“हैलो कौन? आवाज नहीं आ रही| कौन? ओह अनंत आज तुम! कैसे हो? कहांँ हो भई? लंबे समय बाद बहन की याद आई| आ रहे हो? कब? अरे ये तो बहुत अच्छी बात है| हांँ, हांँ, बिल्कुल आओ| मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा|”
“मुदित….मुदित कहाँ हो तुम, “फ़ोन रख स्वाति ने पतिदेव को आवाज़ लगाई|
“क्यों घर को सिर पर उठा रखा है| क्या हुआ? “
“मुदित, अनंत का फोन आया था उसका इसी शहर में तबादला हुआ है| आप आज ऑफिस से जल्दी आ जाना शाम को खाने पर आने को कह रहा है|”
“बड़ी खुश हो, बचपन के मित्र के चक्कर में पति को मत भूल जाना|” मुदित ने अपनी इंपॉर्टेंस दर्शाते हुए कहा|
“मित्र नहीं है वो , भाई है वो मेरा और तुम जानते भी हो इतने सालों से उसका जवाब आए चाहे ना आए मैं नियम से उसे राखी भेजती आई हूंँ| पढ़ने के लिए बाहर चला गया था फिर मेरी शादी हो गई| कम से कम पाँच से सात साल बाद मिलना होगा| प्लीज तुम जल्दी आ जाना| “
आज सारे दिन स्वाति बहुत उत्साही रही| सोचती रही, कैसा दिखता होगा| कितना हैंडसम लगता था| कैसे साथ वाली लड़कियां उसे पटाने के लिए मेरी चमचागिरी किया करती थीं| आज मधुर स्मृतियाँ ताजा हो रही थीं| सोचने लगी..उसकी शादी में भी जाना न हुआ|
खुशी-खुशी जा सासु मांँ को बताया, “मम्मा वो मेरा ‘मुँह बोला भाई’ है ना अनंत, जिसे मैं हर साल राखी भेजती हूंँ उसका तबादला इसी शहर में हो गया है| शाम को खाने पर आने वाला है| “
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मम्मी-पापा कुछ दिनों से यहांँ आए हुए हैं| मुदित का टूरिंग जॉब है इसलिए अक्सर बाहर जाना लगा रहता है| स्वाति अकेले रहने में डरती है इसलिए कुछ समय यही रुकेंगे|
स्वाति एक आधुनिक विचारों वाली घरेलू लड़की जो विचारों से तो आधुनिक है पर पति, परिवार, उनके लिए अपने हाथों से करना उसे सब अच्छा लगता है| पाँच साल का बेटा है, जबसे दादा-दादी आए हैं उन्हीं के चिपका रहता है, कुल मिलाकर एक मध्यमवर्गीय हंसमुख परिवार|
शाम को मुदित जल्दी आ गए| थोड़ी देर बाद में डोर बेल बजी|
“मैं अनंत| “
हाथ आगे बढ़ाते हुए मुदित बोला, “मैं मुदित| अंदर आओ”और बड़े प्रेम से दोनों गले मिले|
मांँ-पिता का परिचय करवाया तो अनंत ने बड़ी श्रद्धा से उनके चरण स्पर्श किए|
“बैठो अनंत| कबसे तुम्हारा इंतजार हो रहा था| “ससुर जी ने कहा|
“स्वाति देखो कौन आया है! “मुदित ने आवाज लगाई|
कमर में पल्लू बांँधे, गर्दन में जूड़ा लटकाए स्वाति दौड़ी चली आई| हाथ गंदे थे आकर सकपका गई|
अनंत भी उसे देख खड़ा हो गया| किसी समय अनंत के अचानक आने पर वह गंदे हाथों बाहर आ उसे ताली मार मिलती थी पर आज न जाने उम्र का तकाजा था या रिश्तों की शालीनता| जो भी था आज पहली दफा दूरी का एहसास हुआ|
दोनों ने ढेर सारी बातें की| सबने साथ में खाना खाया| पता चला पूरा परिवार यही शिफ्ट हो गया है| शादी को तीन साल हो चुके हैं| अभी दोनों ही हैं| जल्दी ही फिर मिलने का वादा कर अनंत ने विदा ली|
अब अक्सर उसका आना-जाना लगा रहता और दोनों घंटो बातें करते| बचपन की सारी यादें ताजा होने लगीं, जिन बातों में सासू मांँ को तनिक भी मजा ना आता| धीरे-धीरे हर दूसरे दिन उसके आने का सिलसिला शुरू हुआ| अब किसी के साथ बैठे होने का भी उन्हें फर्क नहीं पड़ता| आस-पास कोई है यह भी भूल जाते
