मोह मोह के धागे – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

मुख्य सड़क से हटकर कच्चे पक्के मकानों के बीच इतराती बल खाती विलुप्त होकर पुनः सामने आती बेहिसाब गलियां….उसी एक गली में आज बेहद हलचल मची हुई थी लाउडस्पीकर से गीत की स्वरलहरियां हवा में दूर तक फैल रहीं थीं जो एक छोटे पक्के मकान से आ रहीं थीं।

छोटी सी ही कथा रखी गई थी ।पर घर के लिए किसी महोत्सव से कम नहीं थी।हर कोई बहुत व्यस्त था।शालिनी प्रसाद के लिए पंजीरी बना रही थी छोटा बेटा कुणाल पंडित जी के पास बैठा पंचामृत की तैयारी कर रहा था।

जुड़वां पुत्रियां रीतू और मीतू सुंदर सी रंगोली सजा रहे थे।श्रवण अपने बड़े पुत्र सुरेश के साथ आगंतुकों की बैठक और स्वल्पाहार की व्यवस्था करने में लगे थे।मोहल्ले की कई महिलाएं ढोलक लेकर मधुर गीत गा रही थीं।रसोइए के साथ बड़ी बहू सोनाली सुस्वादु भोज की तैयारी में तल्लीन थी।

सहसा उस तंग गली में हिचकोले खाती एक बड़ी सी कार दरवाजे पर रुकी और शोर मच गया “बड़े भैया “आए हैं।

हैरत और खुशी से श्रवण लपक कर बाहर आए ।

हैरत की बात ही थी दोनों भाइयों के बीच पसरा इतने बरसों का अंतराल अबोलापन …!!

अबोलापन ही तो चला आ रहा था।

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एक दौर था बचपन का….. जब बड़े भैया श्रीकांत छोटे भाई श्रवण से बेइंतहा मुहब्बत करते थे ।छोटे भाई में उनके प्राण बसते थे।उसका हमेशा ख्याल रखा करते थे।उसकी इंच मात्र खरोंच उनके लिए हृदयविदारक हुआ करती थी।पर ….शायद किसी की नजर लग गई और बड़े होते होते इन  रिश्तों में बिखराव आने लगा।

रईस पिता के ज्येष्ठ पुत्र श्रीकांत को अत्याधुनिक रहन सहन की लत लग गई और वह रईस पिता का पैसा बर्बाद करने में लग गए।आए दिन दोस्तों के साथ फाइव स्टार होटलों में पार्टियां,फैशनेबल परिधान,महंगी गाड़ियों में सैर उनके और पिता के बीच तीखे वाकयुद्ध की अग्नि दहकाते रहते थे।छोटा सीधा भाई श्रवण सहम जाता था।

“विवाह हो जाएगा पत्नी आ जाएगी तो सुधर जायेगा “भारतीय पिता की सोच रखते हुए श्रीकांत को सीधी राह पर लाने के लिए पिता ने अंततः उसकी शादी किसी साधारण घर की सुयोग्य कन्या से करने के लिए भी बहुत प्रयास किए लेकिन पुत्र के बेहूदे आचरण व्यवहार की प्रसिद्धि ने कभी कन्या के पिता को बेटी ब्याहने से इंकार कर दिया

और कभी पैसे के गुरूर में अंधे पड़े श्रीकांत ने सामान्य घर की लड़कियों को ठुकरा दिया ।श्रीकांत को हाई सोसाइटी की अत्याधुनिक लड़कियां पसंद थीं उन्हीं को अपने इर्द गिर्द समेटे रहने में वह अपनी शान समझता था शादी ब्याह उसे झमेला और अपनी निजी स्वतंत्रता के लिए खतरा महसूस होते थे।

अंत में पिता ने श्रीकांत की शादी ना होते देख छोटे श्रवण की शादी एक अत्यंत साधारण परिवार की सुयोग्य लड़की शालिनी से करने के लिए श्रवण पर दबाव डालना शुरू कर  दिया।

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पिता से तीखी बहस करने वाले बड़े भाई के प्रति श्रवण के मन में अश्रद्धा के भाव जन्मते चले गए थे जो धीरे से नफ़रत में  बदलने लगे थे।पिता की मजबूर असहाय स्थिति ने श्रवण को आक्रोशित भी कर दिया था

