गलत संगत – गीता वाधवानी
रमा दो-तीन दिन से देख रही थी कि उसका 19 वर्षीय बेटा अजय दुकान से आते ही पीछे वाले आंगन में अपना फोन लेकर एक कोने में बैठ जाता था और किसी से धीरे-धीरे बात करता था। रमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
फिर एक दिन रमा ने अपने कानों में ईयर फोन लगाकर गाने सुनने का नाटक करते हुए तार पर कपड़े डालने लगी और वास्तव में वह अजय की बातें सुनना चाहती थी। उसे अजय की बातें सुनाई दे रही थी।
वह किसी से कह रहा था-“₹10000 आज शाम को मिल जाने चाहिए। पहले की तरह किसी को पता ना लगे। वरना तेरा वीडियो वायरल कर दूंगा। सुबह तक तू किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी, समझी या फिर से समझाऊं?”
रमा के पैरों तले से तो जमीन ही निकल गई। अजय, इस राह पर! उसने तुरंत कपड़ों की बाल्टी वही फेंकी और ईयर फोन निकालते हुए भागकर अजय के पास पहुंची और अजय को एक जोरदार तमाचा जड़ते हुए बोली-“क्या किया है तूने, सच् सच बता, वरना यही खड़े-खड़े मार दूंगी तुझे।”
अजय बुरी तरह चौंक गया कि मां ने सब कुछ सुन लिया है। डरते हुए बोला-” म,म मैंने कुछ नहीं किया।”
रमा जोर से चिल्लाई-झूठ मत बोल कुत्ते, सच बता।”
अजय-“मेरे दोस्तों ने गलत किया था एक लड़की के साथ, मैंने तो सिर्फ वीडियो बनाई है।”
रमा और दो चार थप्पड़ उसे मारते हुए बोली-“वाह! क्या कहने बड़ा अच्छा काम किया है बेशर्म ने ,सिर्फ वीडियो बनाई है खानदान का नाम डुबो दिया। हम गरीब हैं पर सम्मान से जीवन जी रहे थे तूने तो बदनाम कर के रख दिया। कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। पर मैं तुझे माफ नहीं कर सकती, मैं तेरी रिपोर्ट पुलिस में करूंगी।”
अजय-“कोई मां ऐसा नहीं करती, मैं तो तेरा बेटा हूं ना।”
रमा-“नहीं, तू मेरा बेटा कैसे हो सकता है। मेरा बेटा कभी ऐसा काम कर ही नहीं सकता।”
फिर रमा ने अजय को कमरे में बंद कर दिया। पुलिस को बुलाकर पूरी बात बताई और उसे पुलिस के हवाले कर दिया।
फिर जाते समय धीरे से पुलिस वाले से फुसफुसा कर बोली-“साहब मेरा बेटा ऐसा नहीं है, गलत संगत और गलत दोस्तों के बहकावे में आ गया था। सवाल सख्ती से पूछोगे तो सब बता देगा, साहब मारना मत।”
पुलिस वाले ने कहा-“आप चिंता मत कीजिए।”
पुलिस वाले अजय को ले गए और रमा फफक फफक कर रो पड़ी।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
मुहावरा प्रतियोगिता
#नाम डुबोना
गिरधारी का सूरज – बालेश्वर गुप्ता
अरे कमबख्त, तुझे ये ही काम करना था तो फिर इतना पढ़ा लिखा ही क्यूँ था?हमारे अरमान तो धरे के धरे रह गये, नाम डूबा दिया तूने।
गिरधारी अपने मुहल्ले की दुकान में कपड़े सिलाई का कार्य करता था।एक ही बेटा था अनुज।गिरधारी निम्न मध्यम श्रेणी में था।उसने सोचा था बेटे को पढ़ा दूँ तो नौकरी करेगा तो परिवार को राहत मिलेगी।अपनी औकात के अनुसार अनुज को उसने ग्रेजुएट करा दिया।गिरधारी के लिये ग्रेजुएट तक की शिक्षा बहुत थी,उसका मानना था कि बस अपने अनु ने इतना पढ़ लिया है तो बस नौकरी अब लगी,अब लगी।
घर से दुकान और दुकान से घर तक जिसकी दुनिया हो उसे आज की शिक्षा,बेरोजगारी वातावरण का क्या पता?पर अनुज ने वास्तविकता पहचान अपने पिता के दर्जी के काम को ही नये रूप में बढ़ाने का निश्चय किया।
