“दीप्ति! क्या तू मेरे घर आ सकती है? मुझे तुझसे कुछ कानूनी परामर्श लेना है।” पूजा थोड़ा गुस्से में थी।
“क्या हुआ? दीप्ति ने सशंकित भाव से पूछा।
“तू पहले घर आ,तब बताऊँगी।” कहकर पूजा ने फोन रख दिया।
शाम के समय दीप्ति कचहरी से सीधे पूजा के घर
पहुँची। पूजा की सास ने दोनों के लिए चाय-नाश्ते का प्रबंध
किया। पूजा की सास बहुत उदास लग रही थी। चाय-नाश्ते के पश्चात पूजा, दीप्ति को अपने कमरे में ले गई। अंदर जाकर पूजा ने दरवाजा बंद कर लिया।
“क्या बात है? दरवाजा क्यों बंद कर रही है?” दीप्ति ने पूछा।
“यार! कहीं मेरी सासू माँ ने सुन लिया तो?”पूजा बोली।
“अच्छा! अब बता? तू क्या बताना चाहती थी?” दीप्ति ने पूछा।
“यार, दीप्ति? मैं अपनी सास की रोक-टोक से परेशान आ गई हूँ। वह चाहती है कि मैं घर के कामकाज में हाथ बटाऊँ, उनके हिसाब से चलूँ जैसे कि मैं उनकी नौकर हूँ।” पूजा तल्खी से बोली।
” तो क्या आंटीजी स्वयं कुछ काम नहीं करतीं ?” दीप्ति ने पूछा।
“करती हैं पर मैं क्यों करूँ? मैंने तो यही सोच कर शादी की थी कि शादी के बाद रानी बन कर रहूँगी पर मेरी ऐसी क़िस्मत कहाँ? तू मेरा तलाक़ करवा दे ताकि मैं अपने मायके में चैन से रह सकूँ।”पूजा बोली।
“और मायके वाले तुझे राजकुमारी बनाकर रखेंगे? पूजा! मेरी सखी! शादी के बाद मायके वालों को भी बेटी बोझ लगने लगती है। क्या तेरी मम्मी और भाभी तुझे काम नहीं करवाएँगे? नौकरी भी तू नहीं कर पाएगी, मैं जानती हूँ और अंकल,आंटी के बाद क्या तेरे भाई- भाभी तुझे बर्दाश्त करेंगे? अच्छी तरह सोच- समझकर फैसला करके फिर मुझे बता देना, मैं तेरे साथ हूँ। अब मैं चलती हूँ।”कहकर दीप्ति बाहर निकली तो पूजा की सास आँखों में आँसू लिए खड़ी थी।
“आंटी जी! आप चिंता मत कीजिए, पूजा मेरी दोस्त है, घर तो मैं उसका टूटने नहीं दूँगी। मैंने अदालत में तलाक़ के बाद परिवारों को रोते देखा है इसलिए इस परिवार को मैं रोने नहीं दूँगी और आप सबकी मुस्कान को बरक़रार रखने के लिए हरसंभव प्रयास करूँगी।”दीप्ति ने कहा तो पूजा की सास ने उसे गले से लगा लिया।
स्वरचित
डॉ ऋतु अग्रवाल
मेरठ, उत्तर प्रदेश