रक्षाबंधन के अवसर पर मायके आई रीमा अपने पसंदीदा उसी कोने में बैठी है जहां परेशान या दुखी होने पर शादी से पहले बैठा करती थी।
शादी से अब तक 2 सालों के अंतराल में जैसे अपना यह कोना भूल ही गई थी… ऐसा होता भी क्यों ना.. इतना प्यारा ससुराल जान छिड़कने वाली सासू मां,, सर आंखों पर रखने वाला पति और हमउम्र नंद जिससे इतनी पक्की दोस्ती हो गई कि सभी उन्हें बहने बुलाते… कितनी ही बार अक्कू रीमा के साथ उसके मायके भी रहने आ जाती…
लेकिन अब अचानक से ऐसा क्या हो गया जो रिश्तों के बीच में इतना खिंचाव महसूस होने लगा है।
3 दिन हो गए हैं रीमा को मायके आए लेकिन अक्कू ने एक बार भी ना फोन किया और ना ही उसके किसी मैसेज का जवाब दिया। मम्मी जी होतीं तो उनसे शिकायत करती और डांट लगवाती लेकिन अचानक ही सब को छोड़कर उनके चले जाने से जैसे सारा परिवार बिखर सा गया है..!!
अरे रीमा यहां बैठी है,, कहां-कहां नहीं ढूंढा तुझको… चल तेरे पापा तेरी पसंदीदा इमरती लेकर आए हैं जल्दी खा ले ठंडी हो जाएंगी”… मां की प्यार भरी झिड़की से रीमा की तंद्रा टूटी।
मां अभी कुछ भी खाने का मन नहीं है आप रखा रहने दो मैं बाद में खा लूंगी..!!
क्या बात है बेटा..?? 3 दिनों से देख रही हूं तू कुछ बुझी बुझी सी है,, रोहन से कोई बात हुई है क्या.. कहीं तू झगड़ा करके तो नहीं आई है..??
ऐसी कोई बात नहीं है मां… रोहन ही परसों मुझे लेने आएंगे,, इस बार ज्यादा दिन नहीं रुक पाऊंगी..!!
समझ सकती हूं बेटा,, बहन जी की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता लेकिन अब तुझे ही उस घर को और अक्कू को संभालना है और आकाश के साथ उसके हाथ पीले करने की जिम्मेदारी भी अब तेरी और रोहन की है।
सब पता है मां लेकिन न जाने मम्मी जी के जाने के बाद अक्कू को क्या हो गया है..?? बात-बात पर चिढ़ जाती है,, गुस्सा करने लगती है,, मम्मी जी के कमरे की हर चीज ज्यों की त्यों रखी है,, घर का फर्नीचर बहुत पुराना हो गया है मैंने बदलने को कहा तो उस पर भी इतना नाराज हो गई,,
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है मां मेरी इतनी प्यारी दोस्त अचानक ही मुझे अपना दुश्मन क्यों समझने लगी। मैं क्या करूं मां… घर का माहौल बहुत ही ज्यादा बोझिल हो गया है… यहां तक कि उसने आकाश से शादी करने से भी मना कर दिया।
आकाश और अक्कू का रिश्ता तो मम्मी जी ने ही खुद से पसंद करके तय किया था,, वह तो अचानक वो चली गईं और यह शादी टल गई,, मगर मैं कैसे संभालूं अक्कू को मुझे कुछ नहीं पता..!! काश मम्मी जी होतीं…
बेटा,, जाने वाले को कोई नहीं रोक सकता.. मैं समझ गई आकांक्षा की क्या परेशानी है..?? आकांक्षा खुद को असुरक्षित महसूस कर रही है… पिता का साया तो बचपन में ही उठ गया था,, अब यू मां का चले जाना… उसके मन में असुरक्षा की भावना पैदा कर गया।
वह अपनी मां की चीजों को, यादों को सहेज कर, संजो कर रखना चाहती है और तू जाने अनजाने उस घर में उसकी मां की जगह ले रही है.. बस उसे इसी बात का डर है कि कहीं शादी के बाद तो उस घर से उसकी मां की यादों को ना मिटा दे… कहीं शादी होने के बाद उसका भाई भी उससे दूर ना हो जाए…
रीमा तू और आकांक्षा तो पक्की सहेलियां हैं ना… उसको समय दे, उससे बात कर उसके मन की गिरह को खुलने दे,, उसे बता कि तू उसकी मां की जगह लेने की कोशिश नहीं कर रही बल्कि तुझे भी उनकी कमी उतनी ही खल रही है…!!
घर की किसी भी चीज में कोई बदलाव मत कर क्योंकि अक्कू के लिए हर छोटी से छोटी चीज उसकी मां से जुड़ी है। अक्कू तेरे बचपन की दोस्त नहीं है जो बिन कहे तेरी बात समझ जाए,, तुम दोनों का रिश्ता बहुत नाजुक है और इस सबके बीच में बेचारा रोहन भी कितना परेशान हो रहा होगा..??
बेटा स्त्री चाहें तो क्या नहीं कर सकती बस खुद को मजबूत बना, थोड़ा सब्र रख और अक्कू को संभलने के लिए समय दे। अभी चल इमरती खा ले..!!
ओह मां,, आप कितनी अच्छी तरह से सब कुछ समझ जाती हो और मुझे समझा देती हो.. अक्कू के कहे बिना भी आपने उसके मन की सारी बात समझ ली और मेरे खूबसूरत से रिश्ते को बिखरने से बचा लिया। आप मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो मां.. मेरी प्यारी मां… रीमा ने मां को गले से लगा लिया और मां की हर बात को अपने मन में आत्मसात कर लिया।
जल्द ही अक्कू और रीमा की दोस्ती फिर से पहले जैसी हो गई,, रोहन ने भी चैन की सांस ली और परिवार में खुशियां फिर से वापस आ गईं।
दोस्तों कहानी को पढ़कर अपनी राय और विचार अवश्य बताइएगा।
स्वरचित रचना
नीतिका गुप्ता