मानसी, आज शाम को तुझे लड़के वाले देखने आ रहे हैं, कॉलेज से जल्दी आ जाना, मै तो कह रही हूं कि तू आज कॉलेज ही मत जा, ताकि अच्छे से उनके आने से पहले ही तैयार हो सकें और फिर बाकी काम भी तो होते हैं, उनमें भी हाथ बंटा देगी, दादी ने कहा तो मानसी के माथे पर तनाव की रेखा उभर आई, उधर मानसी की मां कल्पना जी ने उसके चेहरे की रेखाएं पढ़ ली।
मांजी, वो आज मानसी का जरूरी प्रेक्टिकल है, तो उसके लिए इसे जाना ही होगा, दोपहर तक आ जायेगी, फिर काम तो मै और सुनंदा संभाल लेंगे, वैसे भी जब हम दोनों देवरानी -जेठानी है तो मानसी को चिंता करने की काम संभालने की कोई जरूरत ही नहीं है।
ये सुनकर शांति देवी का गुस्सा फूट पड़ा, तुम दोनों इसके ससुराल में भी काम करने जाओगी? और ये महारानी वहां भी घूमती रहेगी? कब से कह रही हूं, मेरे जीते जी इसके हाथ पीले कर दो, पर तुम सबको तो बेटी को पढ़ाने का शौक है, कितना ही पढ़-लिख लें पर चौका तो आज भी संभालना होता है, जिम्मेदारी तो उठानी आनी चाहिए, बड़े परिवार में जायेगी तो
कैसे काम संभालेगी? वहां भी घूमती फिरती रहेगी।
ये सुनकर मानसी अंदर तक कांप गई, उसके कॉलेज का अंतिम वर्ष है, और वो अपनी तृतीय वर्ष की परीक्षा देना चाहती है, आज गृह विज्ञान का प्रेक्टिकल था, और वो देना जरूरी था, घर में दादी की ही चलती थी, उसने कुछ सोचा और बोली, दादी मै जल्दी से बस प्रेक्टिकल देकर आ जाऊंगी और आते ही बाकी काम भी करवा दूंगी, आज जाकर सहेलियों से मिल आऊं, फिर मौका कहां मिलेगा? आपको भी तो आपकी बचपन की गांव की सहेलियां याद आती होगी, शांति देवी ये सुनकर पिघल गई।
ठीक है, चली जा, फिर तो तुझे इस घर से जाना ही है,
मानसी कॉलेज चली गई।
मानसी का अभी विवाह करने का बिल्कुल भी विचार नहीं था, वो अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी, लेकिन घर में दादी और चाची चाहती थी कि उसकी शादी हो जाएं, क्योंकि चाची को अपनी बेटी की शादी की बड़ी जल्दी थी, जब घर की बड़ी बेटी की शादी हो जाती, तभी वो अपनी बेटी की शादी कर पायेगी,
छोटा सा कस्बा, संयुक्त परिवार, वो ही पुराने विचार, पुरानी सोच, इसी सोच के चलते मानसी को बाहर पढ़ने नहीं भेजा, और मानसी को सामान्य पढ़ाई करनी पड़ी।
संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी मानसी अभी शादी नहीं करना चाहती थी, दूसरी वो संयुक्त परिवार में जाना नहीं चाहती थी, उसने अपने मन की बात अपनी मां को बता दी थी, लेकिन कल्पना जी के हाथों में कुछ नहीं था, वो तो बस घर में कठपुतली थी, जिसे हर कोई अपने इशारों पर नचाता था।
दादा -ससुर, दादी -सास, सास-ससुर, चार ननदों, देवर सभी का कहना और बात मानते-मानते कल्पना जी की अपनी कोई सोच, कोई इच्छा नहीं रही थी।
मानसी इसी उधेड़बुन में थी, और उसने आज सोच लिया था कि वो संयुक्त परिवार में विवाह के लिए कभी हामी नहीं भरेंगी।
दोपहर तक वो घर वापस आ गई तब तक सारी तैयारियां हो चुकी थी, शाम तक उसे भी तैयार करवा दिया गया, उसे भी साड़ी पहनाकर लड़के वालों के सामने बिठा दिया गया।
उसे देखने काफी लोग आये थे, लड़के का नाम नमन था, और वो परिवार के साथ ही व्यापार संभालता था, उसके दादा-दादी, मां-पिताजी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, उनके बच्चे और तीन बहनें, दो भाई। सबके अपने प्रश्न अपनी जिज्ञासाएं, बात करने के अपने तरीके, सभी कुछ अलग थे।
नमन को मानसी पसंद आ गई थी, और सभी ने मिलकर उनका रिश्ता तय कर दिया, लेकिन मानसी मन ही मन इतना बड़ा परिवार देखकर शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन दादी और पिताजी के दबाव में उसे हां करनी पड़ी।
मां, मै ये शादी नहीं करना चाहती, जब उसने कल्पना जी को बोला तो वो चौंकी नहीं क्योंकि उन्हें पता था कि उनकी बेटी इतने बड़े परिवार में जाना नहीं चाहती है।
