जया जब अठारह साल की हो गई थी तो माता पिता ने उसकी शादी कर दी थी । अपने पति का साथ उसे सिर्फ़ दो साल ही मिला था । दो दिन के बुख़ार से ही उसकी मृत्यु हो गई थी ।
अपने छोटे से बेटे को लेकर वह अकेली हो गई थी ।
उसकी सहायता ना ही ससुराल वालों ने की थी और ना ही मायके वालों ने की थी । उसने लोगों के घरों में खाना बनाकर अपने बेटे को बड़ा किया था । बेटा रवि बहुत ही होशियार था इसलिए अच्छे अंकों से पढ़ाई पूरी की और सरकारी नौकरी करने लगा था।
उसकी शादी एक संपन्न परिवार की लड़की से हो गई थी । बेटे की शादी के तीन महीने हुए थे कि बहू के मायके वालों ने जया की बेइज़्ज़ती करना शुरू कर दिया था बेटे ने उनकी बातों को सुनकर भी अनसुना कर दिया था ।
इस बात से आहत होकर जया वापस अपने घर लौट गई थी । बेटे बहू से उसका रिश्ता टूट चुका था। जया को लगा कि वह रिश्तों की मोहताज नहीं है। जहाँ उसे सम्मान नहीं मिले वहाँ वह एक पल भी नहीं रह सकती है ।
आज उसने अपने पुराने काम को ही चुन लिया और खाना बनाने का काम करने लगी ।
आज भी शारदा जी के घर से खाना बनाकर घर पहुँची और जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला तो देखा नीचे एक चिट्ठी पड़ी हुई है । उसे उठाकर देखा तो उसका ही पता लिखा हुआ था किसने लिखा होगा सोचते हुए पत्र खोलकर देखा तो उसकी चचेरी बहन लता ने लिखा था ।
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दीदी ,
हम सब यहाँ कुशल मंगल हैं । आप कैसी हैं ? आशा करती हूँ कि आप भी कुशल होंगी । मैं यह पत्र इसलिए लिख रही हूँ कि माँ की तबीयत बहुत ख़राब हो गई है वे आपको याद कर रही हैं । आप तो बचपन से हमारे साथ ही थीं इसलिए माँ को आपसे कुछ ज़्यादा ही लगाव हो गया था ।
मैं यह भी कहना चाह रही हूँ कि आप भी वहाँ गाँव में अकेली ही रह रही हैं तो क्यों न हमारे पास आकर रह लें यहाँ आप हमारे साथ रहते हुए माँ की देखभाल भी कर सकती हैं । दीदी दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए आपको दरदर की ठोकरें भी नहीं खाने पड़ेंगे सोचकर जवाब दीजिए पत्र लिखने की ज़रूरत नहीं है सीधे घर आ जाइए ।
आपकी बहन
लता
पत्र पढ़ते ही जया की आँखों में आँसू आ गए थे । इतने सालों में किसी ने भी उसे अपने घर नहीं बुलाया था लता की चिट्ठी देखते ही देर ना करते हुए जया ने अपने कपड़े और जरूरत की चीजों को रख लिया और सबको बता दिया था कि कुछ दिनों के लिए मौसी के घर जा रही है और सीधे मौसी के घर के लिए निकल गई ।
महाराष्ट्र के एक गाँव में मौसी रहती थीं पति गाँव के सरपंच थे बहुत बड़ा मकान था उनका ।
मौसी के दो लड़के और दो लड़कियाँ हैं । सबसे छोटी बेटी लता की शादी हो गई थी परंतु पति के गुजरने के बाद मायके में ही रहने लगी थी क्योंकि तब तक मौसा जी भी गुजर गए थे तो मौसी को उसका सहारा मिल गया था ।
कुछ दिनों तक सब ठीक था लेकिन अचानक मौसी को क्या हो गया है कि वे बिस्तर पर आ गई हैं सोचते सोचते हुए ही मेरी आँख लग गई थी ।
सुबह मौसी के गाँव पहुँच कर रिक्शा ले लिया पता बताने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि वहाँ उन्हें सब लोग जानते थे ।
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मुझे देखकर लता बहुत खुश हो गई थी । मुझे गले लगाकर कहा कि अरे तेरे पास सिर्फ़ एक ही बैग है चल कोई बात नहीं है तू नहा धोकर आ जा मैं तुझे माँ के पास ले चलती हूँ । मैं नहाते हुए सोच में डूब गई थी कि मौसी यहाँ इतने बड़े घर में नहीं रहतीं हैं तो फिर कहाँ रहतीं होंगी ।
मैं जैसे ही तैयार हो कर आई लता ने मुझे खाना खिलाया और घर के पिछले हिस्से में ले गई । जिसे लोग आउटहाउस कहते हैं । जब मौसा जी जीवित थे वहाँ नौकर चाकर रहते थे । आज वहाँ घर की मालकिन रह रही है।