अनुज ने रेडीमेड कपडो की एक दो कम्पनी से संपर्क करके उनसे ट्रायल के लिये छोटे आर्डर लिये।कपड़ा कंपनी ने ही दे दिया।सिलाई वास्ते वो अपनी दुकान पर आया तो उसके पिता भड़क गये,उन्हें पढ़े लिखे बेटे का दर्जी का काम करना, अपना नाम डुबाना लग रहा था।
अनुज ने अपने पिता को समझाया कि बाबूजी नौकरी मिल नही रही तो अपने काम करने में क्या हर्ज है?बाबूजी यदि हमने ये आर्डर समय पर पूरे करके दे दिये तो हमे बडे आर्डर मिलने का मार्ग खुल जायेगा।बाबूजी मेरी सहायता करो,मैं आपको निराश नही करूँगा।मन मार कर गिरधारी ने अनुज के आर्डर को पूरा कर दिया।
सफाई से काम, समय से पूर्व काम से कंपनी के डायरेक्टर काफी प्रसन्न हुए और अबकी बार अनुज को पहले से बड़ा आर्डर दे दिया।समस्या थी स्टाफ और मशीनों की।अनुज ने प्रधानमंत्री बेरोजगार योजना के अन्तर्गत ऋण लेकर मशीनें भी खरीद ली तथा अपनी बराबर वाली एक और दुकान भी किराये पर ले ली।कारीगर भी बढ़ा लिये।अनुज ने अपने इसी पैतृक व्यवसाय को आधुनिक रूप में आगे बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया।कंपनी के मनमुताबिक, सही और सही समय पर आर्डर पूरा करना अनुज ने अपनी विशेषता बना ली।
धीरे धीरे अनुज की मेहनत रंग लाने लगी।अब उसने अपनी भी रेडीमेड कपडो की एक फैक्ट्री रजिस्टर्ड करा ली थी।परिवार की आय भी दिन दूनी रात चौगनी बढ़ने लगी थी।गिरधारी को अब दुकान में मशीन के सामने रात दिन खटना नही पड़ता था।गिरधारी अब अक्सर कहता अनुज ने तो अपने घर मे रोशनी ही रोशनी कर दी है।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
स्वरचित एवं अप्रकाशित।
तुम्हें भी क्या करना है!! – लतिका श्रीवास्तव
नहीं अब तो कहीं बाहर जाना ही नहीं है अभी एक दिन ही तो हुआ है …मेरा नहीं पूरे कुल का नाम डुबो दिया किसी को मुंह दिखाने काबिल नहीं रह गया मैं सारा मोहल्ला थू थू कर रहा है
हजार बार समझाया था तुम्हें लड़की है लड़की जैसे ही रहने दो लड़का बनाने की कोशिश मत करो अरे हमारी किस्मत में बेटे का सुख विधाता ने लिखा ही नहीं है तो फिर सुख की अपेक्षा क्यों!!अपनी किस्मत में यही बिगड़ैल लड़की लिखी है …फूट गई थी मेरी किस्मत जब ये पैदा हुई थी …तुम्हें याद है मैने तो पूरी बैंड पार्टी बुलाई थी कि बेटा ही पैदा होगा लेकिन आ गई ये…! पूरी बैंड पार्टी लौटा दिया था मैंने तत्काल।
सुरेश सिर धुनता अपनी पत्नी लेखा पर चीख रहा था।
मेरी बेटी ने कौन सा गलत काम कर दिया है जो आप इस तरह कोस रहे हैं उसे!!लेखा ने कड़ी आपत्ति जताई तो सुरेश फट पड़ा नही नही तुम्हारी लड़की ने कोई गलत काम नहीं किया गलती तो उन लड़कों की थी ना जो बस में उसके साथ थे.. नहीं ..सारी गलती तो मेरी है जो मैने तुम्हारे उकसाने पर रूमा को घर के बाहर कदम निकालने दिया और फिर दूसरी गलती बस में अकेले आने जाने की छूट दे दी बस पंख निकल आए इसके तो अरे जाना ही है तो चुपचाप आना जाना करती रहो कोई कुछ भी करता रहे टांग अड़ाने की क्या जरूरत है वो लड़के हैं कुछ भी कर रहे थे करने दो तुम्हे भी क्या करना है!
किसी लड़की को छेड़ रहे थे तुम्हें तो नहीं…उसका दुपट्टा खींच दिया …भद्दे कॉमेंट करने लगे …. बालों में गुलाब का फूल लगा दिया तो लगाने दो ….
