विश्वनाथ जी स्वयं ,खुरपी लेकर गुड़ाई करने के बाद, पानी का पाइप पकड़ कर सभी पौधों में पानी डाल रहे हैँ।
भैय्या आज तो शाम को रिसेप्शन है…. आज तो रहने देते.. किसी और को.. किसी नौकर चाकर को कह देते।
बहन दमयंती ने कह तो दिया, मगर ये अच्छी तरह जानती है कि भाभी,दया के ना रहने के बाद् विश्वनाथ जी ने इन्ही पेड़ पौधों से अपना जी लगा रखा है।
बेटा दिनेश और बेटी नीरा बस विवाह लायक हो ही रहे थे कि,दया ने उनका साथ छोड़ दिया।
लम्बी चोटी बनाए या घना जूडा,उस पर दोनो बहुत जंचते थे।
विश्वनाथ जी,अक्सर ही प्रेम से गुलाब तोड़ कर दया के बालों में लगा देते तो दया
इठला कर कहती
हटो जी,मुझे तो बालों में गजरे लगाना पसंद है…घने मोगरे के फूल के गजरे।
विश्वनाथ जी मन मसोस कर रह जाते। यहाँ इस किराए के मकान में कुछ गमले ही रखे हैं, यही क्या कम हैं?,
जब अपने घर में जाएंगे तब…
कब जाएंगे अपने घर में?
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मगर वो वक्त भी आया,जब उन्होंने अपनी छोटी सी जमीन खरीद कर उस पर घर बनवाया।
बड़े अरमान से मोगरे का पौधा लाकर लगाया। दया उसके पास आकर देखती और कहती,जब इसमें फूल आएंगे तो लगाऊंगी गजरे।
और फूल आने से पहले ही दया चली गई,एकदम से, बगैर कुछ कहे,कुछ सुने.. ऐसा सोई की सोती ही रह गई।
शांत,निश्चल भाव से उन्हें अंतिम विदाई दे कर दोनों बच्चों के पालन पोषण में व्यस्त रहे।
आंगन में भर भर के मोगरे के फूल निकलते मगर उन्हें देखकर हुलसने वाली ना रही।
बेटे दिनेश का ब्याह हो गया है। बहू विधि ,बेटी नीरा,बहन दमयंती, सभी महिलाएं,शाम के फंक्शन के लिए तैयार हो रही हैं।
विधि को तैयार करके, दमयंती बुआ लेकर आईं
चलो पिताजी का पैर छूकर आशीर्वाद लेलो, फिर मेहमान आने शुरू हो जाएंगे।
विश्वनाथ जी ने मोगरे के फूलों का गजरा देते हुए कहा
दीदी ये गजरा बहू के बालों में लगा दो,दया बड़े उम्मीद से बहू को देख रही होगी। जिंदगी भर गृहस्थी की चक्की में पिसती रही। मेरे साथ कितने किराए के मकानों में रही। कहती थी अपने घर में मालकिन की तरह मोगरे के फूलों का गजरा सुबह से लगाकर मटकती फिरुंगी…..
मैं भी ना!
इतनी छोटी सी इच्छा ना पूरी कर पाया… लगता था आगे बहुत वक्त पड़ा है,
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अभी जल्दी किस बात की है?
ढेरों जिम्मेदारियों में लिपटी दया,ने कभी जी भर कर श्रृंगार भी किया हो … ये भी याद नहीं.. फिर गजरे लगा कर इठलाने का वक्त कहां था?
सुबह से बच्चों के स्कूल का टिफिन, विश्वनाथ जी को आफिस भेजने की तैयारी… फिर दिन भर दूसरे गृहस्थी के काम चकरघिन्नी की तरह घूम कर निपटाती रहती।
एक दिन तो आफिस से आकर विश्वनाथ जी ने पूछा तुमने आज अचार डाला है क्या?
तो दया ने आश्चर्य से पूछा आपको कैसे पता?
अरे भाई तुम्हारे बालों से महक आ रही है
कल सिर धो लूंगी.. शायद हाथ बालों में लग गया
दया ने झेंपते हुए कहा।
बताओ ऐसे बालों में तुम गजरे लगाने की इच्छा रखती हो… वो भी मोगरे के।
विश्वनाथ जी देर तक हो हो करके हंसते रहे थे….
पुरानी यादों को आंखों के कोरों में समेट लिया
परंतु वक्त ही तो नहीं बचा था.. बहू इस घर को इन फूलों की तरह अपने स्नेह कुछ खुशबू से महकाओ… जो जी में आए आज और अभी पूरा करो…
सिर्फ विश्वनाथ जी ही नहीं बल्कि सभी की आंखों में आंसू आ गए थे।
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चलो भाई,आज कोई रोना धोना नहीं,आज विधि के जूड़े में यह गजरा, भाभी के आशीर्वाद स्वरूप है.. दमयंती जी ने हंसते हुए कहा कर माहौल को हल्का करने की कोशिश की।
विधि,पैर आगे बढ़ा कर आगे स्टेज की ओर जा रही थी। पूरे परिवार का मान सम्मान,स्नेह सब अपने दामन में समेटे हुए।
सारे गहनों श्रृंगार पर भारी था ये गजरा।
किसने कहा कि वक्त बहुत सी चीजें पूरी करने का अवसर ही नहीं देता, वो फिर से एक बार आता है, हमारे सामने हमारे बच्चों के रूप में!
ये सिर्फ गजरा नहीं, मां की आस और पिता का विश्वास भी था कि कुलवधु सबका मान रखेगी।
विश्वनाथ जी देख रहे थे,दया की अधूरी इच्छा,बहू के सिर पर ताज की तरह शोभायमान था
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
मोगरे के फूलों का गजरा!!
पूर्णिमा सोनी
# आशीर्वाद, कहानी प्रतियोगिता