आधुनिक फैशन में डूबी हुई उस शहर की एक ग्लैमर गर्ल थी। सलवार सूट में वह काफी खूबसूरत दिखती थी। गले में दुपट्टा, आंँखों पर रंगीन चश्मा, हाथ में चमकता पर्श, पैरों में ऊंँची एङी की सैंडिल, होठों और गालों पर कृत्रिम लालिमा को देखकर कोई भी मंत्रमुग्ध सा उसकी ओर आकर्षित हो जाता था। मुस्कुराहट में वह कशिश कि जो देखता, वह बस देखता ही रह जाता था। बोलती तो ओठों से मध चूता था, हंँसती तो बासंती बहार की फुहार मचल उठती थी। चलती तो उसकी चाल दीवानों के दिल में टीश पैदा कर देती थी। गुजरती कहीं से तो बिजली गिराकर चली जाती थी।
हांँ यही रूप था मिस रेखा का। लोगों का कहना था कि मोहब्बत का खिताब लेकर इस जहांँ में आई है, जिसका काम था मोहब्बत बिखेर कर प्रकृति में अनोखा रंग लाना। अगर फरहाद की कल्पना में शीरी, सोनी की कल्पना में महिवाल, मजनूं की कल्पना में लैला, सलीम की कल्पना में अनारकली, शाहजहाँ की कल्पना में मुमताज, रोमियो की कल्पना में जुलियट थी तो आज के दीवानों की कल्पना में रेखा ही रेखा बसी थी। काॅलेज कम्पाउंड हो या क्लब, रेस्तरांँ हो या सिनेमा, पार्क हो या गार्डन, फुटपाथ हो या चमकीली सड़क, जहाँ इस प्रेम की देवी की छाया नाचती-फिरती वहांँ प्रेम पुजारियों की भीड़ स्वागत करने में एक कदम आगे रहती थी।
रेखा काॅलेज के रास्ते पर चल रही थी। राकेश भी काॅलेज जा रहा था। अचानक एक दूसरे की नजरें मिलने पर, दोनों मुस्कुराने लगे। रेखा ने कहा, “शायद मैं नहीं भूल रही हूंँ तो आप ही मिस्टर राकेश हैं।”
” जी हाँ, मुझे ही लोग राकेश कहते हैं।”
“आप किस इयर में पढ़ते हैं?”
“मैं फाईनल इयर में पढ़ता हूंँ, आप..”
“मैं थर्ड इयर में पढ़ती हूंँ, आई हैव गुड विशेस फार यु।”
“थैंक्स!”
“नाॅट मेंशन!.. मुझे आपसे सिर्फ एक शिकायत है “
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राकेश ने आश्चर्य से कहा,” हैं, क्या कोई गलती हुई है मुझसे? “
” गलती आपकी नहीं आपकी नजरों की है।”
“क्या? “
” अगर मेरी बातों से आपको दुख नहीं हो तो आपकी नजरों की गलती कहूंँ। “
उसने एक अजीब अदा और नजाकत से कहा,” आप हमेशा नजरें नीची करके बातें करते हैं, आपकी नजरें मेरी ओर क्यों नहीं उठती है?.. क्या मैं इतनी बदसूरत हूँ? “
राकेश का सिर झुक गया, वह खामोश हो गया।
रेखा ने गर्म सांँसों को छोड़ते हुए कहा,
” मेरी बातों से शायद आपको दुख हुआ?”
“नहीं तो!”
