मुखौटा – रश्मि वैभव गर्ग : Moral Stories in Hindi

अरे तुम? नूतन को होटल के बार में डांस करते हुए देखकर विशाल ने चौंकते हुए कहा।

वहाँ की चकाचौंध में विशाल नूतन से ज़्यादा बात तो नहीं कर सका, लेकिन उसने नूतन का फ़ोन नंबर ले लिया था।

विशाल को देखकर नूतन भी सहज नहीं हो पा रही थी, वो डांस तो कर रही थी ,लेकिन अनमने मन से।वो सोच रही थी कि विशाल उसके बारे में कितना ग़लत सोच रहा होगा।

विशाल अपनी पत्नी के साथ मसूरी घूमने आया था। अचानक उसने बार में अपनी सहपाठी नूतन को देखा तो आश्चर्यचकित हो गया था।

विशाल ने अपनी पत्नी नीति को सब बताना ही उचित समझा। फिर दोनों पति पत्नी खाने की टेबल पर बैठ गये। दोनों ने कुछ खाना ऑर्डर किया।फिर विशाल ने बात शुरू की ,मैं और नूतन दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे।

नूतन पढ़ने में होशियार थी और सुंदर भी। क्लास के सभी लड़के नूतन को पसंद करते थे।

मैं भी पढ़ाई में अच्छा था , तो एक दिन नूतन ने मुझसे कुछ पढ़ाई संबंधी प्रश्न किया। मैंने उसका जवाब दे दिया। फिर जब तब वह मुझसे प्रोब्लम पूछ लिया करती थी।

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धीरे धीरे हम दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित होने लगे।

हम दोनों एकदूसरे के एहसास समझने लगे थे ।

एक दिन अचानक नूतन ने बताया कि उसके पापा ने उसका रिश्ता तय कर दिया है।

दिल्ली के किसी धनाढ़य परिवार में रिश्ता तय हुआ था। नूतन की फीकी हंसी उसकी उदासी बता रही थी।

नूतन पढ़ाई करना चाहती थी लेकिन उसके ससुराल वाले उसकी आगे पढ़ाई के पक्ष में नहीं थे। वे जल्द से जल्द विवाह करना चाहते थे।

नूतन विवाह बंधन में बंध गई उसके बाद मेरा और नूतन का संपर्क ख़त्म हो गया।

विवाह के बाद आज बार में ही देखा है।

आप कल नूतन से मिल लो, विशाल की पत्नी ने कहा। ठीक है उसका फ़ोन नंबर है कल उससे बात करता हूँ ,विशाल ने कहा।

अगले दिन नूतन के बताये स्थान पर विशाल और उसकी पत्नी पहुँच गये।

औपचारिक वार्तालाप के बाद नूतन ने सहज होते हुए कहा ,तुम सोच रहे होगे में बार में कैसे हूँ? मेरी शादी तो बहुत पैसे वाले घर में हुई थी।

ज़िंदगी कभी कभी ऐसे मोड़ पर ले आती है कि पीछे मुड़ने का मौक़ा ही नहीं देती।

घरवालों और समाज की ख़ातिर में अपनी इच्छा के विरुद्ध विवाह बंधन में बंध गई।

दिल से पूरे परिवार को अपनाना चाहती थी। कुछ समय बाद ही पता चला कि मेरे पति गंभीर बीमारी से ग्रसित थे। मौत दस्तक दे रही थी। इसी लिये वह जल्दी विवाह करना चाहते थे। मेरे पति अपने माँ बाप की इकलौती संतान थे, इसलिए अपना वंश बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने बीमार बेटे की मुझसे शादी की।

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नियति को मानते हुए मैंने अपने पति की दिलोजान से सेवा की।

कुछ ही दिनों में मैं गर्भवती हो गई। मेरे सास ससुर की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई।

कुछ समय बाद एक बेटे की माँ बन गई मैं, लेकिन दिन व दिन मेरे पति की हालत गंभीर होती जा रही थी।

उनके महँगे इलाज़ ने परिवार की आर्थिक स्तिथि कमजोर कर दी थी।

मैं हर हाल में उनको बचाना चाहती थी, मैंने उनको अपनी किडनी भी दी।

मौत बड़ी निष्ठुर होती है, भावनाओं से परे वह तटस्थ अपने कर्तव्य का निर्वाह करती है। एक मासूम के सिर से पिता का साया उठ गया और में बुत बनी जीवन की कठिनाइयों को देख रही थी। उनके जाने के एक साल बाद एक दिन मेरे सास ससुर डॉक्टर को दिखाने गये और अचानक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।

मैं और उनके परिवार का इकलौता वारिस ,मेरा बेटा रह गया। मेरे पापा ने मुझे अपने साथ चलने को कहा, लेकिन मैंने जीवन को चुनौती मानते हुए अपने पैरों पर खड़े होने को कहा।

कोशिश करने पर यहाँ मुझे बार में जॉब मिल गई। मैं और मेरा बेटा दोनों अपनी छोटी सी दुनियाँ में मस्त रहते हैं, बस… कहते कहते नूतन चुप हो गई।

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बस क्या विशाल ने उत्सुकता से पूछा। बहुत आग्रह करने पर नूतन ने बताया कि तुम जो मेरा चेहरा देख रहे हो वो अब वैसा नहीं है।

मेकअप से मेरे चेहरे पर बहुत निशान हो गये हैं.. उनको छुपाने के लिए मुझे और गहरा मेकअप करना पड़ता है जो मेरे चेहरे की त्वचा को और ख़राब करता है।

विशाल ग़ौर से नूतन के चेहरे को देख रहा था.. साथ ही उसका पुराना गुलाब सा बेदाग़ चेहरा याद कर रहा था।

ज़िंदगी की जंग के लिए पहने मुखौटे को विशाल .. अपने दिल में उतार रहा था।सोच रहा था कि सचमुच कुछ मुखौटों की चमक.. उनका दर्द बखूबी छुपा देती है लेकिन उनके भीतर का दर्द सिर्फ़ वो चेहरे ही जानते हैं।

समाप्त

रश्मि वैभव गर्ग

कोटा

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