कैसी बनी है ….? सेवई भूनते हुए सुगंधा ने बात की दिशा मोड़नी चाही….।
कॉल बेल की घंटी बजते ही …….लगता है वो लोग आ गए …..दरअसल दामाद के साथ समधन जी भी आने वाली थीं….. सुगंधा ने ही घूमने के लिए अपने घर बुलाया था ……तुम लोग रुको…. मैं देखती हूं ….कहकर बगल में दबाए हुए साड़ी के पल्लू को ठीक करते हुए दरवाजा खोला …….सामने पेपर का बिल लेने के लिए एक आदमी खड़ा था उसे देखते ही सुगंधा की भौवें तन गई ….आशा के विपरीत….. गैस का फ्लेम कम करके …जो बड़ी बेसब्री से समधन जी और दामाद का आवभगत करने निकली थी…. और निकला पेपर का बिल लेने वाला ……
भैया… थोड़ी जल्दी में हूं मेहमान आने वाले हैं कल पैसे ले जाएंगे क्या …..? बिना कुछ बोले ही वो पीछे जाने को मुड़ा …..तभी अक्षरा वहाँ आकर बोली…. रूकिए भैया….. मम्मी …इतनी गर्मी में वो फिर दोबारा आएंगे… अभी पैसे दे देते हैं ना….. कहकर बिल में लिखें अमाउंट लेने अक्षरा अंदर चली गई ….और पैसे लेकर जैसे ही बाहर आई…..
आइए आंटी जी ….जीजाजी आइए ….आइए…आइए…. अक्षरा ने पूरे आवभगत से ड्राइंग रूम में मेहमानों को बैठाया ….स्वरा भी तुरंत सासू माँ से मिलने आ गई….. पानी के साथ और सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद…….
चलिए खाना तैयार है …..डाइनिंग टेबल की तरफ इशारा करते हुए सुगंधा ने कहा ……सासू माँ के आने के बाद ….स्वरा मायके में अपनी अल्हड़ता छोड़ कायदे से पेश आने लगी….।
स्वरा से ज्यादा तो अक्षरा ही खुली और स्वतंत्र दिखाई दे रही थी ….समधन जी भी सारी गतिविधियां बड़े ध्यान से देख रही थी ….आखिर बहू के मायके की बात जो थी …….
अक्षरा की अपने ससुराल में प्रमुखता…. सुगंधा का अक्षरा के प्रति बिल्कुल बेटी जैसा व्यवहार देखकर पहले तो समधन जी को कुछ अटपटा सा लगा …..उनका मानना था ……ससुराल …..ससुराल ही होता है …..कुछ संस्कार नियम कायदे हैं उन्हें हर बहू को पालन करना ही पड़ता है…. चाहे कंडीशन कैसा भी हो…..।
धीरे-धीरे समधन जी को आभास होने लगा कि …..यहां सब कितने खुश हैं…. एक अलग किस्म का माहौल है….. सभी लोग एकदम फ्री हैं …..हल्का …खुशनुमा… माहौल …वहीं स्वरा इतनी अदब से पेश आ रही है ….जबकि ये उसका मायका है… और अक्षरा ससुराल में होते हुए भी कितनी चहक रही है… सुगंधा और उनके घर का माहौल समधन जी को अपने घर के माहौल से काफी अलग दिखाई देने लगा….।
और अपने घर के बोझिल माहौल का जिम्मेदार समधन जी स्वयं को समझने लगीं…. उनके मस्तिष्क में पिछले बिताए कटु अनुभव याद आने लगे…… कुछ दिन पहले की ही तो बात थी …जब स्वरा कमरे से 10:00 बजे बाहर निकली……. सासू माँ गुस्से में उससे बात ही नहीं कर रही थीं…… उसने बताया भी….. मम्मी जी मासिक धर्म के दौरान काफी पीड़ा होती है …..दवाई लेकर आराम कर रही थी …….पर उन्होंने तो बस उसे एक मुद्दा ही बना लिया था…. सास सुबह से उठकर काम कर रही है और बहू आराम फरमा रही हैं…. बस यही बातें उनके दिमाग में चल रही थी…..
क्या हुआ समधन जी …..? हमारे यहां शायद आपका मन नहीं लग रहा है ….. सुगंधा ने खामोश बैठी समधन जी से पूछ… उनका मौन तोड़ा…।
अरे नहीं सुगंधा जी….. आप मन लगने की बात कर रही हैं ……आपके यहां तो मेरे मन में जमे सारे मैल साफ होते जा रहे हैं ……चीजों को देखने का दृष्टिकोण ही बदल गया ……
” हमेशा रिश्तों की नजर से चीजों को देखा… परखा …..महिला हूँ. …महिला …बनकर कभी सोचा ही नहीं “…..।
जिस प्रकार महात्मा बुद्ध को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी ….मुझे तुम्हारे मायके आकर असली ज्ञान की प्राप्ति हुई है स्वरा …..बहू को गले लगाते हुए सासू माँ ने कहा….।
पहले स्वरा को लगता …सासू माँ शायद बेकार में मेरे मायके आ रही है…. फालतू में यहां की कमियां ही निकालेंगी……. और घर के कुछ छुपे हुए पहलू भी उजागर हो जाएंगे ….पर जैसे ही उन्होंने स्वरा को गले लगाया…..
स्वरा भाव विभोर होती हुई सोचने लगी …मैं तो नुकसान के बारे में सोच रही थी …पर यहां तो सासू माँ के आने से सभी को नफा ही नफा हुआ…।
आज स्वरा एक नए विचारों वाली सासू माँ के साथ खुशी-खुशी ससुराल जा रही थी….!
सुगंधा के समझदारी.. विवेक..और घर के वातावरण ने समधन जी का हृदय परिवर्तन तो कर दिया ….पर क्या हम सभी बहनें भी अपने विचार में थोड़ा…. लचीलापन लाकर माहौल और अपने घर के वातावरण को खुशनुमा बनाने में सहयोग नहीं कर सकते …….।
हम महिला हैं और किसी भी रिश्ते में क्यों ना हों…. एक दूसरे की भावनाओं …कमजोरियों …मजबूरियों और इच्छाओं को समझ…..महसूस कर….थोड़ा समझदारी का परिचय देते हुए ससुराल के कई रिश्तों पर लगे प्रश्नचिन्ह को खत्म कर …..मधुरता प्रदान तो कर ही सकते हैं ना….।
दोस्तों …मेरे विचार पर आपके प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा …!
( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
संध्या त्रिपाठी