मुझ पर झूठा इल्जाम मत लगा…. – भाविनी केतन उपाध्याय

” सुधा, तुम्हारी चेहरे की स्किन इतनी चमक रही है जैसे जवानों को होती है….. चेहरा भी खुशी से दमकता रहता है… हर वक्त इतनी खुश इतना मैइंटैन कैसे रखती है अपने आप को ? मुझे देखो मैं भी तुम्हारी अड़सठ साल की ही हूॅं…. पर ना चेहरे पर खुशी या ना ही कोई रौनक…. पूरी तरह मुरझाया सा चेहरा लिए फिरती हूॅं… अब तो शरीर भी स्वस्थ नहीं रहता…..” मीता जी ने अपने दिल की बात अपनी पड़ोसन कम सहेली सुधा जी को कहा।

” मैं तेरी तरह सबसे उम्मीद लगाए हाथ धरे बैठी नहीं रहती हूॅं ना इसलिए…” सुधा जी ने हंसते हुए कहा।

” मतलब? ” मीता जी ने कहा।

” मतलब साफ़ साफ़ हैं परन्तु तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा या देख कर अंजान बनने का ढोंग कर रही हैं…” सुधा जी ने कहा।





” तुम्हें नहीं बताना है तो मत बता पर यूं पहेलियां बुझाकर मुझ पर झूठा इल्जाम मत लगा….  ” मीता जी ने रोष जताते हुए कहा।

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” इस में बुरा मानने वाली बात कहॉं है ? चल मैं तुझे तुम्हारा ही आईना दिखाती हूॅं……. तुम अपने भीतर में झांकना सीखो…… कभी कभी हमें बहुत सी चीजें बहुत बड़ी लगती है पर जब हम खुद इसे करते हैं ना तो वो चीज़ बहुत छोटी हो जाती है…..जैसे तुम अकेले कहीं आती जाती नहीं परन्तु ये पार्क तो हमारे घर से कितना नजदीक है पर तुम हर दिन उम्मीद लगाए बैठी रहती है कि मैं आऊंगी और तुम्हें यहां लेकर आऊंगी…. कभी कभी मैं किसी वजह से नहीं आती हूॅं तो तुम भी नहीं आती क्यों ? क्या तुम अकेले वॉकिंग नहीं कर सकती ? 

जब तुम नहीं आती है तो मैं नहीं आती वॉकिंग करने ? बिल्कुल आती हूॅं….. ऐसे ही दिन भर में ना जाने कितने छोटे मोटे काम होते हैं जिन्हें करने से तुम कतराती हैं और दूसरों की आशा लिए पूरा दिन इंतजार करती है….. जबकि मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करती…. जब तक अपने हाथ पैर सलामत है हैं तो दूसरों से अपने काम के लिए उम्मीद क्यों करना ?

में तो मानती हूॅं कि दूसरों से अपेक्षाएं और उम्मीद रखने की बजाय खुद से ही उम्मीद और अपेक्षा लगा लेना चाहिए जिससे कभी कभार वो पूरी ना हो तो दिल टूटेगा नहीं और दिल को सुकून मिलेगा की चल आज ना सही कल तो वो उम्मीद खुद ही पूरी होगी….” मीता जी ने सुधा जी को आईने के सामने खड़ा करते हुए कहा।

” वाह…!! आज तो तुम ने अपनी खूबसूरती राज़ बता ही दिया… और मुझे रुबरु करवाने के लिए बहुत बहुत आभार। आज से शुरू होते इस नए साल में मैं एक नई उम्मीद के साथ जीवन जीने का शुरू करुंगी और खुद से ही उम्मीद और अपेक्षा रखा करुंगी ….” कहते हुए सुधा जी ने अपनी सहेली का हाथ पकड़ लिया।

” नए साल में एक नई उम्मीद के साथ शुरू करो और अपने चेहरे पर रौनक पाओ…” मीता जी ने कहा तो दोनों सहेलियां ठहाके मारकर हंसने लगी।

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद,

आप की सखी भाविनी केतन उपाध्याय 

 

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