….बस में और भी तो ढेरो लोग थे जब किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था तो तुम्हीं को रुस्तमे हिंद बनने की क्या सूझी अरे चुपचाप सीट पर बैठे रहना था वो लड़की क्या तुम्हारी बहन थी जो उसकी रक्षा के लिए लक्ष्मी बाई बन कर कूद पड़ीं अच्छी खासी अपनी सीट छोड़ कर उस लड़की को बिठा दिया और खुद खड़ी हो गईं लड़कों से भिड़ गई लडको को गुस्सा आना स्वाभाविक था तुमने खुद ही आ बैल मुझे मार कर दिया था देख लो क्या हालत बना कर आई अपनी .. सारा मोहल्ला बेवजह की बातें कर रहा है हंस रहा है इसके बारे में अरे लड़कियों की मर्यादा शांत रहने में ही है आजकल जमाना कितना खराब है कोई किसी के लफड़े में नहीं पड़ता
अब चुपचाप घर पर ही रह वो लड़के गुंडे हैं उनका पूरा गैंग होगा बाहर निकली तो खैर नहीं मैं अकेला किससे किससे निबटता फिरूंगा…रूमा को जोर से फटकार लगाते हुए सुरेश ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया था….तभी कॉल बेल बज उठी और साथ ही सुरेश का दिल किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठा उसके पैर जम से गए … लेखा ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोला सामने पुलिस की वर्दी में दो जवान खड़े थे अब तो लेखा का दिल भी धड़क उठा,” हे भगवान मेरी मासूम बच्ची की रक्षा करना” मन ही मन प्रार्थना कर उठी…!
क्या वो लड़की यहीं रहती है जिसके साथ कल बस वाली घटना हुई ..? वो पूछ रहे थे…जी ..जी हां क्यों क्या हुआ धड़कते दिल से पूछा था लेखा ने और सुरेश की तो मानो नब्ज़ जम गई थी
ये देना था कहते हुए एक कागज निकाल कर पुलिस वालों ने बढ़ाया
गिरफ्तारी वारंट !!सोच कर ही सुरेश की रूह कांप गई
क्या है ये?? लेखा ने कांपते हाथों से कागज थामते हुए पूछा
अकेले ही सरेआम उन बदमाश गुंडों का मुकाबला कर एक लड़की की इज्जत की रक्षा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर वीरता पुरस्कार के लिए आपकी बहादुर बेटी का चयन किया गया है ये उसीका राजकीय आमंत्रण पत्र है सैल्यूट मार कर वो चले गए थे।
मेरी बहादुर बेटी..!! इतना बड़ा राजकीय सम्मान !!पूरे देश में नाम हो गया मेरी तो नाक ऊंची कर दी … बेटों से बढ़कर है मेरी बेटी तूने तो मेरा नहीं मेरे पूरे कुल का नाम पूरे देश में ऊंचा कर दिया ..रोशन कर दिया…. तू तो वास्तव में रुस्तमे हिंद है …सुरेश ने गर्व से कहते हुए रूमा को गले से लगा लिया था और लेखा गदगद दिल से ईश्वर को बेटी की रक्षा और सम्मान के लिए आभार दे रही थी।
#नाम डुबोना
लतिका श्रीवास्तव
असली पूंजी – डॉ.पारुल अग्रवाल
मनोहर जी और सुमित्रा जी का बेटा राघव स्वभाव की बहुत ही मधुर,विनोदप्रिय और जल्दी ही सबको मित्र बनाने वाला था। मनोहर जी एक बहुत बड़े बिजनेसमैन थे वो तो किसी से बात भी अपना नफा-नुकसान सोचकर करते थे ऐसे में मनोहर राघव की किसी की भी मदद करना,अपने से छोटे स्तर के लोगों के साथ उठना-बैठना उन्हें अपनी शान के खिलाफ लगता था। उनको लगता था कि राघव का ये व्यवहार अभिजात्य वर्ग के बीच उनका नाम डुबो रहा है। मनोहर जी कभी राघव को अपने तरीके से समझाने की कोशिश भी करते तो वो मुस्कराते हुए कहता पापा हमें तो अपने आपको खुशनसीब समझना चाहिए कि जो भगवान ने हमें इतना समर्थ बनाया है कि हम दूसरों की मदद कर सकते हैं। ज़िंदगी इसी तरह आगे बढ़ रही थी ना मनोहर जी बदलने को तैयार थे ना राघव।
