मार्डन से तो अनपढ़ भले – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

आज जब सुनीता देर से काम पर आई तो मैंने उससे पूछा सुनीता आज तू फिर से देर से आई है कल तो तूने कहा था अब टाइम से आया करूंगी, पर तेरा तो रोज-रोज का हो गया है यह रोज-रोज का देर से आने का झंझट अब खत्म कर दे सुनीता ।

मुझे सुबह-सुबह उठकर रिंकी पिंकी का टिफिन,तुम्हारे साहब का लंच और सासू मां का खाना बनाना होता है ।फिर मुझे तेरे काम करने के बाद छोटी बच्चियों को शास्त्रीय नृत्य संगीत की भी क्लास देने के लिए वहां सदर बाजार के पीछे वाली बस्ती में जाना होता है , क्योंकि वे बच्चियां बहुत ही गरीब तबके से आती है और मेरा मानना है हुनर को हर हालत में सामने लाना ही चाहिए, चाहें वो किसी भी वर्ग किसी भी तबके के बच्चों में हो।मैं ज्यादा तो कुछ नहीं कर सकती इन बच्चियों के लिए पर कुछ ना करने से तो थोड़ा कुछ करना ही अच्छा है, इसलिए मैं उन बच्चियों को जब तक संभव है ये सब सिखाना चाहती हूं।

अब मैं वहां रोज-रोज तो देर से नहीं जा सकती। एक तेरे देर से आने की वजह से मेरा सारा रूटिन बिगड़ जाता है और उन छोटी बच्चियों को मैं रोज-रोज इंतजार नहीं करा सकती। मेरे  इतना कहने पर सुनीता बोली।

मेरी बात तो सुनिए मैमसहाब कि मैं आज फिर क्यूं देर से आई हूं। पहले तो आप ये लड्डू खाइए मैंने आज अपनी पूरी बस्ती में ये मोतीचूर के लड्डू बांटे हैं। तब मैंने बड़े ही आश्चर्य से उससे पूछा ये मोतीचूर के लड्डू क्यों बांटे जा रहे हैं, वैसे तो तेरा खर्चा पूरा नहीं पड़ता, हर समय महंगाई का रोना रोती रहती है और देखो लड्डू बांटे जा रहे हैं। 

इस पर उसने खुश होते हुए कहा मैंने बताया था ना मैमसहाब ,मेरी शानू को दूसरा बच्चा होने वाला है उसके यहां कल बिटिया ने जन्म लिया है बस उसी की खुशी में कि राजी खुशी जच्चा बच्चा दोनों निपट गई मैंने गणपति का भोग लगाकर लड्डू बांटे हैं।

मैंने फिर उससे पूछा अरे तेरी शानू को तो पहले भी एक बिटिया ही थी ना फिर अब किस बात के लड्डू? मैंने  उसकी माली हालत को ध्यान में रखते हुए ऐसे ही पूछ लिया। इस पर सुनीता बोली मैमसहाब बच्चे का जन्म लेना ही अपने आप में खुशखबरी है और कौन जाने मेरी शानू के यहां लक्ष्मी के साथ-साथ सरस्वती भी आना चाहती हो मैं अनपढ़ जरूर हूं मैमसाब पर मेरे लिए तो बच्चा सिर्फ बच्चा ही होता है और यह लड़के कौन सा सुर्खाब के पर लगाए होते हैं। मैं मन ही मन उसकी इतनी अच्छी बातें सुन मुस्कुरा रही थी और वो थी कि बोले जा रही थी, उसने आगे कहा….