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और दुनियाँ जहां की बातें कर डालते| ससुर जी थोड़े नए खयालात के थे| सासू माँ रखती तो नई सोच थीं पर उन्हें उसका रोज आना खटकने लगा था| अब वो बेटे से आए दिन कहतीं, “देख बेटा मुझे इसका इतना आना कतई पसंद नहीं| होगा चाहे मुँह बोला भाई| “
एक दिन माँ बालकनी में बैठी थीं तो देखा अनंत दूर गाड़ी पार्क करके आ रहा है| उसको दखते ही अड़ोस-पड़ोस की औरतें जो बाहर खड़ी थीं चर्चा करने लगीं, “कौन है! बहुत आना-जाना है आजकल| “
“हाँ, स्वाति कह रही थी मुँह बोला भाई है| “
“आजकल कुछ ज्यादा ही आता-जाता है| रात, देर रात जब देखो तब दिख जाता है| सास-ससुर के घर में यह सब….पता नहीं कैसे पसंद करते हैं| “
“अब तो मुदित की जरूरत भी नहीं है, आए समय बाहर चली जाती है इसके साथ| “
“कहते तो सब भाई ही हैं….पर अंदर की कौन जाने| “सभी ने उसके के समर्थन में हामी भर दी और हंँसने लगीं|
सासू मांँ का गुस्सा, नफरत, चिढ़ सब परवान पर चढ़ चुका था| सोचा आज बहू को स्पष्ट ही कह देगी|
कमरे में गई तो देखा बहू उसे समझा रही थी, “निराश होने से क्या होगा अनंत| हर चीज का वक्त निश्चित होता है| तुम ही तो कहते थे ‘मुस्कुराने से सब रास्ते आसान हो जाते हैं| ‘जल्दी ही समाधान मिल जाएगा| रात-आधी रात जब मेरी जरूरत हो बेझिझक फोन कर लिया करो| “
आज वह सासू माँ के पैर छू, जाने लगा तो उनका व्यवहार कुछ बेरुखा सा था|
बहू से बोलीं, “बेटा ये बहुत ज्यादा आने लगा है| घरवाली भी तो इंतजार करती होगी| यहांँ भी तुम्हें साथ आते-जाते देख चार लोग न जाने क्या बातें बनाते होंगे| “
“मम्मा भाई है वो मेरा| लोगों का क्या| बिना हड्डी की जुबान है चाहे जितना चला लो| आप किसी बाहर वाले की बात पर ध्यान ना दिया करें| “
देखती, बेटे के आने पर बहू उसी समर्पण से काम करती रहती| घर में सबका ध्यान रखती पर न जाने क्यों मांँ के मन से उतरती जा रही थी|
आज खाते वक्त मांँ ने सबके बीच में चर्चा चला ही दी, “तुम दोनों बुरा मानो चाहे भला, हम समाज में रहते हैं जहाँ कुछ नियम होते हैं| मैं बाहर वालों के मुंँह से सुनती हूंँ तो मुझे तनिक भी अच्छा नहीं लगता| सच मानो तो उसका आवश्यकता से अधिक आना मुझे भी पसंद नहीं| “
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उनकी बातों से रुआँसी हो स्वाति अंदर चली गई|
मुदित ने कहा, “क्या मांँ….आप भी….रुला दिया ना| वह बचपन के मित्र हैं माँ| जिस ढंग से बात करते हैं, हो सकता है आपको पसंद ना आता हो क्योंकि आपने उन्हें समझदारी की उम्र में देखा है| लोगों की परवाह करोगी तो घर में अशांति के अलावा कुछ नहीं होगा| अपनी बहू पर विश्वास और दिल बड़ा रखो माँ| “
मांँ भी आखिर मांँ है बोलीं, “तेरा घर, तेरी जिंदगी मैंने तुझे आगाह किया है, कहीं भविष्य में पछताना न पड़े| “
स्वाति ने मुदित से कहा, “तुम्हें मुझ पर विश्वास है ना| मैं तुम्हारे साथ कभी गलत….| “
मुदित मुस्कुरा दिया, “मैं जानता हूँ लेकिन माँ की बात को तूल न दे अगर थोड़ा उन्हें शांत रखने का प्रयास करें तो क्या बुराई है| इससे घर का माहौल खुशनुमा रहेगा| कैसे और क्या ये तुम्हें खुद सोचना है| “
अचानक पंद्रह दिन के लिए मुदित को टूर पर बाहर जाना पड़ा| अब स्वाति को सासू मांँ नहीं टोकतीं| वो उस दिन के बाद से अनंत से खुद थोड़ा कटने लगी हैं|
एक दिन रात को अनंत का फोन आया| रात नौ बजे मिलने आने की गुजारिश की| घबराई, हिचकिचाई स्वाति थोड़ी देर में वापिस आने का कह निकल गई| एक-दो घंटे बाद अनंत उसे वापस छोड़ गया| जो कि माँ को बिल्कुल पसंद नहीं आया|