एक दिन मनोहर जी की कंपनी पर आयकर विभाग ने छापा डाला।मनोहर जी के खिलाफ किसी उनके ही खास परिचित और मित्र ने प्रतिस्पर्धावश आयकर विभाग को कुछ झूठे-सच्चे सबूत उपलब्ध करवाए थे। उनके यहां आयकर विभाग के छापे का सुनकर सब जगह उनकी बदनामी हुई थी। कंपनी के शेयर भी काफ़ी गिर गए थे,नुकसान भी बहुत हुआ था। ऐसे में कंपनी को डूबता जहाज समझ कंपनी में काम करने वाले काफी कर्मचारी काम छोड़ गए थे।मनोहर जी वैसे भी हृदय रोग से ग्रसित थे।वो बरसों से बनाई अपनी मेहनत की कंपनी और साख को समाज में इस तरह बिखरता हुआ देख सहन नहीं कर पाए और हार्ट अटैक का शिकार हो गए। ऐसे में राघव और उसके दोस्त जिन्हें मनोहर जी अपने स्तर से बहुत कम आंकते थे उन्होंने आकर सब संभाल लिया।
राघव के दोस्तों ने मनोहर जी को हॉस्पिटल में एडमिट कराने से लेकर उनके स्वस्थ होने तक काफ़ी दौड़ धूप की, वहीं राघव ने जब कंपनी की बागडोर अपने हाथ में ली तो जो कर्मचारी काम छोड़ गए थे उनकी जगह अपना सहयोग देकर सब संभाला। यहां तक की सुगंधा जिससे राघव शादी करना चाहता था पर उसके मध्यम पारिवारिक स्तर को देखकर मनोहर जी ने इंकार कर दिया था। वो वकील थी और आयकर संबंधी केस ही देखती थी उसने काफ़ी मेहनत करके आयकर विभाग वालो के सामने मनोहर जी की सभी कागज़ात सही होने के साक्ष्य प्रस्तुत किए। ऐसे समय में उसने मनोहर जी के व्यवहार को नज़रअंदाज़ करके अपना फ़र्ज़ निभाया था।
सबके प्यार और देखभाल से मनोहर जी जल्दी ही अच्छे हो गए। अब वो राघव के दोस्तों के प्रति अपनी सोच को लेकर आत्मग्लानि से भर गए। उनको लगा वो तो बस पूरी ज़िंदगी धन कमाने में रह गए पर असली पूंजी तो उनके बेटे राघव ने कमाई है।उन्होंने सुमित्रा जी और सबके सामने हंसते हुए कहा कि अगर राघव जैसा बेटा और उसके जैसे दोस्त हों तो नाम डूबना तो बहुत दूर की बात है,यमराज भी पास नहीं आ सकते। फिर उन्होंने राघव से भी सुगंधा के माता पिता को बुलाने को कहा जिससे वो घर जाते ही दोनों के लगन की रस्म कर सकें।
डॉ.पारुल अग्रवाल,
नोएडा
“ इज्जत मिट्टी में मिलाना” – हेमलता गुप्ता
गांव के प्रतिष्ठित सरपंच और समाजसेवी दिवाकर जी के , इकलौते बेटे निहाल को, गांव में 12वीं कक्षा के बाद विद्यालय नहीं होने की वजह से, मेडिकल की पढ़ाई के लिए कोटा जाना पड़ा! शुरू शुरू में तो निहाल का कोटा में मन नहीं लगा, अतः वह रोज घर फोन करता ,और महीने में दो-तीन दिनों के लिए आ भी जाता था, धीरे-धीरे फोन आना कम हो गए, और 6 महीने बीतने के बाद भी निहाल घर नहीं आया! दिवाकर जी जब भी पूछते तो कहता की पढ़ाई का बहुत दबाव है, अतः समय नहीं मिल पाता! दोनों पति पत्नी मन को तसल्ली देते कि चलो निहाल का वहां पढ़ाई में मन लग रहा है, पर माता-पिता का मन कहां मानता, अपने बच्चे को देखने के लिए निहाल को बिना बताए कोटा पहुंच गए, यह सोच कर कि निहाल उन्हें अचानक वहां देखकर खुशी से झूम उठेगा! पहले दोनों निहाल की कोचिंग में गए, जहां उन्हें पता चला की निहाल का प्रदर्शन पढ़ाई में बहुत ही खराब है, और वह लगातार कोचिंग भी नहीं आता,! दोनों को बहुत धक्का लगा! उसके बाद वह निहाल के कमरे पर गए, जहां देखा निहाल अपने दोस्तों के साथ सिगरेट के छल्ले उड़ा रहा था! साथ में शराब की बोतलें और लड़कियां भी थी !निहाल पूरी तरह से शहरी रंग में रंग गया था !दिवाकर जी यह सब देख कर सन्न रह गए ! उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था !उधर अपने मम्मी पापा को देख कर निहाल के होश उड़ गए! दिवाकर जी ने निहाल के थप्पड़ मारते हुए कहा… “कि तुझे जरा भी शर्म नहीं आई, हमारी इज्जत मिट्टी में मिलाते हुए”? कितने गर्व से हम वहां सबसे कहते थे कि हमारा बेटा डॉक्टर बन कर आएगा, और सबका इलाज करेगा !