और वह पिता को हिम्मत और समर्थन देने के लिए उनकी हर बात मानने पर राजी था।बड़े पुत्र के ग़लत व्यसनों और मर्यादा हीन ढीठता ने पिता के दिल को तोड़ दिया और असमय ही वह काल के गाल में समा गए पर जाने के पहले वह श्रवण की शादी शालिनी से करवा गए।

पिता की आंख बंद होते ही श्रीकांत की लोलुप दृष्टि पिता की अथाह दौलत पर गड़ गई और उसने पिता की सारी चल अचल संपत्ति अपने नाम करते हुए छोटे भाई श्रवण को दूध में से माखी की तरह निकाल कर फेंक दिया।

पिता की असामयिक मृत्यु से व्यथित बेहाल श्रवण बड़े भाई के दोगले व्यवहार से मर्माहत हो गया।पिता का विशाल आवास और बड़े भाई से सारे रिश्ते त्याग वह अपनी पत्नी शालिनी के साथ  दूसरे शहर चला गया था ।

अपनी मेहनत और धैर्य से एक एक पैसा जोड़ कर श्रवण खुद को व्यवस्थित भी करता चला गया और रहने के लिए छोटा सा ही सही पर अपना खुद का मकान भी बनवा लिया था।उसके चार बच्चों में सबसे बड़े सुपुत्र सुरेश के बेटे का आज जन्मोत्सव  बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा था।

बड़े भाई ने तो उसके साथ रिश्ता तभी खत्म कर दिया था।लेकिन श्रवण के दिल के किसी कोने में बचपन वाला असीमित दुलार लुटाने वाला, ख्याल करने वाला बड़ा भाई हमेशा स्पंदित रहता था।

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इसीलिए सारे मनमुटाव को ताक पर रख  वह अपने पुत्र सुरेश की शादी के समय निमंत्रण पत्र लेकर खुद बड़े भैया के पास गया था।वहां पहुंचते ही विशाल परिचित परिसर भव्य आलीशान बागीचा देख

कर अपना बचपन और पिता की याद से वह भावुक हो गया था।पुत्र सुरेश जो उसके साथ गया था अपने पैतृक निवास को देख कर भौचक्का रह गया था और अपने ताऊ जी उर्फ बड़े पिता जी से मिलने की उसकी उत्सुकता तीव्रतर हो गई थी।

लेकिन श्रीकांत ने उन्हें अंदर आने ही नहीं दिया था और यह कहते कि “शादी ब्याह किए हो तो अपने बोझ खुद उठाओ मुझसे मदद की उम्मीद मत करो “मिलने से भी इनकार कर दिया था ।अपमानित विवश श्रवण बाहर से ही कार्ड देकर दुखी हृदय से वापिस आ गया था ।बड़े भाई के साथ कोई भी रिश्ता ना रखने का संकल्प कर लिया था उसने।

उसे पता चला था कि श्रीकांत ने फिर शादी ही नहीं की थी यह कहते हुए कि अकेले ही मैं इस सारी संपत्ति का मालिक रहूंगा और उपभोग करूंगा। शादी करके इसका उत्तराधिकारी नहीं चाहिए मुझे।पत्नी बच्चे ये सब जिंदगी के फसाद होते हैं जो जिंदगी को अपनी तरह से जीने में विकट बाधा बन जाते हैं।

श्रीकांत अकेला ही उस विशाल कोठी में ढेरों नौकर चाकर के साथ रहता था पिता की अथाह दौलत पानी की तरह बहाता था।

लेकिन धीरे धीरे बीतते वर्षों में अनियमित जीवन चर्या,विलासिता पूर्ण आदतों के कारण अब उसे कई रोगों ने जकड़ लिया था।आज दौलत होते हुए भी उस रोगी श्रीकांत के पास कोई आना नहीं चाहता था।

विशाल कोठी के बोझिल एकांत में विस्मृत बचपन उसे झकझोरता था।विगत मधुर स्मृतियां सजीव हो उसे बेचैन कर देतीं थीं और तुरंत ही पिता और छोटे भाई के साथ अपना निकृष्ट व्यवहार उसकी अंतरात्मा को चाबुक लगाता था।