“आप कुछ कहते क्यों नहीं| सारी सीमाएं पार कर चल दी| कल मुदित आ ही रहा था अचानक ऐसी क्या जरूरत पड़ गई जो रात भर सब्र न कर पाई| आप कुछ कहते क्यों नहीं जी| “
“देखो वो बच्चे नहीं है ये उनकी निज़ी जिंदगी है| जब हर निर्णय में ‘मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काजी| ‘ मैं कहता हूँ तुम भी दिमाग लगाना बंद कर दो| “
आज घर में सन्नाटा था| मुदित के आते ही माँ ने ये वाकया सुनाया और साथ ही वापस लौट जाने का ऐलान भी कर दिया| स्वाति ने बहुत माफी मांँगी, बहुत समझाया पर वो नहीं मानीं|
स्वाति नाश्ता बना रही थी| मम्मी -पापा का रिजर्वेशन तीन दिन बाद का हुआ है| घर में सन्नाटा छाया रहा, इतने में बाई ने आकर सासु मांँ को कुछ कागज दिए| बेटे के आगे करते हुए बोलीं, “ले तुझे अपने विश्वास पर मोहर लगवानी थी ना, ले.. आज लगा ले| “वो कुछ डायरी के पन्ने थे| जिसमें लिखा था
‘मेरी जिंदगी में वापस आ जाओ| मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता| शायद मैं तुम्हारे बिना जी ना पाऊंँ| एक बार फिर से मुझे समझने की कोशिश करो| मैं चाह कर भी तुम्हें कभी नहीं भुला सकता’| अंत में ‘अनंत’ लिखा था|
मुदित की आंँखें फटी की फटी रह गई, नि:शब्द खड़ा रहा| हर वक्त मांँ के सामने सहजता से रिश्ते की बातें करने वाला आज मौन था| इतने में स्वाति आई, देखा तो वह पन्ने मुदित के हाथ में थे| घबरा कर बोली, “अरे ये आपके पास….कहांँ मिले….मैं इन्हें ही ढूंढ रही….असल में यह पन्ने| “
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सासू मांँ नियंत्रण खो चुकी थीं| स्वाति को खूब सुनाया, “यह है तुम्हारा विश्वास| तुमने मेरे बेटे के विश्वास का खून किया है| हम सब को धोखा दिया है| “
“पर माँ मेरी बात सुनिए| “
“अब देखने-सुनने को बचा ही क्या है| “मांँ ने रुआँसी हो कहा|
“मुदित कुछ बोलिए ना….| “पर हमेशा साथ देने वाला मुदित कुछ समझ ही नहीं पा रहा था|
“स्वाति थोड़ी देर में बैग-पैक कर लाई, “जा रही हूँ| जब आपको विश्वास ही नहीं तो मेरा यहाँ रहने और सफाई देने का कोई मतलब ही नहीं बनता| “
आज उसे रोकने वाला कोई न था….पीछे मुड़ देखती रही….रुक जाऊँगी मुदित….तुम जो कह दो तो|
माँ बेटे की पीठ सहलाती रही| समय पर चेत जाता, “कितना समझाया पर तेरी ईमानदारी ने खुद तेरे पाँव में कुल्हाड़ी मारी| “
“वो ऐसी नहीं हो सकती मांँ| मेरा दिल आज भी यही कहता है| वो मेरे साथ विश्वासघात कभी नहीं कर सकती”बस मुदित इतना ही बोला|
स्वाती चली गई| अनंत ने कईं बार मुदित से संपर्क करने की कोशिश की पर व्यर्थ गया|
एक दिन अचानक अनंत व उसकी पत्नी टकरा गए|
“मुदित कैसे हो| ये….मेरी धर्मपत्नी पूजा| “
इतने में पूजा ने कहा, “भैया मैं आप लोगों की शुक्रगुजार हूँ| आज स्वाती दी न होती तो मैं बर्बाद हो गई होती| अनंत से मेरा साथ, सब आप लोगों की देन है| आपका दी पर अटूट विश्वास ही आज हम दोनों को एक कर पाया है| “अनंत कुछ समझ नहीं पा रहा था पूजा क्या कहना चाहती है|
तीनों कॉफी पीने एक रेस्तरां में बैठे| पता चला दोनों में तनाव चल रहा था| नौबत तलाक तक आ पहुँची| “एक दिन रात को जब मैं घर छोड़ चली गई तो ये दीदी को लेकर आए| सच अगर आपका साथ नहीं होता, इतना विश्वास आप उनपर न करते तो पराए आदमी के साथ इस तरह रात नौ बजे निकलना नामुनकिन था|
