मुझे कोई मलाल नहीं… – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“माँ जल्दी से अस्पताल आ जाओ… दादी की तबियत बहुत ख़राब है… वो बार बार तुम्हें याद कर रही है ।”वंशिका ने जैसे ही फ़ोन पर येकहा मानसी  जल्दी से अपना मोबाइल और बैग हाथ में लेकर वंशिका के अस्पताल की ओर भागी

अस्पताल के बिस्तर पर मनोरमा जी असहाय नज़र आ रही थी… क्षमा याचना उनके चेहरे पर व्याप्त था पर मानसी आज भी तटस्थ थी।

टूटे हुए शब्दों में मनोरमा जी मानसी  से कहने लगी,” बहु अब ना बचूँगी… पर मुझे मुक्ति तब तक ना मिलेगी जब तक तू मुझे माफ नाकरेगी…विवान और वंशिका में हमेशा पक्षपात करती रही काश पहले से ही दोनों को एक आँख से देखती तो ना वंशिका से

और नातुझसे मुझे नज़रें चुराने की ज़रूरत पड़ती… तुमने आज तक एक शब्द पलट कर ना कहें मुझसे …पर आज तू बोल बहू नहीं तो मेरीआत्मा मुझे हमेशा झकझोरती रहेंगी ।”

“ क्या कहूँ माँ जी… सच तो यही है आपके उस व्यवहार ने मेरी बेटी को डॉक्टर बना दिया… पति के गुजर जाने पर मैंने हिम्मत कर कामपर निकलना शुरू किया…आज आपके उसी पक्षपात ने हमारी ज़िंदगी तो संवार दी पर विवान को देखो आपने क्या बना दिया ।” कमरेमें एक कोने पर खड़े विवान की ओर देखती मानसी  ने कहा जो नज़रें झुकाएँ खड़ा था

कमरे में उसके अलावा जेठ जेठानी भी थे जो आज मानसी से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे ।

“ बहू ये पकड़…।” कहते हुए तकिये के नीचे से एक लिफ़ाफ़ा मानसी को देते हुए मनोरमा जी ने आँखें मूँद ली

सब काम क्रिया सम्पन्न होने के बाद मानसी ने वो लिफ़ाफ़ा खोल कर देखा जिसमें एक चिट्ठी लिखी थी..

“ बहू मुझे पता है तू मुझे कभी माफ़ नहीं कर पाएँगी… मैंने काम ही वैसे किए…मेरे दो ही बेटे….जब बड़े के बेटा हुआ मैं बहुतनाची….खुश थी मेरे घर का चिराग़ रौशन करने वाला आ गया… पर जब तेरे बेटी हुई… मानो मुझ पर व्रजपात हुआ…

वंशिका के जन्मके साल भर बाद मेरा बेटा सड़क दुर्घटना का शिकार हो चल बसा… तुमसे बेटे की उम्मीद ख़त्म हो गई थी…अब जो भी था वो विवान हीथा…मुझे उससे ख़ास लगाव रहने लगा.. वंशिका और तू मुझे फूटी आँख ना सुहाती थी…

उपर से तेरी जेठानी कान भरने में माहिर … मैंबस बहकावे में आती चली गई और उसको ही सर्वेसर्वा मान लिया…और परिणामस्वरूप तुम्हें घर से निकाल दिया… पर देख ना क़िस्मतको कुछ और ही मंज़ूर था… विवान के कुकृत्य ख़त्म नहीं होते

और वंशिका दिन पर दिन अपने स्कूल कॉलेज का नाम रौशन करनेलगी…. अब जब तबियत बिगड़ी सबने अस्पताल लाकर छोड़ दिया… यहाँ वंशिका मिली जिसने अपनी दादी की जी भर सेवा की… तूसामने नहीं आती थी पर मुझे पता है मानसी बहू तू वंशिका से मेरी हर पल की खबर लेती थी… बस बहू मुझे माफ़ करना…।”

मानसी चिट्ठी एक तरफ़ रख कर बोली,” माँ मैंने आपको तभी माफ़ कर दिया था जब मैं घर से निकली … क्योंकि उस देहरी के भीतरआपने मेरा बुरा सोचा पर उसके बाहर निकल कर मैं खुद को साबित कर पाई और मेरी बच्ची ने हर दुख दर्द को भूला कर पापा के सपनेको पूरा करने के लिए जी जान लगा दिया…

जो उसके पैदा होते ही बोले थे बेटी को डॉक्टर बनाएँगे….उसके लिए कहीं ना कहीं आपकावो एक आँख से ना देखने वाला रवैया ही काम कर गया नहीं तो लाड़ प्यार में पता नहीं वंशिका क्या बनती… इन सब के लिए आपकोधन्यवाद देती हूँ …आप जहाँ रहे ख़ुश रहे मेरी तरफ़ से मन में कोई मलाल ना रखें।

स्वरचित 

रश्मि प्रकाश 

#मुहावरा 

#एकआँखसेदेखना 

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