“तेरे बिना जिंदगी तो लेकिन जिंदगी भी नहीं” – कुमुद मोहन

जब से उसके पुराने सेवक रामसिंह ने उसे बताया था कि दो दिनों बाद उसके छोटे भाई श्रवण के पुत्र सुरेश के छह माह के प्रथम पुत्र जन्म का उत्सव मनाया जाएगा ,तभी से वह निमंत्रण की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहा था।बेहद उत्सुक था वह छोटे भाई के घर जाने का कोई बहाना मिलने का।

लेकिन इस बार आहत श्रवण ने बड़े भाई को निमंत्रण देने की हिम्मत ही नहीं की थी।

निमंत्रण नहीं आने से श्रीकांत की व्यग्रता असहनीय हो उठी।जन्मोत्सव वाले दिन अधीर होकर वह रामसिंह को गाड़ी में बैठाकर दूसरे शहर जहां श्रवण रहता था रवाना हो गया था।सारे रास्ते वह अपमानित होने की आशंका से डरता रहा ।लेकिन दिल के किसी कोने में आज भी उसे खुद से ज्यादा छोटे भाई के निष्कपट आत्मीय व्यवहार का भरोसा था।

गाड़ी रुकते ही  श्रवण खुद नंगे पांव दौड़ कर आया । दरवाजा खुलते ही वह वर्षो पहले की भांति ही आज भी बड़े भाई के पैर छूने को झुक गया ।…” क्या  छोटे भुला दिया बड़े भाई को निमंत्रण देने लायक भी नहीं समझा इस बार.. सही किया तूने मै इसी लायक हूं  कह कर गले से लगा लिया श्रीकांत ने।

अबोलापन और आत्मग्लानि का सैलाब अश्रु बन नेत्रों की राह उफन पड़ा।फफक कर रो पड़े दोनों के दिल।

तभी ताऊजी चरण स्पर्श कहते श्रवण के दोनों बेटे और बहू श्रीकांत के पैरों पर झुक गए।भाई साहब आशीर्वाद दीजिए कहती श्रवण की पत्नी शालिनी सिर पर पल्ला लेकर चरण स्पर्श के लिए झुक गई उसकी गोद में छह माह का अबोध पोता भी था।

भावविव्हल हो उठा श्रीकांत का दिल। बरसों का अकेलापन उपेक्षाऔर  एकाकी नीरस जीवन आज इस सम्मान और आत्मीय संबोधनों से सराबोर होकर वात्सल्य और बड़प्पन के अनछुए आत्मीय एहसास की सुखद अनुभूति कर गदगद हो गया।

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झुक कर नन्हे पोते को अपने हाथों में उठा लिया उसने।अबोध आँखें टुकुर टुकुर उसे देखती हंस पड़ी थीं।

आइए ना बड़े पापा पूजा में बैठिए पंडितजी बुला रहे हैं…तभी बड़ी बहू ने अदब से आकर कहा तो वह चकित हो गया।मुझे पूजा में क्यों बुला रहे हैं पूछना चाहता था वह।

बड़े भैया आप घर में सबसे बड़े हैं सौभाग्य है कि पोते को आज आपका आशीर्वाद मिल रहा है आइए बाकी सभी विधान आपकी हो गोद में संपन्न होंगे श्रवण ने भैया का हाथ पकड़ बहुत स्नेह से कहा तो श्रीकांत घर के मुखिया का अनोखा मधुर एहसास समेटे निशब्द हो पोते को गोद में उठाए आकर पूजा के स्थान पर बैठ गया।

पंडित जी के मंत्रोच्चार फूलों की वर्षा के बीच पोते को गोद लिए बैठा श्रीकांत आज खुद को दुनिया का सबसे रईस व्यक्ति अनुभव कर रहा था।  मोह भरे आत्मीय रिश्तों से गमकता छोटा सा यह मकान ,ताऊजी बड़े पापा के संबोधनो से गूंजता कच्चा सा आंगन आज उसे अपनी विशाल अट्टालिका से भी विशाल और भव्य प्रतीत हो रहा था।

रामसिंह यहां आओ ….श्रीकांत ने सेवक रामसिंह को बुलाकर  कुछ कहा और थोड़ी ही देर में सारी संपत्ति और पैतृक निवास पोते के नाम लिख कर अपने आशीर्वाद का श्रीगणेश कर दिया….।

टूटते रिश्ते जुड़ने लग गए थे…..।

लतिका श्रीवास्तव 

टूटते रिश्ते जुड़ गए#साप्ताहिक शब्द कहानी प्रतियोगिता

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