मुहल्ले की सबसे पुरानी निशानी – डा. इरफाना बेगम  : Moral stories in hindi

हमारे घर की वह बुजुर्ग महिला जिनके चेहरे पर गजब का तेज था झुर्रियों से भरा शरीर होने के बाद भी गजब की फुर्ती थी उनमें । उन्हें हम ही नही हमारे घर के बडे यहां तक कि मां और पिता जी भी दादी ही कहते थे। हमारे परिवार में उनको आये हुये काफी समय हो चुका था। सुनते हैं कि छोटे नाना की शादी के समय घर के कामों  के लिये नानी की मदद के लिये आई थी। तब से वह यहीं की हो कर रह गई थी। 

बहुत ही अच्छे शेर लिखती थी बातों में मिसाले मुहावरे और लोककोत्ति जोड कर एसे बताती थी की दृश्य आखों के सामने घूम जाते थे। 

रिदा अपने पिता के हाथों को पकडे हुये बारिश में भीगते हुये घर के अन्दर आती है कपडे पूरी तरह से गीले हो चुके है उन्हे देखकर उनकी मां कहती है कि ‘अब तो बडों की तरह व्यवहार करो। कपडे बदलो और गीले ही पूरे मे घूमोगी तो पूरा घर गन्दा होगा‘। मां की बात को अनसुना करते हुये रिदा दौडती हुई आई और बोली कि ^दादी देखो कितनी बडे-बडे बर्फ के टुकडे गिर रहे हैं।‘ दादी ने कहा ‘अरे! बिटिया आसमान से गिरने वाली  बर्फ को ओले कहते हैं लेकिन कहां गिर रही‘  कह कर दादी ने दालान में बैठे बैठे हाथ बाहर निकाला एक बडा सा ओला उनके झुर्रीदार हाथ पर गिरा जिससे उसमें उभरी हुई नसों पर चोट लगी जिससे तेज खून बहने लगा। 

रिदा की मां बहुत ही जोर से उसपर बिगडी कि ‘काम कुछ होता नहीं है काम बढाने में आगे हो। चलो दादी के हाथ में पट्टी करो देखों कितना खून निकल रहा है। उसके बाद रसोई में मेरी मदद करो क्योकि दादी अब कोई भी मदद नहीं करेंगी।‘

रिदा के पिता एकदम से बिगड उठे कि ‘हमारी बेटी राजकुमारी है वह घर के काम क्यों करेगी‘। उनके इस सवाल पर जब रिदा की मां ने कहा कि ‘माना बेटी राजदुलारी है लेकिन कल को इसे अपना संसार भी बसाना है उसके लिये तो इसको तैयार रहना चाहिये।‘ इस बार रिदा के पिता और कडक शब्दों में बोले ‘नहीं मेरी बेटी कोई काम नहीं करेगी जिसे करना हो करे।‘

 रिदा के पिता का लहजा और बात सुनकर दादी के चेहरे की रंगत एकदम बदल गई आखें आसुओं से भर गई जैसे कोई पुराना जख्म हरा हो गया है ‘एकदम से बोली लाला! अभिामान वाली बाते मत करो।‘

रिदा के पिता बोले ‘दादी इसमे अभिमान कहां है मै अपनी बेटी से काम नहीं करवाना चाहता रही बात उसका घर बसाने की तो जैसे यहां हर काम को करने वाले है वैसे ही बेटियों के घरों में भी कामवालों की फौज लगा दूगा पैसों की मेरे पास कमीं थोडी है।‘ 

दादी ने हाथ आशीष की मुद्रा में उठाते हुये कहा कि ‘भगवान करे तुम्हें कोई कमी न हो बरसों से यह घर ही मेरा सहारा है लेकिन क्या तुम जानते हो मैं कौन हूं और मेरा पारिवारिक स्तर क्या रहा है ? या मैं हमेशा से ही घरों में काम करती रही हूं ? तुम मेरे बारे मे कुछ नहीं जानते और मैने कभी बताया भी नहीं लेकिन आज जब तुम बडे बोल बोल रहे हो तो मुझे अपना बचपन याद आ गया इसलिये आज बरसों बाद मै अपनी सही पहचान बताती हूं ।‘

