नाम में जो रखा है! – पूर्णिमा सोनी : Moral Stories in Hindi

रिद्धि  को ससुराल आते ही सासू मां ने पहली बात समझाई वो यही थी कि  अपने पति का नाम नहीं लेना है.. मतलब उनको, उनके नाम से नहीं बुलाना है

??

और जरूरत  भी ऐसी ही तुरंत पड़ गई

रिद्धि ,इस घर की नई बहू, जिसे अभी इस घर में आए जुम्मा जुम्मा चार दिन भी नहीं हुए थे कि…  जब, शादी के कुछ दिनों बाद ही अमन फैक्ट्री जाने के लिए निकला ( जिसमें वो इंजीनियर है) ,तो रिद्धि भागते हुए बालकनी में आकर ( जोर से) चिल्लाई

रूको अमन तुमने अपना वाॅलेट , मोबाइल फोन दोनों यहीं छोड़ दिया है

नीचे बाउंड्री में खड़े पापा जी, बड़े जेठ जी और बचे हुए रिश्तेदार ( जो विवाह के बाद बस जाने की तैयारी कर रहे थे) के साथ साथ,इस पड़ोस के लोग.. जिसमें सुबह कूड़ा उठाने वाला सभी ने… ऐसे ( आश्चर्य से) मुंह खोल के ऊपर देखा कि

मानों नई बहू ने यह  ,( कैसा अनर्थ) कर दिया

अमन की मां ने अपनी बड़ी जिठानी ( अमन की ताई जी ) की ओर ऐसी नज़रों से देखा मानों वो उससे कहना चाह रही हों… अब तुम ही संभालो( सिखाओ) इस नई बहुरिया को  रीति रिवाज.. मतलब लोक- लाज.. मान- मर्यादा, वगैरह वगैरह…

ताई जी तो ऐसा हड़बड़ा कर भागती हुई दनादन सीढियां चढ़ते हुए ऊपर आई कि ,कमरे से निकल रही रिद्धि से टकराते हुए बची

क्या हुआ ताई जी?.. रिद्धि ने ताई जी को इतनी तेज  हांफते हुए देख कर पूछा

अरे.. मुझसे पूछ रही है?… ये भी कोई तरीका हुआ .. सबसे पहली बात नई बहू को बालकनी में खड़े होकर ऐसे ज़ोर से चिल्लाना शोभा देता है क्या?.. क्या सोच रहे होंगे रिश्तेदार?.. मोहल्ले वाले.. देखो तो जरा वो कूड़ा उठाने वाला भी कैसा व्यंग्य से मुस्कुरा कर देख रहा है.. लोगों में कैसी कानाफूसी शुरू हो गई.. आखिर कैसी बहू आई है?

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सेजल – समिता बड़ियाल : Moral Stories in Hindi

अच्छा.. इतनी जल्दी.. वैसे मैं अमन को ,अमन ना कहूं तो फिर क्या कहूं?

ले ..फिर . नाम ले रही है अपने पति का.. अरी( निर्लज्ज,कह नहीं सकीं, मगर टोन वही था) अपने पति का नाम नहीं लेना चाहिए..

क्यूं

इससे उम्र कम होती है.. पति की

मतलब सौभाग्य/ सुहाग की वृद्धि ना होगी 

और मेरा ताई जी..? वो मेरा नाम लेकर बुलाएंगे तो मेरी उम्र तो बढ़ेगी ना!!

. पढ़ी लिखी लड़कियों की एक समस्या है.. तर्क बहुत आवे हैं..  औरतों के नाम में क्या रखा है?… जो चाहे जैसे बुलाए.. मगर आदमियों का नाम सम्मान से लिया जावे है… और तू ना बुलाना आज से..

ताई जी बड़ी – बड़ी आंखें दिखा कर, हेडमास्टरनी की तरह घूरते हुए चली गई

ऐसा है बहुरिया,जब बाल, बच्चे हो जाएं तब गुड़िया के पापा, बिट्टू के पापा ऐसा कह कर बुला लेना.. अभी ऐसे ही इशारों में बुला लिया कर

बुआ जी जो ताई जी के पीछे पीछे ऊपर कमरे में आ गईं थी , उन्होंने समझाते हुए कहा.. और वो भी चलीं गईं

माना कि बुआ जी प्यार से बात करती हैं.. ताई जी की तरह खुर्राट नहीं हैं.. मगर बात तो वही वो भी कह रही थी

अब बताओ,जरा.. मैं बालकनी से खड़े होकर अमन को बुलाने के लिए इशारे करती तो वो अच्छा लगता क्या?

और भी बहुत सारे लोग खड़े थे नीचे..

सीधे सीधे  अमन को बोला, उसे भी समझ में आ गया , बगैर किसी कन्फ्यूजन के

रिद्धि जो स्वयं साॅफ्टवेयर इंजीनियर थी और काॅलेज टाइम से अमन को जानती थी और उसे नाम से ही जानती थी. और उसे उसके नाम से ही बुलाती थी, उसने अपनी ज़बान को बहुत सिल ( मतलब नियंत्रित) कर रखा था

अभी तक जिसे आराम से नाम से बुलाती थी, विवाह के गठबन्धन के बाद उसका नाम लेना इतनी हाय तौबा मचाने वाली बात कैसे हो गई?