मानसी, अब तो ये रिश्ता तय हो गया है, अब ना तू कुछ कर सकती है और ना ही मैं कुछ कर सकती हूं।
कल्पना जी ने समझाया।
मानसी का चेहरा उतर गया, मेरी पढ़ाई का क्या होगा? तृतीय वर्ष की परीक्षाएं है, और बीच में ही शादी हो जायेगी, संयुक्त परिवार वाले तो बहूओं को पढ़ने तक नहीं देते।
ये सुनकर कल्पना जी हंसने लगी, अरे!! ऐसा कुछ नहीं है, नमन ने कहा है कि वो अपनी पत्नी की पढ़ाई पूरी करवायेगा और अगर वो आगे पढ़ना चाहती है तो उसे भी पढ़ायेगा।
मानसी हैरान थी, वो समझ रही थी, उसे भी शादी के बाद अपनी पढ़ाई छोड़नी होगी।
वो फिर बोली, मां इतना बड़ा परिवार है, सब साथ में रहते हैं, मैं तो सुबह से रात तक रसोई में ही लगी रहूंगी, मेरी जिंदगी भी आपकी ही तरह हो जायेगी, मै इस तरह की जिंदगी नहीं जीना चाहती हूं।
अच्छा है ना, बड़ा परिवार है, सुख-दुख में साथ रहोगे, एक-दूसरे का काम करते रहोगे, और जीवन का हर रंग-ढंग देखोगे, असली सुख तो संयुक्त परिवार में ही है, फिर तू तो बड़ी नसीब वाली है, तुझे पता है, सबने आसपास ही घर बनवा रखे हैं, एक-दूसरे के घरों से घर जुड़े हुए हैं, अभी सबने थोड़े साल पहले ही निर्णय लिया है कि आज की पीढ़ी के
बच्चों की शादियां होंगी तो उनकी सोच अलग है, शायद वो साथ रहना पसंद नहीं करें, इसलिए समय रहते ही बंटवारा कर लिया और सब आसपास ही रहते हैं, कोई किसी के जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता है, सबका अपना निजी जीवन है, साथ भी है और अलग भी है।
मानसी ये सब सुनकर हैरान भी थी और खुश भी, वो तो कुछ और ही सोच बैठी थी।
उसके चेहरे की खुशी देखकर कल्पना जी बोली, परिवार की एकता ही सच्ची ताकत होती है, साथ रहकर लड़ाई हो बातचीत बंद हो, उससे अच्छा है कि अलग रहकर बातचीत होती रही और आना-जाना भी लगा रहें।
संयुक्त परिवार में एक साथ रहना पहले के जमाने में अच्छा माना जाता था, हांलांकि अच्छा तो अब भी है, लेकिन आजकल की पीढ़ी में सहनशीलता नहीं है, और आजकल की बहूएं भी कामकाजी हो गई है, तो उन्हें साथ रहना पसंद नहीं है, लेकिन साथ रहने में जो सुख है वो अलग रहने में नहीं है।
तुझे पता है, मै शादी होकर आई तो काम का बोझ बढ़ गया था, लेकिन जब मैं मायके जाती थी तो तेरे पापा का खाना-पीना तेरी दादी और चाची देख लेती थी, जब मैंने तुझे जन्म दिया तो तेरे दोनों भाइयों को घरवालों ने संभाल लिया, उनके स्कूल और टिफिन की जरा भी चिंता नहीं थी।
जब तेरे नानाजी का निधन हुआ तो मै तुरंत चली गई, मुझे तेरे पापा और भाइयों की चिंता नहीं थी, संयुक्त परिवार में सब कुछ आसान हो जाता है, लेकिन साथ में सबकी जिम्मेदारी भी आ जाती है, आपको अपना नहीं पूरे परिवार का सोचकर चलना होता है, एकल परिवार में आजादी होती है, साथ में परेशानियां भी होती ही है।
दुःख में तो अपना परिवार ही काम आता है, इसलिए हमेशा परिवार से बनाकर रखना, सबको मान-सम्मान देगी तो बहुत सारा प्यार भी मिलेगा।
अब तो जमाने के साथ लोगों की सोच भी बदल गई है, जैसे तेरे ससुराल वालों की सोच आधुनिक है, तुझे वहां बहुत सुख मिलेगा, परिवार में एकता भी है और निजी स्वतंत्रता भी है, संयुक्त परिवार में सारे रिश्ते मिल जाते हैं, कभी अकेलापन और अवसाद जीवन पर हावी नहीं होता, त्योहार और उत्सव साथ में मनाने से आनंद आता है।
अगर कोई एक भाई आर्थिक रूप से कमजोर होता है तो दूसरा उसे सहारा दे देता है, अब व्यापार सबका एक ही है, बस रहते अलग-अलग हैं, पर साथ ही है, ये भी अलग तरह का संयुक्त परिवार ही तो है।
मानसी के मन का सारा बोझ उतर गया था, अब वो खुशी-खुशी शादी के लिए तैयार हो गई थी।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
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