मोहताज – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

यह क्या कर रहे हैं पापा आप??

दिखाइए तो जरा …

कुछ नहीं जा तू यहां से…

दफ्तर के लिए लेट हो रहा होगा …

आज मेरी छुट्टी है …

अपना काम कर जाके फिर …

मुझे मेरा काम करने दे…

रघुनाथ जी सख्त लहजे  में बोले …

दिखाइए तो सही…

इतनी ठंड में पूरे ऊपर से नीचे तक गीले हो रखे हैं आप…..

जाता  है य़ा नहीं…

…नहीं यहां से मैं नहीं जाऊंगा…

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जब  तक  देख नहीं लूंगा …

तभी रघुनाथ जी का बेटा समीर पिता के सामने आकर खड़ा हो गया….

यह इतनी बड़ी  बाल्टी में ,,यहां कमरें में  ,,पूरा कंबल आपने भिगो रखा है …

क्या कर रहे हैं पापा …??

मैं मोहताज नहीं हूं …

थोड़ा पैर  काम करना बंद कर दिए हैं…

हाथों में जान कम हो  गई है …

तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं अपना काम नहीं कर सकता…

मुझे पता है पापा …

आप क्या-क्या कर सकते हैं…

वीणा आपको बहुत बुरा भला  सुनाती है….

जब आप बिस्तर पर ही पेशाब या पॉटी कर देते हैं …

तो इसका मतलब यह नहीं कि वह आपको इस तरह काम करने दें…

नहीं…

रहने दे…

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मैं अपना काम कर लूंगा…

पापा आप अगर ठंड में बीमार हो गए …

तो हम ही  को तो देखना है …

तभी वीणा भी नहा धोकर पूजा करके आ गई…

सुनो…

पापा ने फिर रात में गलती से पेशाब कर दी है…

जरा यह कंबल धो  देना ….

पापा बीमार हो जाएंगे…

मैं नहा चुकी हूं…

पूजा कर चुकी हूं …

अब तो मैं  कुछ भी नहीं करूंगी…

अच्छी बात है ना समीर…

अपने काम खुद कर रहे हैं तो …

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इसमें क्या बुराई है …??

अपनी पत्नी वीणा के मुंह से यह बात सुन समीर के पैरों तले  जैसे जमीन ही खिसक गई …

यह इनकी  काम करने की उम्र नहीं है …

तुम्हें तो पता है…

पापा का शरीर कितना कमजोर है…

इतनी ठंड में  कुछ लेने के देने पड़ गए…

तो कौन करेगा…

तो क्या हो गया….

उम्र भी तो पूरी कर ली हैं पापा ने…

मैं बीमार पड़ गई तो…

उसकी तुम्हें कोई फिक्र नहीं है…

रघुनाथ जी की आंखें नम हो गई थी …

जा बेटा तू …

बहू  से झगड़ा मत कर…

यह कोई एक दिन का तो है नहीं …

मैं कितना भी कोशिश कर लूं,,हो ही जाता है कभी कभी….

वह बेटा छोटे बच्चे बांधते हैं ..

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वह प्लास्टिक का सा क्या आता है….

वह तू मेरे लिए ला दे…

यह ले  500  रूपये…

ठंड में  बांध लिया करूंगा …

गर्मियों में तो यह समस्या नहीं होती है…

रहने दीजिए पापा आप…

यहां से उठिए….

जाकर आराम कीजिए…

पत्नी भी  ठुमकती हुई वहां से चली गई …

समीर ने अपने पिताजी को उठाया …

और वहीं पास में  कुर्सी पर बैठा दिया…

कंबल को अपने हाथों से पीटने  लगा..

जब अच्छे से साफ नहीं हुआ  तो उसने कंबल निकालकर उस पर पैरों से कई प्रहार किये…

कंबल की सारी गंदगी  निकल चुकी थी…

समीर ने  पानी से निकाल कर कंबल को बाहर की दीवार पर डाल दिया…

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चलिए पापा…

अंदर जाकर समीर ने  कुछ बादाम पीसकर पापा को उसे  दूध में  मिला कर दिए…

फिर वीणा आ गई…

यह क्या कर रहे हैं…

ज्यादा बादाम का दूध पापा को  दोगे तो पता नहीं कितने साल जिएंगे…

रहने दो….

90 साल के तो हो गए….

अब समीर  पर बर्दाश्त नहीं हुआ…

उसने एक थप्पड़ वीणा  के गाल पर ज़ड़  दिया…

यही बात अगर तुम्हारे  मां-बाप के लिए बोलूं तो …

वह तो पापा से भी बड़ी उम्र के हैं …

तो बिस्तर पर सब काम करते हैं…

तुम्हारी  भाभी भी इस तरह  से  उनसे  व्यवहार करें तब…

भाभी के नाम तो बहुत कुछ कर रखा है पापा मम्मी ने …

मुझे सेवा करनी पड़ेगी  तो…

मुझे क्या दे दिया है तुम्हारे पापा ने…

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क्यों उनका बेटा तुम्हे  सब कुछ नहीं दे रहा है …

भले  ही तुम्हें सास ससुर  से इतना कुछ नहीं मिला…

मां की बीमारी में सब कुछ चला गया …

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हें किसी चीज की कमी होने देता  हूं …

अगर कल से तुमने पिताजी का ख्याल ठीक से नहीं रखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा…

नहीं तो अपना सामान पैक कर लेना …

पहुंच जाना अपने मायके …

समझी….

समीर गुस्से में यह बोल पिताजी के पास आ गया…

उसने अपने हाथों से अपने पिता को दूध पिलाया…

रघुनाथ जी ने समीर के सर पर हाथ फेर दिया…

सुन बेटा…

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मैं तो कुछ दिन का मेहमान हूं….

लेकिन बहू से इस  तरह से झगड़ा मत किया कर …

वह भी थक  जाती है …

छोटे बच्चों के काम ,, घर के ,,बाहर के ,,सब तरह के काम वही संभालती है ….

समीर कुछ ना बोला…

वह पापा के पास ही आज सो गया था…

अगले दिन उठा …

अपने ऑफिस के लिए चला गया…

आज फिर रघुनाथ जी अपने कपड़े साफ कर रहे थे….

लेकिन आज बेटा नहीं था …

जो  उनको उठाकर बिस्तर पर लिटा  देता…

क्योंकि वह खुद को किसी के ऊपर मोहताज नहीं करना चाहते थे…

ना तो बहू को आवाज़ लगाई…

खुद ही सारे कपड़े धो कर उन्होने डाल दिए …

लेकिन आज रघुनाथ जी कुछ ज्यादा ही बीमार पड़ गए थे ….

आज रात ऐसे सोए कि अगले दिन उठ  ही ना पाए …

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क्य़ा   सच में  रघुनाथ जी मोहताज थे …

या उम्र  ने उन्हें बना दिया था…

क्या इस तरह का व्यवहार करना सही था…

समझ नहीं आता …

कौन गलत…

कौन सही…

लेकिन यह बुढ़ापा सच में बहुत ही कष्टदाई होता है …

शायद कई बुजुर्ग अपनी मौत नहीं जाते …

बहुत से  कई बार उनकी परिस्थितिय़ां  उन्हें जल्द ही अपने पास बुला लेती है ….

स्वरचित

मौलिक

अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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