आप जिस व्यक्ति को फोन कर रहे हैं वो अभी अन्य कॉल पर व्यस्त है ….
बाप रे , तीन बार फोन लगा चुकी ये मम्मी भी ना ….. मेरा फोन देख रही है फिर भी काट कर मुझे कॉल बैक नहीं कर रही …पता नहीं इतना जरूरी बात कहां हो रहा है उनका …गुस्से में रीत ने फोन काट दिया….
थोड़ी देर बाद फिर फोन लगाया….
कहां बिजी हैं मम्मी….?? एक घंटे से फोन लगा रही हूं ….
अरे हां बेटा ….वो मयूरी का फोन आ गया था….. बात ही कुछ ऐसी थी कि मैं बीच में फोन काट नहीं पाई थी.
खैर बोलो…. सब ठीक तो है ना बेटा..
हां सब ठीक है मम्मी…..मैं सोने जा रही हूं काफी थक गई हूं….. सोची बता दूं…. वरना रात भर फोन कर करके तंग करती रहेंगी….. रीत ने अपनी मम्मी पूनम से कहा….।
अरे बेटा तू नाराज हो गई क्या, तेरा फोन नहीं उठाई तो….? दरअसल मयूरी काफी परेशान थी…उसका कुछ पर्सनल इश्यू था. वो समझ नहीं पा रही थी …किससे शेयर करे…
फिर उसने बड़ा साहस जुटाकर…. मुझ पर विश्वास कर अपनी बातें बताई और कुछ सलाह मशविरा लेना चाहा….. पूनम ने वस्तुस्थिति स्पष्ट करते हुए कहा …..।
नहीं मम्मी…. नाराज नहीं हूं… पर हर कोई आपको ही विश्वासी सच्चे दिल की…. या सही निर्णय लेने वाली क्यों समझते हैं …..कभी आपके रिश्तेदार…. कभी अड़ोसी पड़ोसी…. सब केवल आपको ही क्यों……..कभी सोचा है…??
आजकल कौन किसके पचड़े में पड़ना चाहता है मम्मी …..सब केवल हां में हां मिलाना जानते हैं…. किसके दिल में क्या है और जुबां पर क्या…. कोई नहीं जानता….
ज्यादा अच्छी बनने के चक्कर में ना आप भी कुछ ज्यादा ही…..
खैर ….आप जानो और आपका काम, रीत ने सपाट और बड़े बेरुखी से मम्मी को जवाब दिया….।
पूनम ने अभी भी रीत को समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी…..
अरे ऐसा नहीं है बेटा…. हर लोगों की अपनी अपनी धारणा होती है. और तू जिसे…. पचड़े में पड़ना बोल रही है ना बेटा …..सही मायने में ये एक ऐसी मानसिक सहायता है… जो सामने वाला बड़े विश्वास के साथ अपेक्षा करता है ….. और मुझे तो इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती…. पूनम ने मजबूती से अपना पक्ष रखना चाहा…. ।
मम्मी वो तो ठीक है पर आपने कभी सोचा है सभी लोग सिर्फ आपको ही अपना राज और समस्या क्यों बताते हैं…..
क्योंकि आप एक ऐसी कूड़ेदान (डस्टबिन ) हो जिसमें कितना भी कचरा भर दो वह इधर-उधर फैलता नहीं है….।
लोग अपना कचरा (नेगेटिविटी) आपके ऊपर डाल कर निश्चित हो जाते हैं और उन्हें पता होता है कि… ये बातें कहीं बाहर नहीं फैलेंगी….. बस और कुछ नहीं…
और उन रिश्तों के बारे में सोचा है जिनके बारे में सामने वाले बात करते हैं ….जब उन्हें पता चलेगा कि….
उनके खास अपने उनके ही घर के लोग उनके आपस की बातें आपसे बताते हैं और पंचायत करते हैं… आप कितनी भी सच्ची हो अच्छी हो आप गलत ही दिखेंगी मम्मी..!
आप इतनी महान जो हैं…. तो सामने वाले को शायद कभी पता ही ना चले….. पर जिसे आप अपनी महानता समझ रही हैं ना…..आज के जमाने में वो बेवकूफी है …..किसको किसकी कितनी पड़ी है……!
किसके पास इतना फालतू समय है….
रीत की बातों से एक बार पूनम को धक्का तो जरूर लगा और वह सोचने पर मजबूर भी हो गई कि…. क्या किसी की बातें (समस्याएं ) सुनना गलत है ….? और सुनकर अपने अनुसार निष्पक्ष रुप से सलाह देना गलत है…?
