“बंटी बेटा ! अपनी मम्मी को बुला ला । कहना , मुन्नी को भूख लगी है, बहुत रो रही है, जल्दी आये ।” कहते हुए दादी ने बंटी को भेजा और खुद मुन्नी को चुप कराने की कोशिश करने लगी । तभी शुभा आई और अपनी दस महीने की बच्ची को दूध पिलाने ले गई ।
अब बंटी, जो आठ साल का था, धीरे से अपनी दादी के पास आया और पूछा, “दादी ! तुम्हें कैसे पता चला कि मुन्नी को भूख लगी है, उसने तुमसे कहा क्या ?”
“नहीं रे ! मुन्नी तो अभी बहुत छोटी है, वह कैसे बोलेगी ? “दादी ने बंटी को समझाते हुए कहा ।
“तो फिर कैसे पता चला ? ” बंटी ने जानने की जिद की ।
“हम अपने अनुभव से कुछ बातें बिन बोले ही समझ जाते हैं, तू नहीं समझेगा ।” कहकर दादी ने बंटी की जिज्ञासा शांत करने की कोशिश की ।
तभी कुल्फीवाले की आवाज़ आई । बंटी दौड़कर दादाजी के साथ कुल्फी खरीदने गया ।
“दादाजी ! एक और कुल्फी दिला दो न !” बंटी ने दादाजी से सिफारिश की ।
“क्यूँ रे ! दूसरा किसके लिए ?” दादाजी ने सवाल किया ।
“दादी के लिए” बंटी ने धीरे से कहा ।
“अच्छा !” कहते हुए दादाजी ने दूसरी कुल्फी भी दिलवा दी ।
बंटी दौड़कर दादी के पास आया और कुल्फी देते हुए कहा, “चलो दादी, कुल्फी खाते हैं !”
“अरे वाह ! तू मेरे लिए कुल्फी लाया । आज मेरा भी मन कुल्फी खाने का हो रहा था । लेकिन तुम्हें कैसे पता चला ?” दादी ने खुश होकर कुल्फी लेते हुए कहा ।
“हम भी अपने अनुभव से कुछ बातें बिन बोले समझ जाते हैं दादी ! तुम नहीं समझोगी !”
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स्वरचित- पूनम वर्मा
राँची, झारखण्ड ।