नन्हे राघव को इस तरह बिलख बिलख कर रोता देख सरिता जी का हृदय भर आया शायद बच्चे का कान दुख रहा होगा मैं गर्म तेल करके डाल दूं या पेट दुख रहा होगा पेट में गैस बन रही होगी पेट पर हींग का पानी लगा दु या सिकाई कर दु नमक अजवाइन खिलादु मगर वह सुरेखा से कुछ भी कहने की या राघव को अपने पास लाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी।
कैसी परिस्थितियां उलट गई वह और राजेश अपने गांव में रहते थे दोनों बच्चे सुयश और रीना कब बड़े हो गए गृहस्थी के जंजाल में पता ही नहीं चला सुयोग्यवर की तलाश कर रीना का विवाह बड़ी धूमधाम से अजय से करने के बाद जीवन में थोड़ा ठहराव आया मगर कुछ समय बाद फिर सुयश के विवाह की चिंता सताने लगी।
नागपुर वाली ननंद ने अपनी जेठानी की भतीजी शैली के विषय में बताया सुंदर सुशील गृह कार्य में दक्ष कन्या देख मनमोहित हो गया और उसे अपने घर की बहू बने के सपने संजो ने लगी
और नंद से इस रिश्ते की हां कर दी। राजेश ने एक बार कहा भी सुयश से पूछ लो, मगर सरिता जी का आत्मविश्वास, मेरा कहा आज तक सोयश ने कभी नहीं डाला हमेशा वह कहता है मां शादी होगी तो तुम्हारी पसंद की लड़की से मैं तो लड़की सिर्फ विवाह मंडप में ही देखूंगा। मगर राजेश जी नहीं माने और पुणे सुयश के पास जाने का प्लान तैयार किया।
भोजन की टेबल पर जब सरिता जी ने सुयश को शैली का फोटो दिखाए और कहा मैं लड़की पसंद कर ली है लड़की सर्वगुण संपन्न है बस तुम्हारे हां करने का इंतजार है।
सुयश कहने लगा आपकी पसंद बहुत अच्छी है मगर मैं अपने ऑफिस में मेरे साथ कार्य करने वाली सुरेखा से शादी करने का वादा किया है इसलिए मैं इस लड़की से शादी नहीं करूंगा।
सरिता जी जैसे अंबर से अवनी पर आज गिरी, विश्वास की टूटन का जख्म बहुत गहरा था। सुयश बहुत समझाया मगर वह सुरेखा शादी की जीद ठान बेटा। सरिता जी और राजेश जी अपने गांव आकर शादी की तैयारी में जुट गए।
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नियत समय पर शादी संपन्न हुई 8 दिन बाद सुयश सुरेखा को लेकर पुणे आ गया मगर न जाने क्यों सरिता जी को शादी की कोई खुशी नहीं थी जैसे उनकी मुस्कुराहट ही गायब हो गई
राजेश जी उन्हें बार-बार समझते भाई उन्हें अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने दो वह खुश हम खुश। समय अपनी गति से बढ़ रहा था सुयश के यहां पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई सुरेखा जी और राजेश जी बहुत खुश हुए वह जब भी मन होता बालक के साथ खेलने पुणे चले जाते मगर वह महसूस करते सुरेखा को उनका पुणे आना पसंद नहीं आता मगर पोत्रमोह उन्हें बार-बार पुणे भेज देता।
अचानक से एक रात राजेश जी हार्ट अटैक हुआ और वह सरिता का हाथ थामे कुछ ही पलों में संसार को अलविदा कह गये
सरिता जी इस अचानक के वज्रपात को सह नहीं पाई उनकी दशा पागलों सी हो गई 13वीं के बाद जब सब विदा हुए तबरीना ने सुयश से कहा भाई मां अकेली इतने बड़े घर में कैसे रहेगी आप आप अपने साथ पुणे ले जाइए और सुयश मां को लेकर पुणे आ गया राघव के साथ सरिता जी कुछ ही समय में सामान्य हो गई और अपने दुख को भुला रही थी नन्हे राघव की बाल क्रीड़ा उसे माखन चोर की बाल क्रीड़ा प्रतीत होती थी जब भी वह राघव को देखते मन एकदम प्रसन्न हो जाता।
मगर न जाने क्यों सुरेखा को बच्चों का उनके साथ खेलना बिल्कुल पसंद नहीं था वह अक्सर किसी भी बहाने से बच्चे को उनसे छुड़ा ले जाती वह यह बात सुयश को बताना चाहती मगर फिर सोचती बेकार मेरी वजह से इन दोनों में तकरार होंगे मगर बाद में तो सुरेखा बच्चे को छूने ही नहीं देती आखिर एक बार सुरेखा जीने सुयश को बताया यह बच्चा ही मेरी जिंदगी है इसी को देख देख कर में जी रही हूं सुरेखा का यह व्यवहार मुझे बहुत आहत करता है मगर सूयश मैं कोई जवाब नहीं दिया दिन पर दिन सुरेखा बदतमीजी की हद पार कर रही थी
एक दिन सुरेखा जी ने फोन पर सारी बातें अपनी बेटी रीना को बताइए रीना कहने लगी क्या मां आप ही ने तो हमें बचपन में सिखाया समस्याएं समाधान साथ लाती है इस बात को आप कैसे भूल गई आप चिंतन करो आपकी समस्या का समाधान मिल जाएगा।
और आज सरिता जी अपने गांव में अपने भवन में 10 12 बच्चों के साथ अपनी खुशहाल जिंदगी जी रही है अपनी मुस्कुराहट उन्हें बच्चों के साथ बाटती हे किसी की नाक पोंछती हे किसी के आंसू पोछती हे और सोचती है मैं किसी रिश्ते की मोहताज नहीं हूं आज मेरे आंगन में 10 12 राघव खेल रहे हैं और न जाने कितने सुयश और सुरेखा अपने राघव मेरे गोद में डालकर ऑफिस जाते हैं उन्हें समझ में आ गया अगर हम हिम्मत से काम लेंगे तो हम किसी के मोहताज नहीं रहेंगे
धन्यवाद
उषा विषय शीशीर भेरून्दा