पूनम ने सोचा…. मैं तो सच्चे दिल से वही करती हूं जो मैं चाहती हूं और मेरे साथ नहीं हो पाता…. मुझे तो कोई ऐसा नहीं मिला जो अपना बहुमूल्य समय देकर मेरी बातों को ध्यान से सुने और निष्पक्ष रुप से सलाह मशविरा करें ……लोगों को तो जब भी कुछ बोलो …हमसे ज्यादा समस्याएं सामने वाले के पास ही होती हैं….।
मैंने तो कभी किसी को भड़काने या अलगाव होने टाइप की समझाइश दी ही नहीं… हमेशा जोड़ने सकारात्मक परिणाम लाने का ही प्रयास किया है..!
चुप क्यों हो गई मम्मी… क्या सोचने लगीं . ? रीत ने चुप्पी तोड़ी …अरे कुछ नहीं बेटा मैं भी तुझे कुछ बातें साफ-साफ बता देना चाहती हूं….
मैं कभी भी किसी के पचड़े में खुद नहीं पड़ती..जब लोग बहुत परेशान होते हैं या दुखी होते हैं तो मुझे याद करते हैं …..और कई दफे मेरी बातों पर अमल कर उन्हें समस्याओं से निजात भी मिली है इसीलिए शायद उनका विश्वास मेरे प्रति और भी बढ़ गया है…।
क्या है ना बेटा …कभी-कभी छोटी-छोटी बातों में ” मनमुटाव ” हो जाया करता है ..शायद हम बोलना कुछ चाहते हैं , सामने वाला समझ कुछ लेता है, या हमारा मूड तबीयत कुछ विपरीत हो जो हमारे व्यवहार में झलक रहा हो पर हमारा अभिप्राय सामने वाले को दुखी करना नहीं होता.. पर हमारे इस व्यवहार से हो सकता है वो दुखी हो.. और मन ही मन उसके प्रति या उसके विचारों के प्रति थोड़ी मनमुटाव हो जाए…. तो मेरी कोशिश रहती है एक बार अपनी सोचने का अंदाज या पहलू थोड़ा बदल कर , एक अलग दृष्टिकोण से समझाया जाए …हो सकता है रिजल्ट पॉजिटिव मिले बस यही कोशिश रहती है मेरी… और सच में बेटा मुझे बहुत बार इसमें सफलता भी मिली है..!
और तू जिन्हें फालतू या कूड़ेदान वगैरह-वगैरह बोल रही है ना …..
मेरी समझ में वो मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि है ….मैंने एक चीज हमेशा नोटिस की है बेटा…. लोग बहुत कुछ सहायतार्थ कर देते हैं…. पर जो सबसे ज्यादा कीमती है और वास्तव में बस उसी की लोगों को जरूरत होती है वही नहीं देते …..और वो है……. समय……
हां बेटा …. ” समय देकर किसी की बातों को ध्यान से सुनना ….फिर विचार कर सही परामर्श देना ….और ये बात सिर्फ अपने तक ही सीमित रखना…. बहुत बड़ी सहायता है “…..
उसमें भी उस वक्त जब हम विषम परिस्थिति में होते हैं…
किसी भी परिस्थिति में मेरी वजह से यदि सकारात्मकता आती है बस मेरे लिए ये काफी है…
रीत बेटा …..तू ध्यान से मेरी बातों को सोचना फिर बताना क्या मैं अभी भी गलत हूं….. बेटा ये काम इतना आसान भी नहीं होता ….इसके लिए भी बहुत धीरज की जरूरत होती है…।
ओह मम्मी….. इतनी गहराई से तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था ….असल में आप …
” माँ के रूप में मेरी इतनी अच्छी दोस्त हो ना…. तो मुझे कभी किसी और की जरूरत ही नहीं पड़ी …..पर आप औरों के लिए भी इतनी ही अच्छी दोस्त हो ….ये बहुत खास बात है “….. !
और यही खास बात आप को सबसे अलग विशिष्ट पहचान दिलाता है.
अब समझ में आया ….सब आपके ऊपर ही विश्वास क्यों करते हैं ….सॉरी मम्मी मैंने आपको कूड़ेदान और ना जाने क्या-क्या कहा….।
नहीं बेटा …मैं अपनी बातों को तुम तक पहुंचा पाई ….ये भी मेरी उपलब्धि है …..वरना आजकल के बच्चों को समझाना बहुत मुश्किल है… वो किसी की बात सुनने और मानने को तैयार ही नहीं होते… रीत और पूनम दोनों हंसने लगे….।
साथियों , मेरे इस व्यक्तिगत विचार पर आपके प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा…
( स्वरचित मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित अप्रकाशित रचना )
साप्ताहिक विषय # मनमुटाव
संध्या त्रिपाठी