मुझे अलग रहना… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

“हम फ्रिज का पानी नहीं पीते… हमारे यहां तो अभी भी मटका ही चलता है… जैसे फ्रिज में बोतल भर कर डालती हो… वैसे ही मटके में पानी भर दो… दो मटके हैं… दोनों भर कर रख देना…!”

 पूरा दिन तो बस मटके भरने में ही निकल जा रहा था… ऊपर से खाना, बर्तन, घर का काम अलग से… पूरे आठ लोगों का परिवार… इतने सारे काम और उसके साथ में मटका भी बढ़ते रहो… पीने वाले थे सब… लेकिन भरने का काम बस अंकिता का…

 अंकिता को ससुराल आए अभी छ महीने तो हुए थे… जब पहली बार आई थी तो खूब आवभगत हुई थी… थाली हाथ में, पानी कमरे में, वाह क्या दिन थे वह भी… महीने भर ससुराल के सुख लेने के बाद… दो-चार दिन को मायके गई तो ऐसा लगा…” यहां किसी को मेरी कदर ही नहीं है… कितना आराम था वहां… सास, जेठानी, भतीजा, भतीजी यहां तक की ससुर और जेठ भी… उसकी सुविधा का पूरा ख्याल रखते थे…पति सलिल तो खैर पति ही था… तो सर आंखों पर रखता ही था…

 यहां आकर फिर वही… अंकिता यह कर… अंकिता वह कर… मां ने तो कहा भी था…” ससुराल का असली मजा दूसरी बार में आता है बिटिया रानी… अभी तो बस आवभगत देख कर आई हो… संयुक्त परिवार है… काम तो करना ही पड़ेगा…!”

 लेकिन अंकिता का मन तो सातवें आसमान पर था… “ऐसा कुछ नहीं है… वे लोग बहुत अच्छे हैं… और थोड़ा बहुत काम तो करना भी चाहिए ना… बैठे-बैठे मैं भी तो बोर हो जाती थी…!”

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 इस बार तो ऐसा झटका लगा कि अंकिता को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था… सास ने उसके सामने ही जेठानी से कहा…” अरे बड़ी बहू, अब तुम आराम करो… छोटी बहू आ गई है… अब वह संभाल लेगी सब…!” अंकिता ने तो हंसकर हां कर दिया… लेकिन इस तरह सारे काम उसी के मत्थे चढ़ जाएंगे… इसका अंदेशा उसे नहीं था…

 धीरे-धीरे सब काम उसी को बोला जाने लगा… बच्चों को हर काम में चाची चाची… ससुर जी छोटी बहू… और सलिल का काम तो उसे करना ही था…

 कुछ ही दिनों में अंकिता का जी उखड़ने लगा… वह चिड़चिड़ी होने लगी… अब धीरे-धीरे सलिल से कहीं और ट्रांसफर करवाने की बात करने लगी…

 घर में सबको पता चला तो सभी अंकिता को सुनाने लगे…” क्या बहू कल आई हो और आज जाने की बात करने लगी… कितना अच्छा घर से नौकरी है… क्या दिक्कत है तुम्हें…!”

 अंकिता समझा पाने में असमर्थ थी, कि उसे क्या दिक्कत है…वह अपना मन लगाने की कोशिश करना चाहती थी… मगर उसके लिए तो समय चाहिए… उसके पास समय तो था ही नहीं… खुद को देने को…

 एक दिन घड़े का पानी खत्म होने को था… सासू मां ने अंकिता से कहा तो अंकिता ने अनसुना कर दिया… दोबारा बोलने पर उसने कहा कि बच्चों को बोल दें… बच्चे ना बोलकर निकल गए… जेठानी ने भी कुछ बहाना बना दिया… रात तक घड़े नहीं भरे… जब रात अंकिता सारे काम निपटाकर सोने जाने लगी… तब ससुर जी ने फिर उसे ही आवाज लगा घड़ा भरने को कहा… अंकिता ने पानी से भरा भगोना लिया और घड़े में डालने वाली थी कि वह घड़े पर गिर गया फटाक की आवाज से घड़े के कई टुकड़े हो गए … अंकिता ने उसे उठाकर दूसरे घड़े पर खुद ही पटक दिया… रात के सन्नाटे में इतनी जोर की आवाज से सभी भागे चले आए…

” क्या हुआ…!”

” आप पूछ रही थीं ना कि क्या दिक्कत है मुझे.… मुझे इन घड़ों से दिक्कत है… जिसे घड़े का पानी पीना हो वह भरे और पिए… और बताऊं क्या-क्या चीज से दिक्कत है… मैं घर का सारा काम अकेले नहीं कर सकती…!”

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” काम ही कितना है… हम भी तो लग ही रहते हैं…!”

” हां आपको भी पता है… आप कितना लगी रहती हैं… सिर्फ चार सब्जियां काट देना ही मदद करना नहीं होता… आप सुबह-सुबह टोकरी भर सब्जियां लेकर बैठ जाती हैं… यह भी बना दो… यह भी बना दो… यह खराब हो रही है… इसे भी काट देती हूं… उसके बाद दिन भर मैं बस रसोई में अपना सर पटकती रहूं… और दीदी… उन्होंने तो लगता है अपने बच्चों को मेरे ही जिम्मे छोड़ दिया है… यह खाना है तो चाची से बोलो… नहीं चाहिए तो चाची से बोलो… पापा जी को भी बस मेरा ही नाम याद रहता है… हां ठीक है चार बार में एक बार आप मेरा नाम भी ले लें… लेकिन अगर दिन भर आप किसी काम के लिए मुझे ही बुलाएंगे, तो मैं उतनी जिम्मेदारी नहीं उठा सकती… मैं किसी किसी दिन बच्चों की मां बन सकती हूं दीदी… रोज नहीं…

 साफ और खरी बात… मुझसे इतना काम नहीं होगा… मुझे अलग रहना है… सब की उम्मीदों का टोकरा, अपने सर पर लेकर चलना… यह मुझसे नहीं होगा…!”

 उसकी बातें सुनकर ससुर जी ने सभी को अपना-अपना काम स्वयं करने की नसीहत दी… लेकिन दो-चार दिनों में फिर सब जस का तस हो गया…

 अंकिता ने इस बार अपने पति से कहा…” सलिल मैं मायके जा रही हूं… जब आप दूसरा घर ले लें तो मुझे ले आइएगा… मैं संयुक्त परिवार में नहीं रह सकती…!”

 कुछ दिनों तक तो सलिल नहीं माना… लेकिन फिर अंकिता की जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ा… घर में भी सब ने उसे अपनी गृहस्थी अलग कर लेने की नसीहत दी… तो उसने अलग घर का इंतजाम कर लिया, और अंकिता को वापस ले आया……

 **** क्या कहेंगे आप… इसमें अंकिता की गलती है या उसके परिवार की… या फिर उस सोच की जो यह मानने को तैयार ही नहीं है कि जमाना बदल गया है… लड़कियों से हद से ज्यादा अपेक्षाएं करना बंद किया जाए… उसे इंसान समझा जाए, रोबोट नहीं…सहनशीलता और धैर्य की मूर्तियां टीवी फिल्मों में ही होती है… या पहले होती होंगी… 

 मेरी समझ में संयुक्त परिवारों के टूटने का सबसे महत्वपूर्ण कारण यही है… यदि साथ रहना है तो घर में सबका सहयोग और सम्मान अपेक्षित है… यदि नहीं तो संयुक्त परिवारों का चलन बिल्कुल ही समाप्त हो जाएगा…****

रश्मि झा मिश्रा 

#संयुक्त परिवार…

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