“फिर चुप क्यों? “
” आप भी अजीब हैं रेखाजी, मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप इस तरह की बातें बोलेंगी।.. खैर, ठीक ही है शुक्रिया इस मेहरबानी के लिए, उधर चलता हूंँ, मेरा रूम नम्बर सत्ताइस में क्लास है” कहते-कहते वह काॅलेज के दूसरे भाग की ओर बढ़ गया।
पूर्णिमा की रात्रि थी, पृथ्वी लगता था दूध से नहलायी गई थी, हरी-भरी घासों पर ओसो की बूंँदें ज्योतिर्मयी चन्द्रकिरणों में सफेद मोती सदृश चमक रही थी। इसी पूर्णिमा की रात्रि को पूर्ण चन्द्र की कलाओं में ताजमहल दमक रहा था। ताजमहल, शाहजहाँ और मुमताज महल की सच्ची अनूठी प्यार की दास्तां है।
बेशकीमती पत्थरों की बनी सीढ़ियों पर इस प्राकृतिक सौंदर्य और संगीतमय वातावरण में खोये दो प्राणी संग बैठे यमुना के शीतल जलधार की ओर देख रहे थे, दोनों किसी कल्पना में रम गए थे।
राकेश ने नजर उठाकर देखा कि यमुना के किनारे विदेशी प्रेमी और प्रेमिका अपनी गतिविधियों के द्वारा एक दूसरे के प्रति प्रेम प्रदर्शित कर रहे थे।
राकेश ने रेखा को कहा, ” उधर देखो!..”
रेखा युगल-जोङी को देखकर शर्म से लाल हो गई।
विदेशी प्रेमी-प्रेमिका थोड़ी देर के बाद एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए वहांँ से चलेगये।
राकेश ने रेखा से धीमी आवाज में कहा,
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” देखा न, प्रेम में कितनी मिठास होती है।”
” हत!” इसके साथ ही रेखा के चेहरे पर सुर्खी आ गई।
“बड़ी बेचैनी मालूम पड़ती है रेखा, रातों की नींद न जाने कहाँ उड़ जाती है, तुम्हारी तस्वीर मेरी आंँखों के आगे नाचती रहती है” कहते-कहते वह उसकी कलाई पकड़ लेता है।
” छोड़िये न, कोई देख लेगा। “
” यहांँ पर कोई किसी को नहीं देखता है रेखा, इस स्थल पर प्रेम-स्मारक को साक्षी रख, यमुना के जल की कसम खाकर लोग प्रेम की डोरी में बंधते हैं मेरे दिल… मेरी रानी… तुम्हारे बिना मेरी जिन्दगी वीरान है।
जाने कब तक दोनों का प्रेमालाप चलता रहा। जब घंटा ने तीन बजाया, तब दोनों को समय का ध्यान आया।
“कल फिर मिलेंगे।”
“जरूर।”
दोनों दो दिशा में चल पड़े, रेखा के गले में जड़ाऊ हार चमक रहा था। वह चहकती चली जा रही थी।
ताजमहल की गुम्बद की ओर देखते हुए, खोये दो प्राणी आलिंगनपाश में बंँधे थे। यमुना के जल में तरंगें उठ रही थी। राकेश तेजी से यमुना के किनारे फूलों की क्यारियों को पार कर बेतहासा दौड़ पड़ा।
लेकिन यह क्या? रेखा दूसरे युवक के आलिंगनपाश में कैद थी। उसके शरीर में बिजली दौड़ने लगी, सिर चकरा गया। रेखा ने युवक के कंधेपर से सिर उठाकर राकेश को देखा, क्षण-भर के लिए दोनों की नजरें मिली, रेखा ने झट आंँखें फेर ली। राकेश आसमान से गिर पड़ा। उसके दिमाग में चक्कर काटने लगा, ‘मोहब्बत या सौदा, सौदा या मोहब्बत’
अचानक किसी शायर की कही हुई मर्मस्पर्शी आवाज ताजमहल की गुम्बद की ओर से आने लगी,
“मेरे महबूब अलविदा
जब तक यह दुनिया सलामत रहे,
हमारा यह प्यार बेगम अलविदा”
उसने व्याकुल होकर झट कानों में उंँगुलियांँ डाल ली।
स्वरचित
मुकुन्द लाल
हजारीबाग(झारखंड)