मुक्ति  – कमलेश राणा : Moral Stories in Hindi

क्या जिंदगी है मेरी? न कभी मन का खाना न पहनना बस सारे दिन काम करते रहो। जो काम हुआ उसकी कभी कोई तारीफ नहीं और भूले से भी अगर बिगड़ जाए तो इतना हंगामा करती हैं ये कि सारे मोहल्ले वालों को पता चल जाये कि आज रागिनी ने यह काम बिगाड़ दिया है बस अखबार में छपने की ही कमी रह जाती है।

रागिनी गुस्से में बड़बड़ाए जा रही थी..औरों के घर भी तो बेटियां हैं वो कैसे पलकों पर रखते हैं उन्हें और एक ये हमारी मां हैं जिन्हें हमें पूरी तरह से परफेक्ट बनाने का भूत सवार है। यह काम ढंग से करो वरना सास कहेगी कि मां ने कुछ नहीं सिखाया.. पक गई मैं तो सारे दिन यही पुराण सुनते – सुनते.. न जाने भगवान मेरी कब सुनेगा और वो दिन आयेगा जब इस घर से मुक्ति मिलेगी मुझे।

कहां है रागिनी.. दही – बड़े बना ले आज तो देख तेरी मौसी का फोन आया है वो आ रही हैं।

क्या सच्ची अम्मां.. रागिनी की खुशी का कोई पार नहीं था। मौसी जब भी आतीं सभी के लिए बहुत सारे गिफ्ट ले कर आतीं। खासतौर से रागिनी के लिए तो न जाने क्या – क्या लातीं।। उनके कोई बेटी नहीं थी तो वो रागिनी को अपनी बेटी की तरह ही प्यार करतीं। उनकी बातों में इतनी मिठास होती कि रागिनी को शक होने लगता कि क्या सच में अम्माँ इन्हीं की सगी बहन है। कहां अम्मां की आवाज में मिठास ढूंढे भी नहीं मिलती और कहां मौसी की जुबान से शहद ही टपकता रहता।

बाहर कार रुकने की आवाज आई तो रागिनी भागकर बाहर आई। ड्राइवर मौसी के लिये गेट खोल रहा था। वह बड़ी अदा के साथ कार से उतरीं। चमचमाती गाड़ी, झिलमिलाते महंगे कपड़े, दिपदिपाते सोने के आभूषण, मैचिंग चप्पलें उस पर उनका गोरा रंग, त्वचा तो इतनी सॉफ्ट कि लगता ही नहीं कि वह पचास साल की महिला हैं। स्कीन का ग्लो देखकर तो युवतियां भी शर्मा जाएं। उनके सौंदर्य ने मुझे मोहपाश में बांध लिया था।

कहां खो गई रागिनी?? क्या दिन में ही सपने देखने लगी अब अंदर भी ले जायेगी या बुत बनकर मुझे ही निहारती रहेगी। मौसी ने मुझे कंधे से पकड़ कर हिलाते हुए कहा।

मैं बुरी तरह झेंप गई मानो मेरी चोरी पकड़ी गई हो। हां – हां चलो न मौसी.. तब तक मां भी बाहर निकल आई थीं.. अरे कब से दरवाजे पर ही खड़ा कर रखा है मेरी बहन को देखो तो कितना पसीना आ गया.. ये लड़की भी न कोई काम ढंग से कर ही नहीं सकती। अब जल्दी से अंदर आ जा.. कहते हुए मां उनका हाथ पकड़ कर प्यार से ले गई।

मैं उन्हें देख कल्पनाओं के संसार में पहुंच गई थी और उनकी जगह खुद को देख रही थी। मां के तानों से मैं स्वप्न लोक से बाहर आई। मन कसैला हो गया था।

खाना खाने के बाद मौसी ने अम्मा से कहा.. दीदी आप रागिनी को मेरे साथ भेज दें तो मेरे साथ रहकर यह शहरी तौर – तरीके सीख जायेगी वैसे भी शादी की उम्र तो हो ही रही है यदि कोई अच्छा रिश्ता मिल गया तो शहर में ही इसकी शादी कर देंगे।

अरे नहीं नहीं छोटी.. मैं इसे कैसे भेज सकती हूं। मेरे जिगर का टुकड़ा है यह मेरी दुनियां तो मेरे बच्चों के इर्द- गिर्द ही घूमती है। यही तो मेरे घर – आंगन की रौनक है।

पहली बार मुझे मां के प्यार का अहसास हुआ.. क्या यह वही मां है जो पूरे दिन मुझ पर चिल्लाती रहती हैं कभी भी उन्होंने अपना प्यार शब्दों में जाहिर नहीं किया या फिर मैंने कभी उनकी भावनाओं को महसूस नहीं किया।

पर मेरे ऊपर तो मौसी और शहर की चकाचौंध का ऐसा जुनून सवार था कि मां की बातों ने मेरे दिल को छुआ ही नहीं और मैं खुशी – खुशी उनके साथ जाने को तैयार हो गई।

छोटी तुम इसे ले तो जा रही हो पर इसकी पढ़ाई जारी रखना। मैं यही सोच कर सब्र कर लूंगी कि बेटी कॉलेज में पढ़ रही है।

जाते समय मां ने मुझे इस तरह अपने सीने में भींच लिया मानो कोई उनकी अमूल्य निधि उनसे छीने ले जा रहा है। रागिनी मां के इस रूप को पहली बार देख रही थी और उनके प्यार को महसूस भी कर रही थी।

