मूलमंत्र – सोनिया निशांत कुशवाहा

कितनी प्यारी सी थी वह, हमेशा सबको खुश रखने की कोशिश करती, सबकी पसंद पूछती, सबके मन का काम करती!शायद उसके मन की गहराइयों में बसा था कि सबको खुश रखना है। इसीलिए बिना अपने बारे में सोचे वो दिन भर कभी मम्मी के ,कभी समीर के तो कभी मेरे आगे पीछे घूमती। पापा से ज्यादा बात करने की उसकी हिम्मत नहीं होती लेकिन उनके लिए स्नेह और सम्मान उसकी आंखों में साफ नज़र आता। मुझसे 10 साल छोटे भाई समीर की दुल्हन बहुत ही प्यारी थी। यूँ तो समीर की अपनी पसंद थी सना, लेकिन घर में सबकी पसंद बनने के लिए उसकी मेहनत साफ दिखाई दे रही थी. घर के सारे काम उसने अपने जिम्मे लिए हुए थे। नयी नयी शादी थी बहरहाल समीर को भी वो पति के रूप में अभी ज्यादा जान नहीं पायी थी। वैसे भी मर्द का रूप प्रेमी से पति बनते ही आश्चर्ययजनक रूप से बदल जाता है।समीर और सना के बीच प्रेमी जोड़े की सी कोई बात नज़र नहीं आती थी। समीर अपना मर्दाना रौब उसपर जमाने से कभी नहीं चूकता था।फिर भी सना सबकुछ अच्छे से संभालने का भरसक प्रयास कर रही थी।

एक दिन मां से निर्देशों की लंबी फेहरिस्त जहन में रख वो रसोईघर में पहुँची। पीछे पीछे मैं भी उसकी मदद करने के लिए वहां पहुँच गई। मुझे देखकर वो कुछ सकपका सी गई।मुझे आराम करने की हिदायत देते हुए बोली, “मेरे होते हुए आप रसोई में काम क्यूँ करेंगी! दीदी आप आराम करो कुछ चाहिए हो तो मुझे बताना”। सना के आग्रह करने पर मैं लौट आई। वो अकेली ही घंटो रसोई में खपती रही।

एक दिन मां को घर में झाड़ू लगाता देख उसने माँ के हाथ से झाडू ले ली, “मै करूंगी ना मम्मी आप क्यू परेशान होती हैं”।

मैं सब देख रही थी ।जल्दी ही मेरा भी मायके से विदाई का समय आ गया। जाने से पहले मैं सना के साथ अकेले में कुछ समय बिताना चाहती थी। मैंने सना को छत पर बुलाया। वह सकुचाते हुए ऊपर पहुंची,उसका हाथ पकड़ कर उसे सहज करते हुए मैंने कहा, “सना, आज जो मैं तुमसे कहने जा रही हूँ ध्यान से सुनना। शायद कोई और कभी ये बात तुम्हें ना समझाए।


सबसे पहले तुम ये बात समझ लो कि तुम इस घर की बहू हो कोई सुपर वुमन नहीं। बिना किसी से मदद लिए दिन रात घर में पिसने से तुम्हें कोई बहादुरी का मेडल नहीं मिलेगा, ना ही कभी पर्फेक्ट बहू होने का टाइटल मिलेगा क्यूँकि पर्फेक्ट बहू कोई होती ही नहीं है हमेशा कोई न कोई गलती निकाल ही दी जाती है। तुम्हारी भावना मैं समझती हूं लेकिन सबका बोझ अपने कंधो पर लेकर चलोगी तो थक जाओगी और फिर वहीं से संबंधो में खटास आनी शुरू हो जाती है। अगर माँ तुम्हारी किसी काम में मदद करती हैं तो कभी मना मत किया करो। मदद की जरूरत तो सबको होती है इसमे कोई बुराई नहीं है।घर को चलाने की जिम्मेदारी अकेले तुम्हारी नहीं है घर सबका है तो जिम्मेदारियां भी सबको मिलकर उठाने दो। तुम्हें पता है 11 साल हो गए मेरी शादी को, शादी के समय मुझे भी माँ ने यही समझा कर भेजा था कि सबको अपना बनाओ। मैं भी सबको शुरू में अपनी मदद करने से मना कर देती थी फिर धीरे धीरे मुझसे सबने पूछना ही छोड़ दिया। शुरुआती कुछ साल तो सब ठीक रहा लेकिन फिर मुझपर भी दो बच्चों की जिम्मेदारी आ गई। कहने को तो घर में सास ससुर पति देवर सब हैं लेकिन वो लोग अपना खुद का काम करने के लिए भी मुझपर निर्भर है। उनसे किसी भी तरह की मदद की कोई उम्मीद नहीं है अब। मेरी आज ऐसी हालत है कि सुबह से लेकर रात तक मै चकरघिन्नी बनी घूमती हूँ लेकिन तब भी कोई ख़ुश नहीं है। जिसका भी कोई एक भी काम छूट जाए मैं एक बुरी पत्नी, माँ, या भाभी बन जाती हूँ। तुम्हें पता है इसकी जिम्मेदार मै खुद हूँ। मैंने ही कभी किसी को कोई काम करने की आदत नहीं डाली और इसलिए मुझे भुगतना पड़ रहा है। तुम ये गलती मत करना।

बहू भी इंसान होती है उसे भी आराम की जरूरत होती है कोई कभी तुमसे नहीं कहेगा कि तुम दो पल आराम कर लो।अपने कल के लिए आज से ही सब ठीक कर लो।

मेरी बात सुनकर सना की आंखे भर आई। दीदी आपने जो कहा शायद कोई भी भाभी अपनी ननद से ऐसी बात सुनने की अपेक्षा नहीं करती। लेकिन आपको देखकर मुझे समझ आ गया कि आप मेरी दीदी पहले है और ननद बाद में। आपकी नसीहत को मैं गांठ बँध कर रखूंगी।

मैंने प्यार से सना को गले लगा लिया वो भी बिल्कुल बच्चों की तरह मुझसे लिपट गई।ससुराल में स्नेह की चाह हर स्त्री को होती है मुझसे वह स्नेह पाकर उसका मन फूलों की तरह खिल उठा था।और हो भी क्यूँ ना खुशहाल जीवन का मूलमंत्र जो उसको मिल गया था।

सोनिया

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!