घिस घिसकर जूते का नीचे वाला तला गल कर खत्म हो गया चलने पर मेरे पैरों की दोनों एड़ियां जमीन से टकराने लगी है दो साल से इन्हीं जूतों को रगड़ रगड़ कर पहन रहा हूं स्कूल के लड़के भी अब मुझें चिढ़ाने लगे हैं अगर तुम मेरे लिए नए जूते खरीद कर नहीं लाओगी
तो .आज मैं खाना ना खाऊंगा…मैंने मां को फटे जूते के सुराग दिखाते हुए कहा,,
तब मां अपना बटुआ दिखाते हुए बोली देख नेकराम तू हमेशा यही बात रोज बोलता है मेरे बटुए में अभी एक रुपये का सिक्का है बाजार से तेरे नये जूते नब्बे रुपये के आएंगे
तू इस महीने और इंतजार कर ले अगले महीने मैं पक्का तुझें बाजार से नए जूते खरीद कर दूंगी ..
अभी तेरा स्कूल का समय हो रहा है यह ले एक रूपया तेरे लिए बचाकर रखा था मां ने बटुए से एक रुपये का सिक्का निकाल कर मेरी और बढ़ा दिया मैंने रुपया मां के हाथों से ले लिया और रोज की तरह बस्ता कंधे पर
टांगे ,, स्कूल के गेट पर पहुंचा,,
खाट वाली अम्मा हमारे स्कूल के सामने ही लकड़ी के बने तख्ते पर बैठी नजर आती थी उसकी डबडबाई आंखें स्कूल के बच्चों की ही तरफ रहती.. जब कोई स्कूली बच्चा पैसे देते हुए कहता अम्मा जी हमें चीज दे दो .. तो
उस अम्मा का चेहरा खिल जाता जैसे ही स्कूल की घंटी बजती तो उस बूढ़ी अम्मा का चेहरा उतर जाता क्योंकि उसे पता था अब सब स्कूली बच्चें स्कूल के खाली मैदान में प्रार्थना की लाइन में खड़े हो जाएंगे …. तब उसका
सामान ना बिकेगा अम्मा की दुकान में मछली की आकृति वाली चटपटी टोफियां और संतरे की मीठी-मीठी टोफियों के अलावा कुछ ना होता बेचारी स्कूल के बच्चों से ही दिन भर में बीस तीस रुपए कमा लेती थी घंटी बजने
से पहले ही मैं दौड़कर अम्मा की दुकान से चटपटी मछली वाली टोफियां खरीद कर स्कूल के बैग में डाल लेता था ……।
लेकिन उस दिन मैं अम्मा की दुकान के पास खड़ा हो गया मछली खरीदने का मन नहीं हो रहा था तब अम्मा मुझे निहारते हुए बोली कल तूने अपना नाम नेकराम बताया था मुझे अभी तक तेरा नाम याद है …
आज तुझे मछली नहीं खानी ….
…बता कुछ और लेगा…
तब मैंने एक रुपये का सिक्का अम्मा को देते हुए कहा मुझें नए जूते खरीदने हैं मां हमेशा झूठ कहती है ….कहती है …इस महीने पुराने जूते से काम चला ले,, फिर अगले महीने तेरे लिए नए जूते पक्का खरीद दूंगी ,,
,, इस बात को मां 2 सालों से कहती आ रही है कितनी बार जूते की सिलाई उखड़ चुकी है मोची भी जूते सिलते हुए कहता है .. तू फिर आ गया.. यह फटे जूते लेकर कितनी बार तेरे जूते सिल चुका हूं यह ,,आखरी बार है ,,
फिर मत आना , चल भाग यहां से..
अम्मा जी तुम मेरा एक काम करो मैं रोज तुम्हें एक रुपया दे दूंगा तुम मेरा रुपया अपने पास रोज जमा कर लिया करो ,, बाजार में एक नई जोड़ी जूते की कीमत नब्बे रुपये है,, स्कूल आते समय रास्ते में मैंने पूरा हिसाब
जोड़ लिया है एक महीने में 30 दिन होते हैं नब्बे रूपये जमा करने के लिए मुझे 3 महीने तक तुम्हारे पास एक रूपया लेकर आना होगा तब मैं अपने लिए नए जूते खरीद लूंगा
तब दुकान वाली अम्मा बोली मैं तो इतनी पढ़ी-लिखी ना हूं लेकिन संडे को तो स्कूल बंद रहता है तब तेरा रुपया कैसे जमा होगा
हां …हां… संडे के दिन भी मैं रुपया लेकर जरूर आऊंगा मैंने बस्ते से एक कॉपी निकाल कर खाली पेज दिखाते हुए कहा तुम इस खाली पेज पर एक छोटी सी लकीर खींच दो..
यह काम तुमको रोज करना होगा मैंने दुकान वाली अम्मा से पेंसिल से एक लकीर खींचवा ..ली फिर अम्मा को ..
बताया जब मेरी कॉपी में नब्बे लकीर हो जाएगी तब मैं तुमसे अपने सारे रुपए ले लूंगा इतना कहकर खुशी-खुशी मैं स्कूल की तरफ भागा
शाम को स्कूल से घर लौटा तो पापा घर पर ही थे उन्होंने मुझें एक बड़ा सा गत्ते वाला बॉक्स मेरे हाथों में पकड़ाते हुए कहा नेकराम तेरे लिए एक गिफ्ट लाया हूं खोलकर देख इसमें क्या है जब मैंने खोल कर देखा तो उसमें
…….नए जूते थे..
