मोहल्ले वाला प्यार – बरखा शुक्ला 

बिन्नी एक क़स्बेनुमा शहर में रहती थी  । उसके बाबूजी की परचून की दुकान है।

अब भई कब और कैसे बिन्नी को पड़ोसी का बेटा विनय भा गया ,पता नहीं । विनय के पिताजी की स्टेशनरी की दुकान थी , शहर में जितने भी स्कूल थे ,उनकी किताबें वहाँ उपलब्ध रहती  , तो दुकान बढ़िया चलती थी ।

तो भई बिन्नी ने तो बारहवी पास कर ली ,उनके शहर में अभी कॉलेज नहीं था ,तो बिन्नी प्रायवेट बी.ए . करने लगी ।पास के ही शहर में परीक्षा देने जाना पड़ता था ।

और भैया विनय तो बारहवी में दो साल फैल होने के बाद दुकान में बैठने लगा था । बिन्नी ने सोचा तो क्या हुआ , बी.ए . कर भी लेता तो क्या ,बैठता तो दुकान पर ही । 

बिन्नी के घर बड़े भाई थे ,जिनकी शादी हो गई थी ॥विनय का घर पड़ोस में ही था ,तो आना जाना था । विनय का एक छोटा भाई था , तो बेटी न होने के कारण विनय की अम्मा बिन्नी को बहुत स्नेह करती । बिन्नी सोचती हमारी जाति तो एक ही है ,और माँ यदा कदा कहती भी है कि “हम तो बिटिया को ज़्यादा दूर न  विहायेगे । “

ये वो जमाना था ,जब पड़ोसी होने पर भी लड़के लड़की के बीच बात नही होती थी ,इसलिए बिन्नीं की कभी विनय से बात तो नहीं हुई ,पर आमना सामना हो जाता था ,उसके लिए यही बहुत था ,और प्यार का क्या वो तो हो जाता है ।उसने कभी सोचा ही नही कि विनय भी उसे चाहता है या नही ।शायद इसे ही नादान  उम्र का प्यार कहते है ।

अब हुआ कुछ यूँ कि विनय को दुकान पर बैठते साल भर ही हुआ था ,कि उसकी दादी बोलने लगी , “बहू विनय की शादी कर दो तो हम भी उसकी शादी देख ले ।”

बहू बोली “अरे अम्मा अभी से कहाँ ।”

“अरे बहू देखते करते साल भर निकल जायेंगा ,हम आज ही उसके पिताजी को बोलते है ॥”दादी बोली ।

अब उनके सामने विनय की अम्मा की कहाँ चलती ।




और सच में साल भर के अंदर उन्होंने विनय की शादी तय कर दी ।

बिन्नी तो जैसे आसमान से गिरी । पड़ोस का मामला था ,तो शादी में भी जाना पड़ा ,जहाँ सब लोग नई बहू की सुंदरता की तारीफ़ कर रहे थे , वही बिन्नी  को तो फूटी आँख न सुहाई । और तो और विनय को देख भी उसे लगा “हूँ ऐसा ख़ास भी नहीं है , बारहवी फेल ।”उसने ग़ुस्से में सोचा ।

पर पहला प्यार तो आख़िर पहला ही होता है । आते जाते दोनों दिख जाते तो एक कसक सी होती ।

एम .ए. करने के बाद एक अच्छे परिवार में पढ़े लिखे लड़के से बिन्नी की शादी हो गई । पति सुदर्शन था ,हाँ एक बात तो बताई ही नही बिन्नी थी बड़ी सुंदर ,तो दोनों की जोड़ी बहुत बढ़िया जमी । ससुर बड़े कारोबारी थे ,पति सुबोध इकलौते थे सारा कारोबार पिता के साथ सँभाले थे ।बिन्नी ससुराल में सबकी लाड़ली थी । पर वो न पहला प्यार भुलाए न भूलता । 

उसने तो पड़ोस में ही ससुराल का सपना देखा था ,उसके सपने इतने बड़े तो न थे । पर समय के साथ चल रही थी ।

बिन्नी की शादी को तीन – चार साल  हो गए थे ।राखी पर बेटे को लेकर मायके आई थी ,एक दिन भाभी के साथ बाज़ार गई तो बोली “भाभी अब अपना शहर भी कितना बड़ा हो गया है न ।

“हा दीदी देखो न कितनी दुकाने खुल गई है ।”भाभी बोली ।

लौटते समय भाभी बोली “अरे दीदी बच्चो के लिए कुछ किताबें लेनी है ,विनय भैया की दुकान से ले लेते है ।अब की बार बिन्नी का सामना विनय से नही हुआ था ,उसके नाम से एक बारी बिन्नी का दिल धड़का ।वो क्या है न पहला प्यार तो पहला ही होता है ।

दुकान की सीढ़ी चढ़ते हुए जिसे बिन्नी ने देखा ,उसे पहचाने में उसे थोड़ा सा वक्त लगा हैं ।शहर फैलने  के साथ -साथ विनय भी फैल कर मोटा हो गया था ।

दिल में अपने सुदर्शन पति की छबि आई । दुकान पर भाभी को प्रणाम कर उसने पूछा “और बिन्नी कैसी हो ,कब आई ?”




ये पहली बार उसने नाम लेकर पूछा था ।वो बोली “ठीक हूँ ,चार पाँच दिन हो गए आये हुए ।”

“अच्छा ।”वो बोला ।

फिर विनय बोला “भाभी आपके लिए चाय और बिन्नी के लिए जूस बुलवा देता हूँ ।”

“हे भगवान इसे अभी तक याद है ,मैं चाय नही पीती । “बिन्नी ने आश्चर्य से सोचा ।

तभी भाभी को याद आया वो एक दुकान पर कुछ भूल आई थी ।वो बोली “दीदी मैं लेकर आती हूँ ।”

बिन्नी बोली “भाभी मैं भी चलती हूँ । “

“नहीं दीदी मैं अभी आई ।”भाभी ऐसा बोल कर चली गई ।

दुकान का नौकर चाय व जूस लेने चला गया था ।

“बिन्नी तुम ख़ुश तो हो न ?”विनय ने पूछा ।

“हाँ ख़ुश हूँ मैं ।और तुम ?”बिन्नी ने पूछा ।

“मैं भी खुश हूँ ,तुम्हें ख़ुश देखकर ।”विनय बोला ।

भाभी के आने पर किताबें ले वो घर लौट गए ।

पर अब बिन्नी का दिल फूल सा हल्का हो गया था ।इस बार ससुराल लौटने पर  बिन्नी अपने परिवार में रम गई ,क्योंकि वो जान गई थी कि उसका प्यार एकतरफ़ा नही था ।उसने अपने पहले प्यार को दिल के एक कोने में छुपा दिया था ।

प्यार यही तो होता है ,जिसमें एक दूसरे की ख़ुशी चाहते है ।

बरखा शुक्ला 

 

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