इस कहानी को भी पढ़ें: 

जेवर – अंजू निगम

फिलहाल रिद्धि का वर्क फ्रॉम होम चल रहा है, रिद्धि घर से काम करती और अमन फैक्ट्री चला जाता।

मम्मी जी को भी रिद्धि का नाम लेना नहीं पसंद था, इसलिए अपनी बात ताई जी के माध्यम से कहला दिया था।

कई बार रिद्धि की जबान पर नाम आ जाता मगर मम्मी जी मना कर देती कि ऐसा नहीं करना है

उन्होंने भी कहा.. पति का नाम मत लेना

*****

रिद्धि और उसकी सासू मां, मंदिर गई थी,पास में ही है.. बस रेलवे लाइन क्रास करनी पड़ती है। गेटेड रेलवे लाइन नहीं है, तो लोग आस पास देखते हुए कि ट्रेन तो नहीं आ रही है ,क्रास कर लेते है। अमन भी कुछ देर से बाहर निकला हुआ है। बाइक से, उसके भी घर लौटने का समय हो रहा है।

अरे ये सामने अमन ही है क्या?

रिद्धि ने आश्चर्य से देखा,बाइक लेकर पटरियों के पास खड़ा है.. किसी से मोबाइल पर बात कर रहा है शायद

सामने से ट्रेन आ रही है..

उसका ध्यान कहां है

अमन….

रिद्धि बहुत ज़ोर से चिल्लाई… उसकी आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा…  उसे कुछ समझ में नहीं आया क्या हो रहा है… या होने वाला है

और….. और

आंखें खुली तो घर में लेटी हुई थी

मम्मी ने कहा घबराओ मत बेटा, तुम्हें घबराहट में चक्कर आ गया था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बहु कभी बेटी नहीं हो सकती – डॉ. शशि कान्त पाराशर “अनमोल”

अब चिंता की कोई बात नहीं है

अमन… अमन कहां है मम्मी.. रिद्धि ने अधखुली आंखों से पूछा

चिंता मत कर बेटा, वो सुरक्षित है और सामने  है तुम्हारे

अमन की चिंता में तुम्हें घबराहट में चक्कर आ गया।

आज तो तुमने अमन को सावधान कर दिया,मेरा तो ध्यान ही नहीं गया।

रिद्धि के पास अमन आकर उसका हाथ पकड़ कर बैठ गया

मुझे माफ कर दो, मैं बेखुदी में था… तुमने इतनी तेजी से  नाम लेकर पुकारा,तब मुझे एहसास हुआ…

हां बेटा.. आज तुम ऐजी.. सुनिए जी कहती रहती तो अमन तो बिल्कुल ध्यान ही नहीं दे पाता

 ताई जी ने कहा…. बल्कि पुरानी दकियानूसी बातों को छोड़ कर आज तुमने अपने सुहाग की रक्षा ही करी है!

 और क्या, भाई….. किसी का नाम लेकर बुलाने से , आयु कैसे कम हो सकती है?…. स्त्री या पुरुष किसी की भी…… और फिर  स्त्रियों को ही क्यों नाम लेकर बुलाया जाए?….. उन्हें भी इशारों से बुलाए…. क्या उनकी आयु कम हो या ज्यादा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता??

 यदि पिछली पीढ़ी ने नाम लेकर नहीं बुलाया तो कोई बात नहीं,अब बच्चे परस्पर मित्रवत  व्यवहार करते हैं, इसमें बुराई ही क्या है?

 समय के बदलाव को स्वीकार करें…… उनके सार्थक अर्थों के साथ!

आखिर किसी का नाम उसकी पहचान होता है,हम नन्हे

इस कहानी को भी पढ़ें: 

अनजाने में बना अनोखा परिवार

शिशु के जन्म लेने के पश्चात उसका एक , विशेष नाम रखते हैं, जिससे हम उसे संबोधित कर सकें… जो कहने, पुकारने पर उसे समझ में आए कि अमुक बात उससे कही गई है।

फिर पति पत्नी,एक दूसरे से जिस स्नेह और परस्पर विश्वास के गठबंधन में बंधते हैं उसमें एक दूसरे की सुरक्षा, जिम्मेदारी और  परस्पर विश्वास सर्वोपरि है… शेष चीजें सेकेंडरी है।

मम्मी ने भी कहा

बस ऐसे ही एक दूसरे की परवाह करो ,ध्यान रखो… बाकी बातें मात्र अंधविश्वास है

और हां,आज रिद्धि ने नाम लेकर बुलाने के कारण अमन की आयु में कमी नहीं बल्कि  रक्षा ही हुई!!

आपकी क्या राय है मित्रों

अपने बहुमूल्य विचारों को अपने लाइक, कमेंट से  बताएं!

आपकी सखि

पूर्णिमा सोनी

स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित 

# सौभाग्यवती, कहानी प्रतियोगिता शीर्षक नाम में जो रखा है!!

error: Content is Copyright protected !!