किंतु तुमने तो हमारे सारे अरमानों पर पानी फेर दिया! मेरे साथ साथ पूरे गांव को तुमसे उम्मीद थी ,किंतु तुमने हमारी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी! अब मैं किस मुंह से तेरी करतूतें गांव वालों को बताऊंगा?? आज तूने मुझे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा! यह देख सुनकर निहाल को अपने ऊपर बहुत शर्म आई! और माता-पिता को पैरों में पढ़कर माफी मांगने लगा निहाल ने अपने माता-पिता से वादा किया कि आज के बाद वह ऐसा कुछ नहीं करेगा ,जिससे उसके माता-पिता की इज्जत मिट्टी में मिल जाए ,और वह कामयाब डॉक्टर बनकर दिखाएगा! कितने उम्मीदों के साथ माता पिता दिल पर पत्थर रखकर अपने बच्चों को शहरों में उच्च अध्ययन के लिए भेजते हैं! किंतु अगर बच्चे ऐसे निकल जाएं तो मां बाप के दिल पर क्या गुजरती होगी! किंतु यह भी सत्य है! हर बच्चा ऐसा नहीं होता!
हेमलता गुप्ता
नाम डुबोना – के कामेश्वरी
ज्योति एक बहुत बड़े स्कूल में टीचर थी । उसके दो बच्चे थे । पति भी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरीकरते थे । ज्योति को अपना केरियर बहुत प्यारा था ।इसलिए वह हमेशा मेहनत करती थी । उसके बेटेअजय को क्रिकेट बहुत पसंद था । वह स्कूल में क्रिकेट टीम का केप्टेन था पढ़ाई छोड़कर खेल मेंज़्यादा मन लगाता था । जब भी पेरेंट टीचर मीटिंग होती थी तो टीचर्स ज्योति से अजय की शिकायतकरती थी कि आपका बेटा कक्षा में रोज नहीं आता है उसके नोट्स अधूरे होते हैं आदि ।
ज्योति को टीचर्स की शिकायतों बहुत बुरा लगता था । उसे लगता था कि स्कूल में सब टीचर्स केसामने वह उसका नाम डुबो दे रहा है ।
उसे तो स्कूल से निकाल नहीं सकती थी क्योंकि इतने बड़े स्कूल में एडमिशन मिलना कठिन है । उसनेयहाँ रिजाइन किया और दूसरे स्कूल में जॉइन कर लिया था ।
उस स्कूल में वह एक एक कदम आगे बढ़ाती गई अब वह प्रिंसिपल बन गई थी । लेकिन अजय ना हीक्रिकेट में आगे बढ़ पाया और ना ही अपनी पढ़ाई पूरी कर पाया था । शहर में नाम ख़राब कर रहा हैक्योंकि उसके साथ के बच्चों ने प्रोफेशनल कोर्स में दाख़िला ले लिया था । अजय को उसने दूसरे शहरभेज दिया जहाँ से उसने बड़ी मुश्किल से डिग्री पूरी की थी । उसकी तरफ़ माता-पिता दोनों ने ध्याननहीं दिया था और ना ही उसे सही रास्ता दिखाया था ।
दोस्तों बच्चों की तरफ़ ध्यान न देकर उनकी मदद ना करके हम उन पर नाम डुबोने का इलज़ाम लगा देंयह कहाँ का इन्साफ़ है।
आप भी अपने राय दीजिए ।
स्वरचित
के कामेश्वरी
हैदराबाद
उड़ने को दे खुला आसमान – प्राची लेखिका
आज आशी को भारत सरकार की तरफ से पदक मिलने वाला था। घर में चारों ओर खुशी का माहौल था। सबको फक्र हो रहा था आशी पर। घर में हर व्यक्ति अच्छी तरह तैयार हो रहा था ताकि कोई कमी ना रह जाए। इतने बड़े समारोह में जाना था। कितना फोटो सेशन होगा। सब समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में फोटो निकलेंगे।
आशी शांत सी साधारण कपड़ों में तैयार होकर आ गई। परिवार के सभी जने आशी को सिर आंखों पर बिठा रहे थे। यह सब देख कर आशी के चेहरे पर व्यंगात्मक मुस्कान छा गई।
आपसे लगभग 10 वर्ष पूर्व की बात है जब इंटरमीडिएट की परीक्षा देने के बाद आशी ने फाइन आर्ट में दाखिला लेने की बात की तो घर पर सभी ने उसका पुरजोर विरोध किया था। उसकी मम्मी ने कहा था,”हमारे घर से सिर्फ डॉक्टर या इंजीनियर निकलते हैं! कलाकार नहीं। और कलाकारों की औकात ही क्या होती है?”