जब तक कोई व्यक्ति या वस्तु हमारे पास रहती है तो हमें उसकी कद्र नहीं होती पर जैसे ही वह हमसे दूर होने लगती है वह हमें बहुत प्यारी लगने लगती है यही हाल रागिनी की मां का था।

खैर रागिनी आंखों में नये सपने संजोए मौसी के साथ शहर आ गई। शुरू – शुरू में तो वह बड़ी उमंग के साथ हर काम करती लेकिन बाद में उसे महसूस होने लगा कि वह यहां सिर्फ काम करने के लिए ही लाई गई है। मौसेरे भाई- बहन उससे सिर्फ काम लायक ही बात करते वो अपनी ही दुनियां में मस्त थे। यहां आ कर मौसी ने एक बार भी उसके एडमिशन के बारे में बात नहीं की।

उसने चाहा था कि उसका वक्त बदले पर ऐसे बदलेगा यह तो कभी नहीं सोचा था अब उसे अपने घर और अम्मा की बहुत याद आती थी। जब भी उसकी अम्मा का फोन आता मौसी कह देती कि बिटिया बहुत खुश है उसे बात करने का मौका ही नहीं देती और कभी बात करवाती तो अपने सामने ही फोन देती तो वह कुछ बोल ही नहीं पाती।

मौसी के बच्चों का न सोने का समय था और न जागने का.. वो देर रात घर आते। कई बार तो उसने प्रथा दीदी को नशे में धुत आते देखा जब मौसी ने उससे कहा कि लड़कियों को इतनी रात तक इस तरह बाहर नहीं रहना चाहिए तो वह तुनक कर बोली.. आप अपने प्रवचन अपने पास ही रखिए। अपना ध्यान मैं खुद रख सकती हूं।

बेटा #वक्त से डरो..बुरा वक्त कह कर नहीं आता पर उनकी कोई नहीं सुनता। जैसा उसने सोचा कि मौसी इतनी अमीर हैं तो बहुत खुश होंगी लेकिन यहां की असलियत तो कुछ और ही थी। उन्होंने चेहरे पर खुशी का नकली आवरण ओढ़ रखा था।

धीरे – धीरे बच्चों की गुस्सा वो रागिनी पर निकालने लगीं जब भी बोलतीं उससे दुत्कार कर ही बात करती। यहां जो मजे कर रही हो तुम उसके बारे में तो तुमने कभी सोचा भी नहीं होगा, एहसान मानो मेरा जो तुम्हें यहां ले आई।

रागिनी का दिल चीख – चीख कर कहना चाहता कि नहीं चाहिए मुझे ये सुविधाएं मैं तो अपनी अम्मा की छत्रछाया में ही ठीक थी पर तब मैं असली – नकली का भेद नहीं समझ पाई। उनकी डांट में भी मेरी भलाई थी और इनकी मीठी बोली में भी स्वार्थ छिपा था।

जब रागिनी की मां से नहीं रहा गया तो वे बेटी से मिलने शहर की ओर चल पड़ीं। रागिनी किचन में चाय बना रही थी तभी उसने सुना बैठक में मौसी उनके बच्चों में तीखी बहस हो रही थी।जैसे ही वह चाय ले कर पहुंची मौसी ने गुस्से में चाय उसके ऊपर फेंक दी उसी समय रागिनी की मां आ पहुंची और कुछ गरम छींटे उन पर भी गिरे।

उन्हें सामने देख मौसी जड़ हो गईं। मां ने गुस्से से थर – थर कांपते हुए कहा.. #वक्त से डरो छोटी .. ऐसा न हो कि इस व्यवहार की तुम्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़े।तुम तो बड़े प्यार से मेरी बेटी को लाई थी अगर मुझे पता होता तुम उसके साथ ये जुल्म करोगी तो मैं कभी नहीं भेजती।

वे एक पल के लिए भी वहां नहीं रुकी और बेटी का हाथ पकड़ कर अपने घर ले आई। वे रोती जा रही थीं और कहती जा रही थीं मुझे माफ कर दे बिटिया मैं नहीं जानती थी कि उसका असली चेहरा इतना कठोर होगा।

इस बात को तीन साल बीत गए थे।आज पोस्टमैन एक लिफाफा दे गया था जो वृद्धाश्रम की ओर से आया था। उसमें मौसी का पत्र था उनकी तबीयत बहुत खराब थी और वे हमसे मिलना चाहती थीं।

मैं और मां जब वहां पहुंचे तो एक कृश काया को व्हील चेयर पर हमारे सामने लाया गया जिसे देख कर हम दंग थे क्या ये वही मौसी थीं जिन्हें अपने ऊपर बड़ा घमंड था। उन्होंने हाथ जोड़ कर हमसे माफी मांगते हुए कहा.. दीदी आपने उस दिन कहा था कि #वक्त से डरो छोटी.. तब मुझे जरा भी भनक नहीं थी कि दुःखी मन से निकली बात सच भी हो सकती है।

रागिनी के वहां से आने के बाद बच्चों ने धोखे से प्रॉपर्टी अपने नाम करवा ली और मुझे यहां छोड़ गए ताकि वे मनमानी कर सकें। सही कहा था आपने वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता। अब मुझे पता चला कि हमारा आज का व्यवहार आने वाले कल में हमारी स्थिति सुनिश्चित करता है अगर आप मुझे क्षमा कर देंगी तो शायद मेरी मुक्ति आसान हो जाएगी।

#वक्त से डरो

कमलेश राणा 

ग्वालियर

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