पापा ने कहा,, पहन कर देख ,, और बता जूते टाइट तो नहीं है तब मैंने कहा मैं अभी आता हूं मैं दौड़ा-दौड़ा स्कूल के गेट पर हांफता हुआ पहुंचा दुकान वाली अम्मा दिखाई ना दी तख्ता सूना पड़ा था कुछ दूरी पर एक पुराने
से मकान के बाहर भीड़ लगी थी पास जाकर वहां एक बच्चे से पूछा दुकान वाली बूढ़ी अम्मा कहां मिलेगी
तब उस बच्चें ने बताया… वह तो मर गई ..
…तब मैंने कहा.. ऐसे कैसे हो सकता है…
मेरा एक रुपया अम्मा के पास जमा है मैंने देखा बूढ़ी अम्मा अर्थी पर लेटी हुई थी …लोग अर्थी को उठाने की तैयारी कर रहे थे ..
तभी वही बच्चा एक स्त्री को बुला लाया उस स्त्री ने एक रुपया और एक पोटली मुझें देते हुए कहा तुम्हारा नाम नेकराम है उस अंजान सी स्त्री के मुख से अपना नाम सुनकर मैं दुविधा में पड़ गया आखिर इन आंटी को मेरा
नाम कैसे मालूम हुआ ..
मैंने तपाक से उत्तर दिया हां मेरा ही नाम नेकराम है तब उस स्त्री ने कहा दुकान वाली अम्मा ने मरते समय कहा था जब नेकराम आए तो उसका एक रुपया दे देना और साथ में यह पोटली भी ..
मैंने रुपया और पोटली ले ली..
तभी लोगों ने आवाज लगाई.. कोई रह गया हो ..तो..
…कपड़ा डाल दो ..
तब एक मूंछ वाले आदमी ने कहा ,, अब कोई ना आएगा ,,
अर्थी उठाई जाए .. लोगों ने जैसे ही अर्थी उठानी शुरू की तो मुझे याद आया …..
मां ने बताया था जब कोई मर जाता है तो कपड़े से ढक कर शमशान तक ले जाते हैं सब लोग अपने-अपने घर से कपड़ा लेकर आते हैं समाज का यही दस्तूर है मैं तो खाली हाथ ही चला आया कपड़ा भी साथ नहीं लाया मैं
दौड़कर बूढ़ी अम्मा के पास पहुंचा
,, मेरे पास चढ़ाने को चादर नहीं था इसलिए ,,
उस बूढ़ी अम्मा की अर्थी में वही रुपया रखकर पैर छू लिए इसी के साथ ही लोगों ने अर्थी उठाकर आवाज लगाई .. राम-राम सत्य है
… राम राम सत्य है
शमशान की ओर जाती हुई बूढ़ी अम्मा की अर्थी को कुछ देर तक
मैं खड़ा-खड़ा देखता रहा
……. फिर पोटली लेकर घर चला आया मां ने मेरे हाथ में पोटली देखी तो पूछा
,, यह कैसी पोटली है नेकराम तेरे हाथ में ,,
इसमें क्या है ..तब मैंने बताया मुझें क्या मालूम पोटली में क्या है मुझें दुकान वाली बूढ़ी अम्मा ने दी है.. तब बहन ने पोटली मेरे हाथ से लेकर छीन ली
खींचातानी में पोटली फट गई उस पोटली से बहुत से एक-एक के सिक्के फर्श पर गिर कर बिखर गए
एक-एक के बहुत सारे सिक्के देख भाई ने सिक्के उठाकर गिनकर बताया यह तो एक-एक के नब्बे सिक्के हैं
नेकराम के पास इतने सिक्के कहां से आए
,,, बोल ..क्या चोरी करके लाया है
मां अपने सर पर हाथ रखकर रोने लगी मेरा बेटा चोर बन गया..
गुस्से में पापा ने डंडा उठाते हुए कहा अब तू चोरियां भी करने लगा तभी मां को पोटली के भीतर एक कागज पड़ा मिला मां ने कागज पापा को पकड़ाते हुए कहा इस पोटली में यह कागज कैसा है इसमें कुछ लिखा है जरा
पढ़ो क्या लिखा है
उस कागज में लिखा था —
…… मैं दुकान वाली बूढ़ी अम्मा मुझें लिखना नहीं आता इसलिए मैं अपने एक पढ़े-लिखे पड़ोसी से लिखवा रही हूं मैं शायद फिर तुमसे मिल न पाऊंगी अब मेरी उम्र पूरी हो चुकी है ऊपर वाले से मेरा बुलावा आ चुका है इस
पोटली में एक-एक के नब्बे सिक्के मैंने रख दिए हैं इन सिक्कों से बाजार से अपने लिए नए जूते खरीद लाना फिर तुझें कभी भी फटे जूते पहनकर स्कूल नहीं जाना पड़ेगा
तेरी दुकान वाली बूढ़ी अम्मा
ढूंढोगे अगर सवाल उनका ना जवाब मिलेगा ।
इस दुनिया में ……..दर्द…. बेहिसाब मिलेगा ।।
पापा ने उस कागज को मंदिर में रख दिया और सबने हाथ जोड़कर बूढ़ी अम्मा को प्रणाम किया
लेखक – नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली
स्वरचित रचना