अब मेरे बेटे को ही देख लो मैंने बेटा और बेटी दोनों की परवरिश एक सी की है पर वो आज तक कोई ढंग का रोजगार भी ना कर सका और मेरी शानू  आज पढलिखकर सरकारी स्कूल में आठवीं कक्षा तक के बच्चों को पढ़ाती है।

शानू की दादी आज जिंदा नहीं है नहीं तो देख लेती की जिस छोरी को वह हर टाइम  गरिया कर बात करती थी, थोड़े साधन में ही पढ़े-लिखकर मेरी शानू अध्यापिका बन गई और वो दादी का लाडला मोहित आज तक यूं ही आवारा घूम रहा है। मेरे हिसाब से तो लड़की और लड़के दोनों में ही कोई फर्क नहीं करना चाहिए। क्योंकि दोनों ही जने तो औरत के पेट से ही हैं। और मेरा मानना है कि ईश्वर यदि भाग्य से लड़का देता है तो सौभाग्य से बेटियां देता है। 

मैं उस समय सुनीता की बात सुनकर गहरे सोच में रह गई, एक ये है गरीब घर-घर काम कर रही औरत है ,एक वो है मैसेज बंसल , सोसाइटी की अध्यक्ष, जिनके पति भी बहुत बड़े बिजनेसमैन है। जिनके खुद दो बेटे हैं ,बड़े बेटे पर तो  दो बेटे हैं, जिनका गुमान मिसेज बंसल को बहुत अधिक है,पर छोटे पर दो बेटियां हो गई, बेटे की चाहत में आज के समय में उनकी बहू ने तीसरा चांस लिया, पर उड़ता उड़ता सा सुना है बच्चे की जांच कराने पर पता चला कि वो एक लड़की है तो उन्होंने उसका अबॉर्शन कर दिया।

मैं सोचती हूं किस तरह एक मां एक परिवार अपने ही घर के अंश को जन्म लेने से पहले सिर्फ इसलिए मार देते है क्योंकि वह एक लड़की है । वो भी वो लोग जो सोसाइटी में अपने आप को सबसे मॉडर्न दिखाते हैं, पढ़े-लिखे दिखाते हैं। मेरा सोचना है कि ऐसे पढ़े लिखे लोगों से तो सुनीता जैसा गंवार अनपढ़ लोग ही अच्छे हैं।

यह सच है कि आज के समय में गरीब लोग इतना लड़के लड़की में भेदभाव नहीं करते जितने हम साधन संपन्न लोग। हमने चिकित्सा में आई तकनीकियों की सुविधा को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया है। श्रीमती बंसल से पूछने पर वह कहती है कि बच्चे की ग्रोथ नहीं थी, तो एक बार को तो लगा कि हो सकता है वो सही कह रही हो,पर कुछ ही समय बाद जब पता लगा कि उन्होंने किसी अस्पताल से बेटा गोद लिया है अपने  छोटे बेटे के वंश को आगे बढ़ाने के लिए। तब इस बात में कोई शक बाकी ना रहा कि उन्होंने

अपनी बहू की तीसरी औलाद का अबॉर्शन कराया है और इसमें मैं गलती मैसेज बंसल से ज्यादा उनकी बहू और बेटे की मानती हूं क्या वे इतने समर्थ नही थे कि उस बच्ची  को पाल सकते या उन्हे इतनी समझ नहीं थी कि वो अपने ही अंश को मारने करने जा रहे है।

लेकिन उन्हें तो सोसाइटी में अपने आप को सबसे हाई फाई दिखाना था,तीन बेटियां का पिता नहीं। 

मुझे याद है जब इनके यहां पहली पोती हुई तो इन्होंने उसे अस्पताल से लाने के बाद एक वीडियो डाला था सोशल साइट पर, जिसमें वो अपनी पोती के पैरों को रोली में रंगकर उसके छापे अपनी साड़ी पर ले रही है दिखा रही है कि बेटी उनके लिए देवी का रुप है पूरी सोसाइटी के लोगों ने उन्हें तब बहुत माना,हर कोई कहता सोच हो तो मिसेज बंसल जैसी।पर दूसरी पोती आने पर सारी खुशियां ही हवा हो गई और अब तीसरी लड़की का पता चलने पर तो उन्होंने हद ही कर दी क्या अब वो कन्या देवी का रुप नहीं थी, क्या ईश्वर उन्हें इस अपराध के लिए माफ कर सकेगा।

