मुट्ठी भर आसमां – पूनम भटनागर : Moral Stories in Hindi

 नवकुंज  एक अच्छी सोसायटी है, जो कि अभी दो साल पहले ही बनी है। यहां उच्च तथा उच्चतम श्रेणी में आने वाले रहते हैं। सभी सुविधाओं से सुसज्जित यह सोसायटी आने वालों की नजर में आ जाती है। इन्हीं घरों में से रहने वालों में एक घर में मिनाक्षी भी अपने माता-पिता तथा बड़े भाई के साथ रहती है।

वह बी ए फाइनल ईयर की छात्रा है। जो कि पढ़ाई के साथ नृत्य में निपुण हैं पर उसके बड़े भाई को उसका नृत्य करना भाता नहीं है। वह उससे छिपा कर की कार्य क्रमों में भाग लेती रहती है। और पुरूसकृत भी होती है पर बड़े भाई को किसी न किसी तरह पता चल ही जाता है और वह घर पहुंचने पर उससे लड़ाई करता व कहता कि सब छोड़ कर शादी कर अपने घर जाओ।

घर में भी उसने कहा रखा है कि अब इसकी शादी जल्दी ही करा दो। इसके लिए वह आए दिन कोई न कोई रिश्ता लेकर आया रहता। मिनाक्षी अभी शादी नहीं करना चाहती। कालेज में भी कयी छात्र उसे पसंद करने का सहारा लेकर उसके आगे पीछे रहते पर मिनाक्षी उनकी पसंद नहीं बनना चाहती। वह नृत्य में आगे बढ़ना चाहती है फिर किसी ऐसे युवक से शादी करना चाहती है

जो उसकी भावनाओं को समझ कर उससे प्रेम करें। वह नित नए लाए जाने वाले रिश्ते से खीजी रहती और यही कुछ करने की चाह रखते हुए भी उसे कोई अवसर नहीं मिल पा रहे और वह भाई को भी कुछ कह नहीं पा रही। कभी उसे लगता कि सब कुछ छोड़ कर वह भाई की बात मान कर घर बसा ले, पर कोई भी

रिश्ता उसे अपनी पसंद पर खरा उतरता नहीं लगता। अपने सपनों को कैसे सच कर पाए,व भाई को कैसे मना करे इसी में लग कर एक अनिश्चितता में फंसी बैचेनी को जन्म देने वाली जिंदगी जीने को मजबूर है।

   एक अन्य घर में सजेली तथा उसका पति पुरू रहते हैं। जो कि दोनों अलग-अलग कंपनियों में काम करते हैं। ये दोनों सर्विस करते हुए एक मशीनी जिंदगी जी रहे हैं। पुरू की शिफ्टिंग की नौकरी है। वह महीने में आधा महीना तो दिन में काम करता है और आधा महीना उसकी रात की ड्यूटी रहती है।

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आफिस में काम ज्यादा होने पर वह अपने अफसरों की डांट भी खाता है।सजेली के आफिस का भी कुछ ऐसा ही हाल है। वह भी अपने मातहत अधिकारियों से खुश नहीं रह पाती कभी तो उसका काम उन्हें पसंद नहीं आता कभी उनका व्यवहार उसे तोड जाता है। दोनों ही अपने अपने क्षेत्रों में नाकामी ज्यादा पा रहे हैं

ऐसा नहीं कि दोनों अपनी अपनी नौकरियां मे बदलाव नहीं चाहते पर चाहने मात्र से ही तो सब नहीं होता। दोनों के लिए नौकरी करना कितना जरूरी है यह सिर्फ वही जानते थे। और नौकरी न छोड़ पाने से जो रिक्तता दोनों की जिंदगी यों में पसरती जा रही थी उसका असर उनके आपसी व्यवहार में झलकने लगा था,

दोनों अनिर्णय की अवस्था झेलते हुए आपस में तकरीबन रोज ही झगड़ लेते। व एक दूसरे पर दोषारोपण कर अपने अपने आफिस की स्वाभिमान की लड़ाई घर में कर रहे थे। सजेली अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी। वह जितना सहेजने की कौशिश करती उतना ही मसला असम्मान जनिक बन जाता। ऐसा नहीं था कि दोनों को आपस में प्यार नहीं था पर दोनों ही हालात के मारे थे।

  इसी सोसायटी में एक घर ऐसा भी था जिसमें मीरा जी भी रहती थी कहने को तो वह 50पार कर चुकी थी, पर कुछ कर  गुजरने की तमन्ना अभी भी सीने में दबी थी। इनके परिवार में दो बेटे एक बहू तथा पति है। पति यूं तो ठीक ठीक नौकरी में थे पर एक बड़े परिवार के चलते उनकी तनख्वाह कहा खर्च हो जाती थी ,

इसका पता मीरा जी को कभी नहीं लग पाया। पहले तो दबेढके रहने के कारण वे कुछ नहीं कह पातीं थी बाद में अपने बच्चों के खर्चे इतने हो गये कि वे कभी अपने लिए पति-पत्नी नहीं सोच पाये। स्वयं मीरा जी इस स्थिति से बाहर आना चाहतीं थीं पर क्या करती वह इतनी पढ़ी लिखी नही थी कि कुछ मदद कर पातीं

पर उन्होंने निटिंग का कोर्स किया हुआ था उसे मशीन लगा कर बड़े पैमाने पर करना चाहतीं थीं पर इसके लिए पैसों का अभाव सामने आ जाता था इतना धन कभी इकट्ठा हो ही नहीं पाया कि वे अपनी आकांक्षा को मूर्तरूप दे पातीं।

अब हालांकि कहने को बड़ा बेटा कमाता है पर उसकी भी पत्नी है व आय भी अधिक नहीं है पति तो रिटायर हो चुके हैं। सो जमा-पूंजी अपने शौक पर नहीं लगा सकती। पर दिली इच्छा सर उठाती है कि कहीं से पैसों का इंतजाम हो जाए तो वह अपने कामकाज को आगे बढ़ाएं।

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इन तीनों की परिस्थितियों में एक बात स्पष्ट है कि इन को यदि इनके हिस्से का अगर एक मुट्ठी आसमां मिल जाए तो ये तीनों ही अपने हुनर के चलते आसमां पर छा जाने की हिम्मत रखते हैं। यही होता है हम अपनी जिंदगी की जिम्मेदारी को निभाने में इतने सलंग्न होते हैं कि हुनर होते हुए भी अपने हिस्से के मुट्ठी भर आसमां की बाट जोहते हुए रह जाते हैं कि कहीं से कोई मसीहा आकर उनकी मदद करें और उनका योगदान परिणाम का धोतक बनें। पर हरेक के साथ ऐसा अवसर हाथ नहीं आता।

* पूनम भटनागर।

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