मुझे लेकर वह जैसे ही घर में घुसी मैंने भी उसके साथ साथ अपनी नाक ढंक ली थी क्योंकि बहुत ही गंदी बदबू नाक में घुस गई थी ।
लता बाहर ही खड़ी रही और मुझसे कहा कि तुम यहीं रहोगी मैं राशन भेज दूँगी यहीं अपने लिए और माँ के लिए खाना बना लेना बड़े घर की तरफ झाँकना भी नहीं तुम यहाँ माँ की देखभाल करने आई हो यह भूलना नहीं समझ गई है ना कहते हुए वहाँ से चली गईं ।
मैं आश्चर्य चकित हो उसे जाते हुए देख रही थी कि चिट्ठी में तो बहुत प्यार जता रही थी और यहाँ मेरे पहुँचते ही रंग बदल गए हैं । मुझे काम वाली बाई ने बताया था कि अम्मा की हेल्पर को यह कहकर भगा दिया गया है कि हमने दूसरी हेल्पर को रख लिया है वह दो दिन पहले ही चली गई थी और इन लोगों ने अम्मा की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा है । इसलिए बेचारी गंदगी में ही पड़ी है । मैंने सोचा यह कैसी बेटी है माँ की देखभाल करने वाली तीन चार दिन से नहीं आ रही थी तो उन्हें वैसे ही छोड़ दिया था इसीलिए इतनी बदबू आ रही थी ।
जब मेरे नाम की चिट्ठी लिखी थी तब बहुत प्यार बरसा रही थी और आज बड़े घर की तरफ झाँकना नहीं कह रही है ।
खैर मैं मौसी के पास पहुँची तो उन्होंने मेरी तरफ़ देखा और आँखों में आँसू भर लिए थे परंतु मेरे आने की खुशी थी शायद इसलिए होंठों पर एक फीकी भी मुस्कान थी जैसे कह रही है देखा!!
मैंने उनके हाथों को अपने हाथों में लिया जैसे मैं उन्हें आश्वासन दे रही हूँ कि मैं हूँ ना ।
मैंने पल्लू को कमर में खोस लिया और पूरे घर की सफ़ाई कर दी थी । पहले मुझे भी उस बदबू से उबकाई आ रही थी पर मैंने अपने मुँह और नाक को कपड़े से ढका और सफ़ाई में फटाफट लग गई ।
उसके बाद मौसी जी को नहलाया उनके कपड़े बदले और लिटा दिया । उसी समय दरवाज़े पर दस्तक हुई तो देखा कनिका जी थीं जो मौसी की बेस्ट फ्रेंड थीं ।
उन्होंने आते ही कमरे की कायापलट को देख मेरी तरफ प्रशंसा भरी आँखों से देखा और कहा तुम तो फरिश्ता बन कर आई हो ।
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मैं भी उन्हें जानती थी कुशल मंगल के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि जया तुम इन्हें छोड़कर नहीं जाना यह बहुत अकेली हो गई है ।
बेटे बहू आते तो हैं परंतु बड़े घर में रहकर चले जाते हैं । इन्हें देखने के लिए किसी के पास भी समय नहीं है सब इनकी मृत्यु का इंतज़ार कर रहे हैं इनके गुज़रते ही जायदाद लेकर उड़न छू हो जाएँगे ।
तुम्हारे मौसा जी ने अपनी जायदाद मौसी जी के नाम यह कह कर कर दिया था कि उनके बाद ही बच्चों को मिलेगा इसीलिए आउटहाउस में रखा वरना क्या करते थे नहीं मालूम है ।
मुझे मौसी पर तरस आ गया था । मैंने उनसे वादा किया कि मैं मौसी को छोड़कर नहीं जाऊँगी परंतु यह फ़ैसला मुझे उस दिन गलत लगा जब मौसी की बड़ी बेटी माला अपने बच्चों के साथ आई हुई थी ।
मैं मौसी को खाना खिला रही थी कि अचानक माला की बेटी मेरे बैग से सारे कपड़े बाहर निकालकर फेंकने लगी।
मैंने पूछा कि यह क्या कर रही है तो कहती है कि नानी की सोने की चूड़ियाँ दिखाई नहीं दे रहीं हैं तो माँ ने आपके बैग में ढूँढने के लिए कहा है कहते हुए चली गई मेरी आँखें भर आईं थीं और उसी समय कनिका मौसी अंदर आई और कहा जया अपना वादा याद करो बेटा इनकी बातों पर ध्यान मत दो ।
जया दूसरे दिन नहाकर बाथरूम से निकली तो देखा कनिका मौसी किसी व्यक्ति के साथ मौसी से बात कर रही थी और कुछ पेपरों पर हस्ताक्षर करवा रही थी । वह सब काम ख़त्म हुआ था कि नहीं कनिका मौसी फिर आने का वादा करके अपने घर चली गई ।
मैंने मौसी को खाना खिलाया और खुद भी खाना खाकर थोड़ा आराम करने के लिए चली गई अभी मैंने बिस्तर पर अपने थके हुए शरीर को पूरी तरह से विश्राम दिया ही नहीं था कि बड़े घर से बहुत से लोगों के बातचीत की आवाज़ सुनाई दे रही थी ।