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दी ने मुझे बहुत समझाया, हमारे बीच की कईं गलतफहमियां दूर कीं| इनकी डायरी के पन्ने तक फाड़ मुझे इनका मेरे प्रति पाक मन समझाया ये समझाया कि ये मुझे कितना चाहते हैं| सच भैया ये सब आपका अटूट विश्वास था जो दीदी मेरे लिए हमारे रिश्ते को बचाने के लिए इतना बड़ा कदम उठा पाईं| आपका साथ न होता तो….| भगवान से यही दुआ करती हूँ हमारा जोड़ा भी आपकी तरह विश्वास की डोर से बंधा रहे| …पर ये तो कह रहे थे आप लोग पिछले कईं दिनों से बाहर है|”
मुदित का चेहरा पीला पड़ गया| उसे अपने आप पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी| “वो डायरी के पन्ने…..| “
“जी हाँ वो पन्ने मेरे लिखे हुए थे पूजा के लिए| मैं कबसे आपसे मिलना चाहता था पर आप….| “
मुदित जल्दी उठ तेजी से स्वाती के पास चल दिया|
स्वाती को विश्वास था मुदित एक दिन जरूर आएंगे| पर उसने साथ आने को मना कर दिया| बोली, “मुझसे लड़ते, रोकते, झगड़ते, प्रश्न पूछते ज्यादा गुस्सा आया था तो चांटा लगा देते पर कुछ कहते तो सही| आपने तो चुप रहकर मुझे लक्ष्मण रेखा के बाहर खड़ा कर दिया| अब मैं वापिस नहीं आऊँगी| बताओ मुदित यदि आज अनंत की जगह मेरा सगा भाई होता तो क्या तब भी आपका विश्वास डगमगाता| ….आगे सोचने को और साथ आने को मुझे थोड़ा वक्त चाहिए| “
ये बात जब अनंत और पूजा को पता चली तो वो स्वाती से मिलने गए| ..”दी आपने मेरे घर को बसाने में अपना उजाड़ डाला| नहीं दी आप बहन हैं इनकी सोचिए डायरी के पन्ने देख गलतफहमी किसी को भी हो सकती है पर उन्होंने आपका कभी विरोध नहीं किया| वो जो आंँखों से देख रहे थे| सब देख वो चुप थे किस पर यकीन करते आप पर या जो सामने था उस पर| “
“जब एक बहन के घर में कलह होता तो भाई कैसे खुश रह सकता है”अनंत ने स्वाति को खूब समझाया| “
अनंत ने कहा, “शायद गलती मेरी थी| मुझे मर्यादा में रह रिश्ता निभाना चाहिए था| गलती दोनों तरफ से हुई| तुम भी तो तुरंत घर छोड़ आई| “
उनके जाने के बाद स्वाति बहुत कुछ सोचती रही| हाँ मैंने मौके की नजाकतता को नहीं समझा तुरंत निकल आई| पर मुझे किसी ने रोका भी तो नहीं| पुरानी बातें याद आईं तो मुदित, सास-ससुर सब की अच्छाइयां ही याद आ रही थीं| सोचने लगी जब वहांँ से निकलने का निर्णय मैंने तुरंत ले लिया तो आज देरी क्यों? वो तो मेरा घर है और वहाँ सब मेरे अपने| तुरंत उठ खड़ी हुई और ऑटो की तरफ चल दी|
टिंग-टांग….टिंग-टांग…..
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माँ ने दरवाजा खोला तो देखा स्वाति खड़ी थी| मांँ के पांँव छू बोली, “मुझे माफ कर दो माँ मैंने रिश्ता तो ईमानदारी से निभाया पर मर्यादा भूल गई| “
अनंत भी पहुँच गया उसको भी पछतावा था| हाथ जोड़ बोला, “शायद गलती मेरी ही रही मैंने स्वाति को आप लोगों को ना बताने को बोला था| मैंने ही मना किया था कि आप लोगों को मेरा सच न पता चले| नहीं जानता था कि बात इतनी आगे बढ़ जाएगी|”
सारे मसले हल हो चुके थे| गिले-शिकवे खत्म हो चुके थे| स्वाति अपने परिवार में अपने पति के साथ खुश थी|
यह तो महज़ एक किस्सा है, लेकिन वास्तविकता यही है कि हर रिश्ते की अपनी मर्यादा होती है| मर्यादा में रहकर निभाई रिश्तों की उम्र लंबी होती है| चंद गलत सोच वाले लोगों की वजह से भाई-बहन जैसा पाक रिश्ता भी प्रश्नों की बलि चढ़ जाता है| स्वार्थ के लिए किसी भी रिश्ते का इस्तेमाल ना करें| हर रिश्ता अपने आप में बेहद खूबसूरत होता है, यदि वह मर्यादाओं में रह निभाया जाए|
– Meeta Joshi