मैं मन ही मन सोच रही थी कि यदि उन्हें बेटा गोद लेना  ही था तो उस अजन्मी बच्ची को कम से कम जन्म तो लेने देते ।पर कैसे जन्म लेने देते चार बच्चों के साथ सोसाइटी में चलना उन्हें नागवार गुजरता , हाई क्लास सोसाइटी में आज के समय में किसी के पास चार बच्चे होते ही कहां है।

उनके परिवार ने तो साम दाम दंड भेद बस यही सोचा कि हमारे वंश को चलाने के लिए एक बेटा  होना जरूरी है चाहे वो फिर किसी भी तरह हो। मेरा ऐसे लोगों से कहना यह है कि उन लोगों से पूछो जिनको ईश्वर औलाद  नहीं देता  और तुम ईश्वर के वरदान उन फूलों जैसे बच्चियों को जन्म लेने से ही पहले मारने पर उतारू हो ,क्या खुद को भगवान समझ बैठे हो। मुझे तो सोच कर ही घिन आती है ऐसे  लोगों पर। ऐसे लोगों से जो पढ़ लिखकर भी गंवार है, जाहिल है, कलंक है समाज के नाम पर ,इन जैसे लोगो का तो समाज से बहिष्कार करना चाहिए।

ऐसे लोग सिर्फ पहनावे से मॉडर्न दिखते हैं पर इनकी सोच तो उन सदियों पुराने लोगों से भी बहुत खराब है जो कभी बेटा और बेटी में भेदभाव किया करते थे। इन जैसे लोगों को बच्चे सिर्फ एक या दो चाहिए पर उसमें बेटा होना जरूरी है फिर बेटी हो या ना हो कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे अमीर लोग ही अपने रसूख और पैसे का बेबुनियाद इस्तेमाल कर चिकित्सा की आधुनिक तकनीक का फायदा अपने स्वार्थ के लिए करके किसी बेटी का अस्तित्व जन्म लेने से पहले ही खत्म कर दिया करते हैं।

इतने में ही मेरे दरवाजे की डोर बेल बजती है,सामने मैसेज बंसल  ही थी, उन्होंने एक मिठाई का डिब्बा मेरे हाथ में थमा दिया और कहा मेरे बेटे ने  बेटा गोद लिया है यह उसी की ही खुशी की मिठाई है । मेरा मन तो हुआ कि कह दूं ,यदि यह मिठाई आपकी पोती के होने की आप बांटती तो शायद मैं बहुत खुश होती पर कुछ कह ना सकी।

मैंने वह मिठाई का डिब्बा उठाकर सुनीता को दे दिया मन में ये सोचकर  की कुछ  लोग तो है इस दुनिया में अच्छी सोच वाले जो हर जन्म लेने वाली बेटी की कद्र करता है। मैंने उस डिब्बे के साथ 1100 रुपए भी सुनीता को दिए कि यह कहकर कि यह मेरी तरफ से तेरी बेटी के घर दूसरी बेटी होने की खुशी में है।

सुनिता भी गुनगुनाने लगी…

मोरे घर आई एक नन्ही परी,

ओओओ…

मोरे घर आई एक नन्ही परी,

एक प्यारी परी।

चांदनी के रथ पर होके वो सवार।

मैं भी ना रखूंगी कोई कोर कसर उसके पालन में,

कर दूंगी अपना सबकुछ न्यौछार,

मोरे घर आई …

ओओओ…

मोरे घर आई एक नन्ही परी,

एक प्यारी परी।

मौलिक स्वरचित 

ऋतु गुप्ता 

खुर्जा बुलन्दशहर 

उत्तर प्रदेश 

#कलंक

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