“आर्ट्स पढ़कर हमारा #नाम डुबोना है क्या?”
आशी ने सबको कितना समझाया कि उसकी मैथ और साइंस में बिल्कुल भी रुचि नहीं है। उसका ध्यान केवल कलात्मक चीजों में ही लगता। प्रकृति के नजारे उसे बहुत भाते।
बड़ी मुश्किल से उसने दादी को मनाया।
दादी में सबको समझा कर कहा, “अरे लड़की ही तो है आर्ट्स पढ़ लेगी तो क्या बिगड़ जाएगा। शादी करके अपने घर ही जाएगी। और रही बात डॉक्टर इंजीनियर तो हम पैसे के बल पर मनचाहा दामाद खरीद लेंगे।”
तब जाकर उसका प्रवेश बीएचयू में फाइन आर्ट्स में हुआ। गंगा किनारे घर की दुनियाँ से दूर आशी की कला और निखरती गई।अच्छे गुरुजनों और सहपाठियों के मार्गदर्शन से आशी कला के क्षेत्र में आगे बढ़ती गई।
उसकी कलाकृतियां देश और विदेश दोनों में फैलती चली गई। आज उसकी कला की उपलब्धियों से ही भारत सरकार द्वारा उच्च सम्मान प्रदान किया जाना था। जिसकी वजह से आज उसके पूरे घर वालों का सीना चौड़ा हो गया था।
हर बच्चे में अलग-अलग प्रतिभाएं छुपी होती हैं। सभी बच्चे एक समान नहीं होते। दिखावे के नाम पर बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ ना करें। अपने बच्चे की अहमियत को समझते हुए उसकी प्रतिभा को निखारे। उड़ने के लिए दे खुला आसमान। पर कतरने के लिए तो दुश्मन ही बहुत हैं।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
स्वरचित मौलिक
प्राची लेखिका
खुर्जा उत्तर प्रदेश
#नाम डुबोना
क्यों कुल का नाम डुबोना चाहते हो।
“ये बाप बेटे में क्या खुसर-फुसर चल रही है।” चाय और नाश्ता लेकर बैठक में प्रवेश करते हुए मालती ने पति मुकुंद लाल से पूछा।
“वो तेरा बेटा अब जवान हो गया है। अब उसकी शादी करनी है न! इस संबंध में बात कर रहे थे।”
“आपने ने मेरे मन की बात कह दी। मेरी नज़र में दो- तीन लड़कियां हैं।”
“भाग्यवान। राजीव ने तेरी बहू खोज ली है। बस हमें उसके माता-पिता से रिश्ते की बात करनी है।”
“कौन है! किसकी बेटी है। क्या नाम है।” एक ही साँस में मालती कह गई।
“मम्मा। आप उसे अच्छी तरह जानती हो। बहुत ही संस्कारी है। मुझे बहुत पसंद है। पापा के दोस्त गिरधारीलाल की बेटी सुकन्या।”
“क्या! उस फकीर के घर में रिश्ता। बिलकुल नहीं।
कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली। फिर क्या वे हमारी हैसियत के अनुसार दान-दहेज दे पाएँगें। फिर सुकृति कोई ज्यादा सुंदर भी नहीं है। राजीव क्यों अपने कुल का नाम डुबोना चाहते हो? क्या लड़कियों की कोई कमी हो गई है, जो उससे शादी करना चाहते हो।” मालती ने रोष से कहा।
