बात कुछ पुरानी है ,,बनारस में श्रीराम के एक बहुत बड़े भक्त हुआ करते थे । उनका नाम था लक्ष्मी दास उनके विवाह को तीन दशक बीत चुके थे परंतु अब तक संतान सुख ना मिल पाया था । वे साल दो साल में बनारस से अपनी पत्नी उमा देवी के साथ श्री राम के दर्शन करने के लिए अयोध्या आया करते थे ,,,।
एक बार लक्ष्मीदास जी जब अयोध्या जा रहे थे तो मंदिर के करीब ही उनकी गाड़ी खराब हो गई ,,,। लक्ष्मी दास जी ने अपने ड्राइवर से पूछा ,” क्या हुआ ,,,गाड़ी में क्या दिक्कत आ गई है ,,, हमें मंदिर तक पहुंचने के लिए कितना समय लगेगा ?
ड्राइवर बोला ,” बाबू जी , कुछ नही बाबू जी गाड़ी का इंजन गर्म हो गया है अभी हमें आगे जाने के लिए करीब आधे घंटे का इंतजार करना होगा ।
यह सुन कर सेठ लक्ष्मी दास जी की पत्नी उमा देवी बोली,” सुनिए जी , हमारे आराध्य हमारे इतने ही निकट हैं तो क्यों गाड़ी में बैठकर समय व्यर्थ करना । चलिए हम दोनों पैदल ही भगवान के दर्शन के लिए चलते है । और फिर मैं रास्ते से भगवान को अर्पित करने के लिए मैं फूल रास्ते से ले लूंगी ।” सेठ जी को पत्नी की बात ठीक लगी और दोनों पति-पत्नी मंदिर दर्शन के लिए निकल पड़े ।
रास्ते में फूलों की एक छोटी सी दुकान देखकर दोनो पति पत्नी फूल लेने के विचार उस दुकान की ओर बढ़े । दुकान पर एक बालक बैठा हुआ फूलों को उन पर लगे कांटों से अलग कर रहा था , उसके चेहरे पर तेज था ,,, उसका आभामंडल बरबस ही सबको अपनी तरफ आकर्षित कर लेता था ,,, उसे देख कर अनायास ही दोनो पति – पत्नी उस पर मोहित हो गए । सेठ जी तो उस बालक की ओर इतने आकर्षित हुए कि उनके मन में उस बालक को अपना पुत्र बना लेने की इच्छा हिलोरे मारने लगी,,,।
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सेठ जी बोले ,” बेटा तुम यह काम क्यों करते हो ,,, मेरे साथ बनारस चलो, मेरा कोई पुत्र भी नहीं है मुझे औलाद का सुख मिल जाएगा और तुम्हें भी जीने का सहारा ,,,। “
लक्ष्मीदास जी का यह प्रस्ताव सुनते ही जहां उस बालक को प्रसन्न हो जाना चाहिए था , इसके विपरीत वह बालक बिना रुके अपना कार्य करता रहा ,,,। उमा जी ने सेठ जी का वही प्रश्न दोबारा उस बालक के सामने दोहरा दिया । अब बालक ने तुरंत सेठ जी के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया ।
बालक द्वारा अनायास लिए इस फैसले पर सेठ जी अचंभित हो गए,,, जिस बालक को छोटी सी आयु में माता पिता के सहारे और का प्रेम की आवश्यकता थी । वह बिन कुछ सोचे विचारे अपने हाथ में आए इतना अच्छा अवसर ऐसे ही जाने दे रहा था ।
सेठ जी ने उस बालक से इसके पीछे का कारण जानना चाहा तो उस बालक ने उत्तर दिया , ” सेठ जी , आप मुझे अनाथ समझ कर सहारा देने की कोशिश कर रहे है , मुझे किसी आपके सहारे की कोई आवश्यकता नही है ,,,। जिन श्री राम जी को अपना आराध्य मान कर उनके दर्शन करने इतनी दूर से आए हैं , वही श्री राम मेरे जीवन जीने का सहारा हैं ,,, मैं उन्हें ही अपना पिता मानता हूं ।
आप ही सोचिए मैं कितना सौभाग्यशाली हूं जो प्रतिदिन मुझे उनके चरणों में पुष्प अर्पित करने का अवसर मिलता है । भले ही आप दुनिया के सबसे शक्तिशाली और अमीर व्यक्तियों में से एक होंगे परंतु फिर भी आप कभी साल में एक दो बार ही प्रभु दर्शन को आते हैं और वही दूसरी और मैं इतना खुशकिस्मत हूं कि प्रतिदिन लोगों द्वारा मुझसे खरीदे गए पुष्प , मेरे हाथों से होकर मेरे आराध्य के चरणों तक पहुंचते हैं ” ।
अब आप ही बताइए सेठ ज़ी,”क्या ऐसी जिंदगी मुझे कहीं और मिलेगी,,,जिन्हे संपूर्ण जगत अपना पिता मानता है उनके सानिध्य में रह कर भला मुझे किसी और के सहारे की क्या आवश्यकता है ।
सेठ जी अचंभित थे कैसे यह छोटा बालक इतने ज्ञान की बात कह रहा है ,,, कैसे को दुनिया की चमक धमक से कोई लेना देना नही है ,? वह बालक इस कदर भगवद भक्ति में डूबा है की संसार के ऐशो आराम उसे आकर्षित नहीं कर पा रहे थे ,,,,। सेठ जी उस बालक को देख कर दंग रह गए थी ।
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उसकी बातें सुनकर सेठ जी को अपनी अज्ञानता का एहसास हो गया था । वे जिस बालक को अनाथ समझ कर उसे सहारा देने की कोशिश कर रहे थे । उसी बालक ने अपने विचारों से सेठ जी के ज्ञान चक्षु खोल दिए थे । उन्होंने बालक से उस गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति कर ली थी जो उम्र के इस पड़ाव तक उन्हें कहीं से प्राप्त ना हो पाई थी ।
बालक से मिलकर सेठ जी और उनकी पत्नी संतान ना होने के दुख से मुक्त हो गए थे , उनका मन परिवर्तित हो गया । संसार के समस्त बच्चों में उन्हें अपनी संतान नजर आने लगी थी । उसके बाद सेठ जी ने कई धर्मशालाएं , अस्पताल और विद्यालयों का निर्माण कराया और भगवान की भक्ति करते हुए समाज सेवा में अपना बचा हुआ जीवन यापन करने लगे ।
स्वरचित मौलिक
#सहारा
पूजा मनोज अग्रवाल
दिल्ली