“यह लीजिए दीनानाथ सेठ जी आपका काम हो गया है।अब आप बीडीओ साहिबा से हस्ताक्षर करवा लीजिए।
इसके बाद आपका काम चकाचक!”मुखिया जी कागज सेठ को थमाते हुए बोले।कागज लेकर दीनानाथ तो खुश हो गए।
इसी बीच, मुखिया जी उनके पास आकर धीरे से उनके कानों में बोले”सुना है, बीडीओ साहिबा बड़ी ही ईमानदार और सख्त अधिकारी है।देख लीजिएगा।”
मुखिया की बातें सुनकर सेठ बोले”लक्ष्मी का जमाना है।बड़े_बड़े सेठ और अधिकारी इसके सामने माथा टेकते हैं।
यह बीडीओ साहिबा क्या चीज है?”इतना कहकर वह हंसने लगे।फिर वहां से वह बीडीओ साहिबा के ऑफिस में गए।
मगर,यह क्या!उनको अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।आज उनके सामने दलित लड़की अधिकारी बनकर बैठी है।
मुखिया को ऐसे सामने देखकर बीडीओ साहिबा गर्व और स्वाभिमान से बोली”क्यों मुखिया जी,आज खुद पर शर्म आ रही है
या मेरी सफलता आपको अपच हो रही है। मैं वही दलित लड़की हूं,जिसे आपने बेइज्जत करके अपने द्वार से भगा दिया था।
कारण… मैं आपके लड़की की सहेली थी। आपने तो मेरी शिक्षा और प्रतिभा का मजाक उड़ाया था।
क्या आज मेरी हस्ताक्षर करने से आपके कागज अछूत नहीं होंगे?याद रखिएगा, प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है।
आप जैसे लोग ही समाज को जातियों में बांट रहे हैं।आप कागज को टेबल पर रखकर जा सकते है।”
बीडीओ साहिबा की व्यंग्य और आदेश को सुनकर दीनानाथ मुंह लटकाएं वहां से चल पड़े।काश! उहोंने उस दिन उस लड़की का मजाक नहीं उड़ाया होता।
आज उनका घमंड टूटा है। सच्ची बात है।प्रतिभा और शिक्षा किसी की मोहताज नहीं होती।
: कुमार किशन कीर्ति
बिहार