न पैसा न दौलत बस प्यार चाहिए – सरोज माहेश्वरी: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :   कॉलेज का आखिरी दिन सभी दोस्त भविष्य मे मिलतें रहते का वायदा कर एक दूसरे से विदा ले रहे थे….दूर एक बेंच पर एक जोड़ा एक दूसरे को हाथ का हाथ थामे भविष्य के सुनहरे सपने देख रहा था… विशाल! मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती तुम्हें जल्दी ही अपने मम्मी पापा से बात करनी होगी  मैंने अपनी मम्मी से बात कर ली है…. हाँ श्वेता! मैं आज ही घर में बात करता हूँ।

         शाम को विशाल का फोन आया श्वेता ने धड़कते दिल से फोन उठाया… हेलो श्वेता! आज शाम को ही मेरे मम्मी पापा तुमसे मिलना चाहते हैं… खुशी के मारे श्वेता के हाथ कांपते लगे… ठीक है विशाल मैं ६ बजे तुम्हारे घर पहुंच जाऊंगी…. जल्दी से सलीके से तैयार होकर श्वेता विशाल के घर पहुँच गई …आलीशान बंगला हॉल में सफेद सोफे, मखमली कालीन, विशाल झूमर आदि सम्पन्नता की कहानी कह रहे थे…डरते हुए श्वेता ने हॉल में प्रवेश किया….

         नमस्ते अंकल ,आंटीजी.. आओ बेटा! बैठो.. अंकल मेरा नाम श्वेता है मैं और विशाल एक ही साथ पढ़ते हैं  मेरा चयन एक आईटी कम्पनी में हो गया है…  हां बेटा! हमें मालूम है. श्वेता! अपने माता पिता के बारे में बताओं… अंकल! मैं सिंगल पेरेंट की बच्ची हूं …मेरी माँ 22 बर्ष पूर्व बलात्कार की शिकार हो गईं थीं तब उनकी उम्र मात्र 18 वर्ष की थी। बलात्कारी ने सजा के भय से आत्महत्या कर ली थी… ज्ञान के अभाव में बढ़ी हुई

प्रेग्नेंसी को समाप्त करना संभव न था इसी परिणाम से मेरा जन्म हुआ…. इसमें मेरी माँ का कुछ दोष न था….माता पिता के बहुत कहने पर भी मेरी मां ने शादी नहीं की । स्नातक और फिर बी०एड करने के बाद अध्यापिका की नौकरी की और मेरी परवरिश में अपना जीवन समर्पित कर दिया।

       डॉइंग  रूम में सन्नाटा छा गया..औपचारिकता के लिए श्वेता के समक्ष चाय का कप पेश किया गया…घर के किसी सदस्य ने कुछ बात नहीं की… विशाल श्वेता को छोड़़ने गेट तक गया दोनों के बीच मौन ने अपना आधिपत्य जमा लिया…. चलते चलते श्वेता ने सुना विशाल की मां उसके पिता जी से कहा रहीं थीं, ऐसी लड़कियां दौलत जमीन जायदाद को भूखी होती हैं तभी तो हमारे भोलेभाले विशाल को इस लड़की ने अपनी सुन्दरता के जाल में फंसा लिया… ऐसी लड़की से अपने बेटे का ब्याह करके  समाज में हमारी क्या इज्ज़त रह जाती… अच्छा हुआ लड़क़ी खुद ही उठकर चली गई। 

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         इतने बड़े तिरस्कार और आघात लगने से श्वेता ने वह शहर सदा के लिए छोड़ दिया… विशाल ने भी कहीं दूसरी जगह शादी करने से साफ़ मना कर दिया एक दिन अचानक एअरपोर्ट पर श्वेता को देखकर विशाल चौंक गया…”अरे तुम! यहां ?”.”अरे विशाल तुम”…. श्वेता बोली..” हाँ! अब मैं बैंगलोर में अपनी मां के साथ रहती हूँ और वहीं पर जॉब करती हूं” विशाल बोला-” हाँ श्वेता मैं भी नौकरी चेंज करके माता पिता के साथ बैंगलोर में शिफ्ट हो गया हूं ऑफिस के काम से दिल्ली गया था।”

   विशाल ने पूछा-” तो क्या श्वेता तुमने अभी तक शादी नहीं की?” श्वेता बोली -“विशाल! मेरे पास एक  दिल था जो मैंने तुम्हें दे दिया दूसरा दिल कहां से लाती” विशाल तुम बताओं.. श्वेता तुम्हारे जाने के बाद जीवन में निराशा छा गई मैंने शादी करने से इंकार कर दिया मातापिता और मैंने तुम्हें बहुत ढूंढा पर कहीं पता चला हमारा प्यार सच्चा था ईश्वर ने हमको फिर मिल दिया तुम अपना पता बताओं मैं आज ही अपने मम्मी पापा के साथ तुम्हारे घर आऊँग़ा।

   श्वेता के घर पहुंचकर विशाल के माता पिता बोले-बेटा श्वेता! हमें माफ कर दो हमने तुम्हारे प्यार को दौलत की भूख समझा तुम्हें गंदा खून समझा यह हमारी बहुत बड़ी गलती थी… तुम तो उस माँ की बेटी हो जिसने अपने पिता की करोड़ों की दौलत को ठुकरा कर स्वयं नौकरी करके अपनी बेटी को काबिल बनाया…बहनजी ! आप  हमें माफ कर दीजिए …अपनी बेटी का हाथ हमारे विशाल के  हाथों में दे दो ..बेटा श्वेता ! अब तुम और विशाल एक हो जाओ.. बीमारी और व्यापार में हम अपना सारा पैसा और सम्पत्ति गंवा चुके हैं । श्वेता ने बड़ी विनम्रता से कहा- माँ जी, बाबूजी ! आपके  पैसे और सम्पत्ति की चाह न मुझे तब थी और न अब है… न मुझे आपका पैसा चाहिए न आपकी सम्पत्ति आप लोगों का आशीर्वाद और विशाल का प्यार ही मेरे लिए सबसे बड़ा पैसा और सबसे बड़ी संपत्ति है उससे मुझे कभी वंचित न करना…

स्वरचित मौलिक रचना

सरोज माहेश्वरी पुणे ( महाराष्ट्र)

 # वाक्य पर आधारित कहानी

न मुझे आपके पैसे चाहिए न आपकी सम्पत्ति I

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