मुझे लगा कि मौसी के सभी बच्चे आ गए होंगे क्योंकि दो दिन पहले ही डॉक्टर ने उन लोगों से कहा था कि आपकी माँ अब कुछ दिनों की मेहमान हैं ।
मैं तो अपने काम से काम रखती थी इसलिए उन लोगों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया ।
वैसे भी मुझे यहाँ आए हुए छह महीने बीत गए थे । मौसी की तबियत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी । मैंने उनकी देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ी थी । अचानक एक रात मौसी ने अपनी आखरी साँस छोड़ दी थी उनके लिए मैं और कनिका मौसी ने ही आँसू बहाए थे । उन्होंने चार चार बच्चों को जन्म दिया था पर किसी ने भी एक बूँद आँसू तक उनके लिए नहीं बहाया था । जब तक जीवित थी बच्चों के प्यार की मोहताज थी ।
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उनके कार्यक्रम पूरे करके घर के सदस्य सुकून की साँस लेते हुए बातचीत में डूबे हुए थे ।
बारहवीं के बाद सुबह लता एक ब्लेंक पेपर मेरे पास लाई और कहने लगी कि पेपर के अंत में हस्ताक्षर कर दे ।
मैंने कहा कि लता मुझे बेकार के पचड़ों में मत घसीटो मुझसे जैसे बन पड़ता था वैसे मैंने मौसी की सेवा निस्वार्थ भाव से की है अब मैं वापस अपने गाँव लौट जाना चाहती हूँ ।
लता ने कहा कि दीदी गड़बड़ कुछ नहीं है माँ की मृत्यु के समय आप और कनिका मौसी ही थीं तो डेथ सर्टिफिकेट के लिए आप दोनों के हस्ताक्षर जरूरी हैं कि उनकी मृत्यु सहज ही हुई है ।
मैंने हस्ताक्षर कर दिए तो वह पेपर लेकर जाते हुए कहने लगी कि अब आपका काम हो गया है इसलिए आज ही यहाँ से चली जाइए ।
मैंने कहा कि मैंने अपने सामान बाँध लिया है पर मेरे पास टिकट के लिए पैसे नहीं हैं तुम दे देती तो अच्छा होता ।
उसी समय अंदर से भाभी आकर कहने लगी कि तीन वक़्त की रोटी रहने के लिए जगह दी है वह बस नहीं है क्या जो पैसे भी माँग रही हो ।
लता अंदर से सौ रुपये का नोट लेकर आई और कहने लगी कि मेरे पास यही पैसे हैं ।
मैंने कुछ नहीं कहा और पैसे लेकर जाने लगी पीछे से कनिका मौसी ने आवाज़ दी जया!!!
मैंने पीछे मुड़कर देखा तो उन्होंने कहा कि मेरे साथ चल और मुझे अपने साथ अपने घर ले गई वहाँ वही वकील बैठे हुए थे जो उस दिन मौसी के पास आए थे।
उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे लगा कि आपके पास बहुत पैसे हैं । मैं आश्चर्य से उनकी ओर देख रही थी कि क्या कह रहे हैं ।
आपने सुबह प्लेन पेपर्स पर साइन किया था याद है । मुझे याद आया था कि सही तो है मौसी के बच्चों ने बर्थ सर्टिफिकेट के लिए दो लोगों के हस्ताक्षर चाहिए है कहते हुए मेरे हस्ताक्षर लिए थे ।
मैंने कुछ कहा नहीं था तो उन्होंने ही बात आगे बढ़ाते हुए कहा था कि आपने जो पेपर्स पर हस्ताक्षर किए हैं उनमें लिखा हुआ था कि आउट हाउस जिसे आपकी मौसी ने आपके नाम पर कर दी थी उसे आप अपनी मर्जी से उन्हें सौंप रही हैं ।
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मेरे चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कुराहट आ गई और मैंने कहा कि वह मेरा नहीं था तो मैं क्या करूँगी उसे लेकर।
मुझे जाने दीजिए जो मेरा अपना बेटा था उसे जब मुझसे छीन लिया गया था तब ही मैंने कुछ नहीं कहा था तो आज जो मेरा नहीं है उसे लेकर क्या करूँगी ? वकील ने कहा कि देखिए पैसे के लिए जीने की ज़रूरत नहीं है परंतु पैसा हमारे लिए जरूरी है ।
मौसी की हालत देखकर मैं समझ गई हूँ कि पैसे हैं तो भी कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है । हमारे अच्छे कर्म हैं तो हमारे लिए ईश्वर किसी ना किसी रूप में सहायता के लिए किसी न किसी को भेज ही देगा । इसलिए मुझे आगे की चिंता नहीं है । कनिका मौसी मैं चलती हूँ कहते हुए मैं वहाँ से अपने गाँव के लिए निकल गई ।
के कामेश्वरी