“मम्मा। आप कैसी बात कर रही हो। क्या अपनी मर्ज़ी से शादी करने से कुल का नाम डूब जाएगा। मुझे सुकृति बहुत पसंद है। फिर मैं कोई चीज़ नहीं हूँ जो कुछ रुपयों के लालच में बिक जाऊँ।”
“मालती। बेटे ने बिलकुल सही चुनाव किया है। मान भी जाओ। सुकृति भले ही ज्यादा सुंदर नहीं है, पर बहुत ही गुणी है। वह अपने साथ जो लेकर आएगी, उसके आगे तो कुबेर का ख़ज़ाना भी कम है, जो किस्मत वालों को ही मिलता है।” मुकुंद लाल ने कहा।
“आखिर ऐसे भी क्या गुण हैं गिरधारीलाल की बेटी सुकृति में। ज़रा मैं भी सुनूँ।” मालती ने अपनी आँखें चौड़ी करते हुए पूछा।
“अच्छे संस्कार, बड़े लोगों का सम्मान, छोटों से प्यार और आँखों की शर्म।” बेटे-पिता ने एक साथ कहा।
अर्चना कोहली ‘अर्चि’
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित
#नाम डुबोना
” नंबर जरूरी या बच्चा ?” – संगीता अग्रवाल
जीवन जी ने अपने बेटे के बारहवीं पास करने की खुशी मे एक बहुत बड़ी पार्टी रखी । अपने सभी मित्रो , रिश्तेदारो , अड़ोस पड़ोस के लोगो यहाँ तक की बेटे के मित्रो के परिवार वालों को भी बुलाया । सबको लग रहा था की जीवन जी के बेटे आयुष ने पूरे भारत नही तो कम से कम जिले मे उच्च स्थान प्राप्त किया होगा तभी इतनी बड़ी पार्टी दी है उन्होंने । सब लोग खाने पीने का मजा लेते हुए बतिया रहे थे कि तभी माइक हाथ मे लिए जीवन जी पत्नी मीरा और बेटे आयुष के साथ हॉल के बीचो बीच आये।
” मेरे सभी मित्रो और सम्बन्धियों आप लोग हमारी खुशी मे शामिल हुए उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद । मुझे आप सबको ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि मेरे पुत्र आयुष ने 60% अंको के साथ बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली है उसी की खुशी मे ये पार्टी दी गई है आप सभी मेरे पुत्र को अपना आशीर्वाद दीजियेगा !” जीवन जी ने कहा और माइक साइड रख खुद ही बेटे के स्वागत मे ताली बजाने लगे।
उनकी बात सुनकर हॉल मे खुसर पुसर शुरु हो गई। कोई जीवन जी को पागल बोल रहा था कोई सनकी। कोई उनके बेटे को भला बुरा बोल रहा था कि कैसा बेटा है सब सुविधाएं मिली फिर भी बस 60% नंबर लाया।
तभी जीवन जी के परम मित्र उनके पास आये और उनसे बोले। ” पागल है तू जो खुद का और बेटे का मजाक बनवा रहा है कोई 60% नंबर लाने पर ऐसे पार्टी देता है क्या । इसने तो तेरा नाम डुबो दिया इसे तो किसी अच्छे कॉलेज मे दाखिला भी नही मिलेगा और तू बजाय दुखी होने के खुशी मना रहा है !”
