मुट्ठी से फिसलती रेत. …. – राजश्री जैन : Moral Stories in Hindi

वसुधा जी और आकाश जी जिंदगी के इस पड़ाव पर थक का यह मान चुके थे कि उनका बेटा राघव अब उनके पास नहीं आएगा .

वो दोनों बहुत दिनों तक उसका इंतज़ार करते रहे और फिर दुखी हो कर रह जाते थे तो सोचा अब उसे भुला ही देना चाहिए वर्ना अक्सर रात को उसकी बातें करते और रोते थे , जितना उसे याद करते , उतना मन दुखी होता था.

कुछ दिनों बाद वसुधा जी को हार्ट अटैक आया ,तब भी उन्होंने राघव को खबर नहीं दी , सोचा आएगा तो नहीं रहने दो , लेकिन शायद उसके मित्र ने जो  पडोसी  था, उसने बता दिया.

राघव अपनी पत्नी नीता को लेकर आया .

माता -पिता कि ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा . उन्हें लगा उनका प्यार करने वाला बेटा उनके दुःख -दर्द के समय लौट आया है , उसे अपने माता-पिता की  बहुत परवाह है .

एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि सब बदल गया . नीता ने जब देखा राघव का मन अपने माता-पिता कि तरफ द्रवित हो रहा है , और उसका प्यार बढ़ता जा रहा है , साथ ही राघवकी बातों से उसे अंदाज़ा लगने लगा कि शायद वह वापस विदेश न जाये , यही बसने का सोच रहा है तो उसे अपनी चिंता हो गयी .

उसने अपनी बहनों से सलाह ली कि अब क्या करे …उन्होंने समझाया कि कुछ भी हो तुम अपने पति को ले कर वापस चली जाओ वर्ना ये माता -पिता के मोह में यही रह जायेगा.

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नीता ने भरसक प्रयास किया हर छोटी बात का बतंगड़ बनाना शुरू किया , घर में बात बात में क्लेश शुरू किया ….माँ से कहा कि मैं और राघव किसी भी कीमत पर यहाँ नहीं रहेंगे…बड़ी मुश्किल से वहां अच्छी नौकरी मिली है , आप यहाँ कोई नर्स और फुल टाइम मेड रख लो …आपका काम चल जायेगा ….हमें   वहां जाना जरूरी है….माँ से उसने यहाँ तक कह दिया कि आपको इतना परेशान करेंगे कि आप खुद ही हमें यहाँ से जाने के लिए कहोगी.

उसे इतना भी ख्याल नहीं आया कि ऐसी बीमारी में एक बेटा अपनी माँ के लिए कुछ करना चाहता है तो ऐसा व्यवहार न करे .

राघव से कहा कि इन लोगों  को हमारा यहाँ आना सुहा नहीं रहा है. कुछ इन्ही तरह कि बातों से आखिर उसने राघव को जाने के लिया मना लिया. बिना समय गवाए खुद ही टिकट बुक कर दिया .

बसुधा जी को रोते हुए सिर्फ एक ही बात का जवाब नहीं मिलता था कि इतना अच्छा बेटा था उनका , अब इतना कैसे बदल गया , मेरे साथ इतने प्यार और अपनेपन से रहता था , अब सब कैसे भूल गया …..और न ही अब इसे अपना कोई फर्ज़ याद है …बस एक यही प्रश्न दिमाग में अटका रहता था .

शायद होनी को यही मंजूर था. आखिर नीता ने वही किया जो वो चाहती थी . माँ -बेटे में कलह करवा कर राघव को विदेश ले गयी ……

यह सत्य घटना पर आधारित है .

स्वरचित –राजश्री जैन

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