उसके बाद दादी अपने सामान मे से कुछ कागज लेकर आईं जिनमें उनके परिवार के बारे में कुछ लिखा था। उन्होने कहा ‘तुम्हारे पिता ने इन्ही कागजों के आधार पर अपने घर में काम के लिये रखा था। उन्हीं के बदौलत इस घर में मुझे सम्मान मिला किसी ने भी मुझसे काम करने वाली की तरह व्यवहार नहीं किया।‘ दादी ने बताया कि उनके पुरखे निजाम हैदराबाद के दरबार में उच्छे ओहदों पर काम करते थे। जिनमें लेखन का काफी शौक था जो शायद उनमें भी पुश्तैनी तौर पर आया हो। निजामों के हालात खराब होने के बाद भी उनके दरबार में काम करने वाले लोगों को काफी जमीन जायदाद मिली थी कुछ लोग वहीं हैदराबाद में रहे जबकि कुछ लोग इधर उधर जाकर बसने लगने। 

‘हमारे घर वालों ने भी दो तीन पुराने कामवालों को लेकर हैदराबाद छोड दिया। उस वक्त मेरी उम्र लगभग बारह तेरह साल की रही होगी। मै अपने घर में काम करने वाली बुआ से खाना बनाने की नई नई तरकीबें सीखती थी मैने अपनी मां को बहुत ही बचपन में खो दिया था इसलिये मैं ज्यादातर बुआ के साथ ही रहती थी। हैदराबाद छूटने की वजह से मेरी सहेलियां भी मुझसे दूर हो चुकी थी इसलिये बुआ ही मेरी रिश्तेदार और बुआ ही मेरी दोस्त थी ।‘

एक दिन बुआ ने आवाज लगाया कि ‘बिटिया दाल में बघार लगा दो तुम्हारे हाथों की बघार से दाल में मजा और स्वाद बढ जाता था।‘ मेरे पिता उस वक्त वहां से गुजर रहे थे उन्होने बहुत ही अभिमान से बोला कि ‘घर में खाना बनाने का काम तुम्हारा है मुझे अपनी बेटी से पकवाईगीरि नहीं करानी जो तुम उसे रसोई का काम कह रही है।‘ उस समय किसी ने भी नहीं सोचा था कि मेरे पिता के बडे बोल मेरी किस्तम में क्या रंग दिखायंगें। 

‘कुछ वक्त के बाद मेरी शादी एक सम्पन्न परिवार में हो गई। शुरूआती समय में सब कुछ बहुत ही अच्छा था। लेकिन किस्मत का खेल यहीं से शुरू हुआ शादी के सात साल के बाद मेरे पति का देहान्त हो गया इन सालों में मै चार बच्चों की मां बन गई। मेरे ससुराल वालों ने मुझे घर से निकाल दिया।‘ 

‘इस वक्त देश के राजनीतिक परिस्थतियां एसी हो गई थी कि मेरी पिता की सम्पत्ति पर भी ब्रिटिश सरकार ने कब्जा जमा लिया था। मै अपने पिता की इकलौली संतान थी कोई सहारा नहीं था तो लगा कि अपने हुनर को इस्तेमाल करें और अपने बच्चों को पालें क्योंकि अपने बच्चों के लिये तो मुझे हालात से जंग लडना था।‘

इस तरह से आपके रिश्तेदारों के यहां मैने रसोई में काम करना शुरू किया। आपके चाचा की शादी के समय वह लोग जब यहां आ रहे थे तो मै भी उनसे मनुहार करके अपने बच्चों के साथ यहां आ गई। यहां मिले मान सम्मान के कारण शादी के बाद मैने वापिस जाने से मना कर दिया तो आपके पिता ने मुझे यहा एक घर और कुछ जमीन देकर रहने दिया। इस तरह से अपनी पूरी जिन्दगी मैने रसोई के काम कर के निकाल दिया। इसे किस्मत का खेल ही कहेंगे कि जिसके लिये उसके पिता कहते थे कि उससे रसोई के काम नहीं करवायेगे उसने अपनी पूरी जिन्दगी दूसरों के घर में खाना बनाते हुये गुजार दी। 

नोट- बचपन में दादी के साथ बिताया समय दादी के हाथ की रसोई की स्मृतियां आज भी हमारे दिमाग में हैं।

डा. इरफाना बेगम
नई दिल्ली

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