जीवन जी मित्र की बात सुन मुस्कुराये फिर उन्होंने जवाब देने से पहले माइक उठा लिया ” दोस्त मैं तुझे ही नही यहाँ मौजूद सभी लोगो को बता दूँ मुझे खुशी है मेरे बेटे ने बारहवीं पास कर ली कितने नंबर से की ये मेरे लिए मायने नही रखता। वो बचपन से पढ़ाई मे कमजोर है ये कुछ लोग जानते है वैसे भी हर बच्चा एक सा नही होता हर बच्चा टॉपर नही होता। हमें तो उसके पास होने की उम्मीद ही नही थी फिर भी उसने मेहनत की और पास हुआ हमारे लिए यही बहुत है तो हम उसका उत्साह क्यो ना बढ़ाये। क्यो उसे नाम डुबोने का ताना दे और इससे होगा क्या उसका आत्मविश्वास डगमगाएगा कल को वो कुछ गलत भी कर सकता है अपने साथ तब क्या होगा ? हमारा बच्चा हमारे पास है भले कितने नंबर लाया पर मेहनत से पास हुआ है ये हमारे लिए खुशी की बात थी इसलिए हमने आप सबको अपनी खुशी मे बुलाया ….!!” जीवन जी बोले तो उनकी सोच देख सब लोग हैरान रह गये।
” पर क्या आयुष इतने नंबरो से अपना भविष्य बना पायेगा ?” किसी ने कहा।
” क्यो नही ..क्या सभी सफल इंसान टॉपर होते है । हर किसी की अपनी क्षमता होती है मेरे बेटे ने अपनी क्षमता से ज्यादा किया इसलिए मैं खुश हूँ …आयुष बेटा मुझे तुमपर गर्व है तुम निराश मत होना हम हर परिस्थिति मे तुम्हारे साथ है !” जीवन जी बोले। आयुष भरी आँखों से पिता के गले लग गया।
दोस्तो हर बच्चा 99% नही ला सकता सबकी अपनी क्षमता होती है। अपने बच्चे को मेहनत के लिए प्रेरित कीजिये पर नंबरो की दौड़ मे उनकी तुलना दुसरो से कर उनका आत्मविश्वास मत छिनिये क्योकि आत्मविश्वास ना रहने से कुछ बच्चे निराशा की दलदल मे जा खुद का अहित कर लेते है ।
संगीता अग्रवाल
नाम डुबोना – मोनिका रघुवंशी
सुना आपने, आपकी बड़ी बहुरिया क्या गुल खिला रही है आजकल। इस कुलक्षिनी ने तो हमारा नाम डुबोने की कसम ले रखी है….. ललिता अपने पति सोमेश जी से बोल रही थी।
क्यों अब क्या कर दिया उस बेचारी ने…तुम्ही तो उसका जीना हराम किये देती हो।
बड़ी दीदी ने आज छोटे तालाब के पास वाले पार्क में उसे और दीपक को साथ देखा है पति को गुजरे अभी समय ही कितना हुआ है और ये कलमुंही नौकरी करने के बहाने पराए मर्दों के साथ गुलछर्रे भी उड़ाने लगी।और आप हैं कि मुझ ही को गलत ठहरा रहे है। आने दो आज उसे… ललिता पति की बात पर उत्तेजित होते हुए बोली।
चुप रहो ललिता,बहु घर की लक्ष्मी होती है और तुम्हे इस तरह अपनी बहू के बारे बोलना शोभा नही देता। तुम दीपक को जानती ही कितना हो।
क्या मतलब है आपका लगता है आप भी अपने बेटे को भुला चुके है तभी तो बहु का पराए मर्द के साथ जाना आपको बुरा नही लगता।
हां नही लगता मुझे बुरा, दीपक और बहू एक ही आफिस में काम करते है काम काज के सिलसिले में अक्सर साथ उठना बैठना खाना पीना सामान्य बात है।
और रही बात बेटे के गुजरने की तो किसी के चले जाने से जिंदगी नही रुक जाती ललिता, अरे उस बेचारी ने तो हमारे बेटे के जाने के बाद अपने पिता के साथ जाने से भी मना कर दिया ये कहकर कि हम दोनों फिर किसके सहारे रहेंगे।
क्या हो गया अगर उसने एक कप चाय कंही बाहर किसी के साथ बैठकर पी ली तो, कितने दिनों तक आंसू बहाकर पति के जाने का गम मनाएगी, और क्यों हम दोनों भी तो बेटे को खोने के बाद सामान्य तरीके से जीवन जी रहे हैं न, तो बहु क्यों नही।
मुझे तो खुशी है इस बात की कि अब वो सामान्य हो रही है जीवन के प्रति खुद के प्रति…
आप सही कहते है जी, बहु हमारे लिए अपना गम भुलाकर खुद को मजबूत बनाने में लगी है और मैं हूँ कि बाहर वालों की बात में आकर सोचने समझने का विवेक ही खो बैठी। अब से मैं इन बाहर वालों की बातों पर ध्यान ही नही दूंगी। मैं चाय बनाकर लाती हूं बहु भी आफिस से आती ही होगी हम तीनों मिलकर साथ मे चाय पियेंगे….कहती हुई ललिता रसोई की ओर चल पड़ी।
मोनिका रघुवंशी