प्रिया करीब पांच साल की थी, जब हम इस शहर में आए थे। हमारे तबादले की वजह से हमें हमेशा नई जगह और नए लोगों से रूबरू होने का मौका मिलता रहा… कितने लोगों से मिल कर ऐसा बँधन बँध जाता कि वो बस अपने से ही लगने लगते…. बिना किसी रक्त संबंध के वो सबसे करीबी हो जाते हैं…उनके होने से ख़ुशी मिलती हैं जाने से गम… उनके साथ हम सबको बिना झिझक कह पाते …उनके दर्द को आत्मसात् कर पाते हैं …. प्रिया के साथ साथ उसके परिवार से ऐसा ही बँधन बँध गया था ।
कुछ लोगों को भगवान पता नहीं क्या सोचकर धरती पर भेजते हैं जो जन्म के समय सामान्य दिखते पर बाद में उनकी बीमारी उन्हें सामान्य नहीं रहने देतीऔर माता-पिता को बस रुला कर चले जाते है ।
प्रिया भी उनमें से ही एक थी।
“ऐसा उसके साथ ही क्यों हुआ जय ।‘‘कहकर रूही पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई और सोचने लगी….कुछ साल पहले ही की तो बात है….
जय और रूही अपनी तीन साल की बेटी के साथ तबादले के बाद यहां रहने आये थे। बस इतना पता था पड़ोसी रमन भी जय के ही ऑफिस में काम करता था और उसकी पत्नी का नाम कंचन है।
पड़ोसी होने के नाते और मिलनसार स्वभाव की वजह से अपने में बंद रहने वाली कंचन से रूही ने जल्दी ही दोस्ती कर ली। कंचन ज्यादा बात नहीं करती थी बस जो पूछो उसका जवाब देती।
‘‘आपके घर में और कौन कौन है?’’एक दिन रूही ने कंचन से पूछा क्योंकि दोनों एक सुबह के वक्त ही अपने गेट के पास सब्जी वाले से सब्जियां लेने के दौरान ही मिलती थी। बेटी छोटी थी तो उसके साथ घर में ही सारा दिन निकल जाता था। दो तीन महीने तो रूही को पता भी नहीं चला कंचन के घर में कौन कौन है।
‘‘मेरे पति और एक पांच साल की बेटी प्रिया।‘‘कंचन टमाटर चुनती हुई बोली
‘‘ अच्छा आपकी बेटी भी है…कभी दिखाई नहीं दी….लॉन में लाया करो ना….मेरी भी बेटी है उसके साथ खेलेगी…तो उसे अच्छा लगेगा।‘‘ रूही खुश होती हुई बोली
‘‘ वो बाहर नहीं खेल सकती है रूही।‘‘ कहकर कंचन रूही को सवालों में छोड़ गई
रूही से रहा नहीं गया। उसने शाम को जय से सारी बात बताने के बाद कहा ,“कंचन ने कभी अपने घर बुलाया तो नहीं पर मेरा मन कर रहा एक बार उसको मिल आऊं।”
‘‘ ऐसा करो कल सुबह मिल आना।‘‘ जय ने कहा
दूसरे दिन किसी तरह रूही कुहू को लेकर कंचन के घर गई। कंचन रूही को देखकर हैरान हो गई।
‘‘कंचन आज मैं दहीबड़े बनाई तो सोचा तुम लोगों को भी खिला दू।‘‘ कहकर रूही ने डब्बा टेबल पर रख दिया।
रूही कंचन के घर को बारीकी से देखने लगी।कंचन अनमने ढंग से रूही को बोली “बैठो।”
रूही इधर उधर की बातें करने के बाद प्रिया के बारे में पूछा।
“आओ मैं प्रिया से मिलाती हूँ!” कहकर कंचन एक रूम में ले गई।
नीचे एक गद्दे पर प्रिया को देख रूही के कदम लड़खड़ाने लगे।
गोल मटोल सी प्रिया देखने में बहुत सुन्दर पर ये क्या किया भगवान ने उसे असामान्य क्यों बना दिया?
‘‘ भगवान ने मेरी गोद सूनी नहीं रखी पर पता नहीं क्या गलती हुई मुझसे जो इसकी सजा मेरी बेटी को दे दी…
जब ये हुई तो सब कुछ ठीक लगा पर जैसे जैसे ये बड़ी होने लगी न चलती न बोलती बस टुकुर टुकुर हमें देखती।
कस्बे में ही डाक्टर को दिखाया तो पता चला दिमागी लकवा है।वो जब तक रहेगी ऐसे ही रहेगी। खुद से कुछ नहीं कर सकती तो पूरा वक्त उसके पास ही रहना होता। पता नहीं कितने दिन की जिन्दगी है इसकी?‘‘ कहकर कंचन रोने लगी।
रूही ने कंचन का पूरा साथ दिया एक छोटी बहन की तरह उसके दुःख को कम करने का प्रयास करती रही।
कंचन कूहू पर अपनी ममता लुटाती और खुश रहने लगी थी। कुहू कंचन को मासी बोलने लगी थी।
वक्त किसी तरह गुजर रहा था कि आज पूरे तीन साल बाद सुबह सुबह रमन जय के घर आया और रोता हुआ बोला प्रिया नहीं रहीं।
रूही लगभग भागती हुई कंचन के पास गई और बस इतना ही कहा,‘‘ भगवान ने उसे मुक्ति दे दी कंचन और उसे गले लगा कर दोनों सगी बहनों की तरह दहाड़े मार कर रो पड़ी।
घर आकर रूही अभी भी उन्हीं ख़्यालों में खोई हुई थी… जय ने झकझोरते हुए कहा,“ बहुत दर्द में थी प्रिया इसलिए बस उतनी ही ज़िन्दगी थी उसके हिस्से में…. सोचो उसे मुक्ति मिल गई सब दुख तकलीफ़ से।”
“अब सोचना छोड़ो थोड़ा फ़्रेश हो जाओ….तुमको ही कंचन भाभी को सँभालना होगा ।” जय ने रूही को सहारा दे उठाते हुए कहा
“ हाँ जय सच में प्रिया की तकलीफ़ दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी…. वक़्त पर भगवान जी ने उसे उसकी तकलीफ़ों से मुक्ति दे दिया… बस अब कंचन को हिम्मत भी दे दे….।” कह रूही घर के अंदर जाकर अपनी कुहू को प्यार करने लगी।
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#बंधन
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश