मुझे भी आराम चाहिए – के कामेश्वरी

माधुरी पूना के एक बहुत बड़े स्कूल में तीस साल से काम कर रही थी । वह अपनी मेहनत से हेडमिस्ट्रेस भी बन गई थी । उसकी दोनों बेटियों ने भी अपनी पढ़ाई वहीं उसी स्कूल से पूरी की थी । अपनी तीस साल की नौकरी से आज वह रिटायर हो रही थी । बहुत खुश थी क्योंकि इतने सालों काम करने के बाद अब वह आराम करना चाहती थी । सुबह से लेकर शाम तक की नौकरी बच्चे स्कूल का काम करते करते थक गई थी ।

जब वह घर पहुँची इस बात पर खुश थी कि कल मुझे घर से बाहर नहीं निकलना है । दो चार दिन देर से उठना रिश्तेदारों से देर रात तक बातें करना सब अच्छा लग रहा था । माधुरी के दो भाई थे दोनों ही अमेरिका में बस गए थे । उसकी बड़ी बेटी सुहाना ने इंडिया की पढ़ाई पूरी कर के इन्फ़ोसिस में काम करती थी ।

उसकी शादी चार साल पहले ही हो गई थी । वह भी अमेरिका में रहती थी । उसका एक साल का बेटा था नील । दूसरी बेटी हरिनी डेंटिस्ट है । उसके लिए लड़के देख रहे हैं और पति श्रीराम यूनिवर्सिटी में जर्नलिज़्म के प्रोफ़ेसर थे दो साल पहले रिटायर हो गए थे ।

सुहाना ने माँ से कहा अमेरिका आ जाओ न अब तो रिटायर भी हो गई हो तो भागने की ज़रूरत भी नहीं है । माधुरी ने कहा नहीं सुहाना तुम्हारी बहन के लिए रिश्ते देखने हैं । अब मैं घर पर ही हूँ तो उसी पर ध्यान दूँगी बाद में वहाँ आने के बारे में सोचूँगी ।

एक दो महीने ही हुए हैं रिटायर होकर अभी पूरी तरह से मजा भी नहीं लिया कि उस दिन रात को श्रीराम के पेट में दर्द होने लगा फ़ैमिली डॉक्टर शर्मा जी को फ़ोन किया उन्होंने आकर चेक किया और कहा अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा । हरिनी माधुरी श्रीराम को लेकर अस्पताल पहुँच गए ।

डॉक्टर ने पूरे टेस्ट कराकर बताया कि गालब्लेडर में स्टोन है ऑपरेशन करना पड़ेगा । फ़ैमिली डॉक्टर की देख-रेख में ऑपरेशन हो गया पाँच दिनों के बाद घर भी भेज दिया गया । माधुरी और बेटी दोनों ही उनकी देखभाल अच्छे से कर रही थी । माधुरी की माँ अपने बच्चों के साथ अमेरिका में रहती थी

पर तीन महीनों के लिए भारत आ जाती थी वैसे ही इस बार भारत आईं तो उनकी देखभाल करना माधुरी के लिए मुश्किल होगी इसलिए माधुरी के घर के पास ही एक फ़्लैट लेकर उसमें उन्हें शिफ़्ट कराकर बड़ा बेटा वापस चला गया था । माधुरी पति की देख-रेख में व्यस्त थी तभी फ़्लैट के वाचमेन ने आकर बताया कि उनकी माँ गिर गई है ।



बस माधुरी भागते हुए गई तो देखा कि वे नीचे पड़ी हुई हैं उठ नहीं पा रही हैं । डॉक्टर को घर पर बुलाया तो उन्होंने कहा कि शायद उनकी हिप बोन टूट गई है । उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और भाई को ख़बर दे दी गई छोटा भाई आ गया माँ की देखभाल करने के लिए ।

माँ के अस्पताल से घर आते ही फिजियोथेरपिस्ट को रखा । माधुरी को समझ में नहीं आ रहा था कि करें तो क्या करें । उधर माँ इधर पति । करोना है इसलिए काम वाली को भी नहीं रख सकते थे फिर भी अपने ही गाँव से एक पहचान वाली औरत को लेकर आई । वह माधुरी को काम में मदद कर देती थी ।

एक दिन इन्हीं उधेड़बुन में थी और सारे काम ख़त्म करने के बाद थकी हुई भाई के साथ बैठी थी कि सुहाना का फ़ोन आया कि माँ हम लोग आ रहे हैं । एक महीना वहीं रहेंगे और नील को वहीं छोड़ देंगे माँ!!

दो तीन महीनों की बात ही है प्लीज़ आप देख लीजिए क्योंकि हम दोनों को अपनी नौकरी में अपटेड होने के लिए पढ़ाई करनी है । माधुरी के आँखों के सामने अँधेरा छा गया था । उसके मुँह से आवाज़ ही नहीं निकली पर कहते हैं कि चुप्पी में हाँ छिपा है । सुहाना खुश हो गई ।

सुहाना अपने पति और बच्चे के साथ भारत आ गई । जब से वह आई है बाहर घूमने से उसे फ़ुरसत ही नहीं मिली माँ की सहायता के लिए एक नेनी को रख दिया और कहा हमारे न रहने की उसे आदत होनी चाहिए है । एक बार भी उसने अपने माता पिता और नानी के बारे में नहीं सोचा ।

एक महीना कैसे बीत गया पता ही नहीं चला । सुहाना ने नील के खाने पीने सोने सभी के बारे में माधुरी को समझा दिया और बच्चे को छोड़ कर पति पत्नी अमेरिका चले गए । माधुरी की माँ अब थोड़ी ठीक है । श्रीराम भी अब ठीक हो रहे हैं । नील के लिए नेनी तो थी ही वही उसे खाना खिलाना नहलाना आदि काम कर देती थी ।

माधुरी ने इन तीन महीनों में जो कुछ भी झेला है वह कभी भी नहीं भूल सकती थी । जिस मानसिक और शारीरिक तनाव से वह गुजरी है उसकी कल्पना भी करके उसके रोंगटे खड़े हो जाते थे । इतना था कि छोटी बेटी साथ है तो उसका कुछ सहारा हो गया था ।

वह सोच रही थी कि आजकल के बच्चे भी कैसे स्वार्थी हो गए हैं जो सिर्फ़ अपने बारे में ही सोचते हैं । अपने माता-पिता के बारे में सोचना भी नहीं चाहते । उन्हें लगता है कि उनका काम निकल जाए तो बस है ।

माता-पिता बच्चों की मदद कर देते हैं उसमें गलत भी नहीं है पर समय और परिस्थितियों पर भी बच्चों को ध्यान देना चाहिए माँ को तो टेकिट फ़ॉर ग्रानटेड नहीं ले लेना चाहिए ।

इसलिए दोस्तों बच्चों को बचपन से ही समझाइए कि उनके काम उन्हें ही करने हैं । बड़ों पर ऐसा थोप नहीं सकते उनकी मर्ज़ी को जानने की भी आवश्यकता होती है ।

अगर वे ख़ुशी ख़ुशी आपके काम को करने के लिए तैयार हो गए हैं तो ही उनसे मदद लीजिए । उन पर ज़ोर मत दीजिए वे भी थके हुए हैं उन्हें भी कुछ आराम की और उनका अपना समय उन्हें मिलने देना चाहिए । वे खुश हैं तो आपके लिए जान भी दे सकते हैं ।

के कामेश्वरी

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