तेज प्रताप बाबू अपने बेटों की देखभाल करने और उनको खुश रखने में कोई कोर-कसर नहीं छोङते थे। अपने बच्चों के आगे परिवार के सभी बच्चों को बहुत हिकारत की दृष्टि से देखते। चाहे खुद के परिवार के भांजा-भांजी, भतीजा-भतीजी ही क्यों न हो।
पर्व- त्यौहार में सारा परिवार जब इकट्ठा होता तो तरह-तरह की मिठाइयां आती लेकिन उसे लेकर वह सेकंड फ्लोर पर चले जाते जहां उनके बच्चे रहते थे। जबकि संयुक्त परिवार में सभी लोगों को आपस में मिलजुल कर रहना चाहिए था। उनके छोटे भाई बोलते लेकिन उनके कान पर जूं नहीं रेंगती।
बेशर्मी की हद तो तब होती, जब सबके सामने ही अपने बच्चों को अच्छी क्वालिटी की ढेर सारी मिठाईयां खिलाते और घर के बाकी बच्चों के लिए साधारण सी मिठाई लाते। जब उनके भतीजा -भतीजी ऊपर जाते तो वही ये लोग बढ़िया मिठाई खाते रहते। इनको पूछते भी नहीं।
उनके तीनों बेटे शहर के प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ते थे। पढ़ाई समाप्त कर रवि इंजीनियर, राहुल पुलिस इंस्पेक्टर तो रोहित केंद्रीय विद्यालय में प्लस टू को पढ़ाने लगा।
रवि की शादी के लिए जो भी आता तो उससे तपाक से कहते “भाई बेटा डेढ़ लाख कमाता है। उसके स्टैंडर्ड का ही रिश्ता मुझे चाहिए। बहुत ही धूमधाम से शादी करनी है। मुझे स्मार्ट और संस्कारी बहू चाहिए। नौकरी नहीं भी करती हो तो चलेगी।
बेटी वाले थोड़ा झेंपते, अपनी औकात देखते और चलते बनते। इस तरह कई बढ़िया रिश्ते उनके हाथ से निकल गए। फिर भी उन्होंने लड़की वालों को जलील करना नहीं छोड़ा।
एक दिन अचानक शहर के बहुत बड़े प्रॉपर्टी डीलर रामजी सिंह उनके घर पधारे। वह अपनी बिटिया रूपाली का रिश्ता रवि के लिए लेकर आए थे।
तेज प्रताप बाबू ने रामजी बाबू से कहा-“धन्य भाग्य हमारे जो आप हमारे घर पधारे।”
रामजी बाबू ने कहा-“ऐसा क्यों कह रहे हैं तेज प्रताप बाबू क्या मैं आपसे मिलने नहीं आ सकता।”
“जी!क्यों नहीं आ सकते आप ही का घर है जब चाहे तब आ सकते हैं। आप शहर के इतने प्रतिष्ठित आदमी हैं तो मैंने सोचा मेरे जैसे छोटे लोगों से आपको क्या काम पड़ गया इसीलिए थोड़ा आश्चर्यचकित हूं।”
“जी!मैं अपनी बिटिया का रिश्ता आपके बड़े बेटे के लिए लेकर आया हूं। कल सुरेश बाबू मिले थे उन्होंने बताया कि रवि के लिए आप अच्छा रिश्ता ढूंढ रहे हैं।अपनी बिटिया के लिए रिश्ता लेकर आए थे। लेकिन उनसे बात नहीं बनी। उन्होंने ही मुझे यहां भेजा है। आप बस शादी के लिए हां कर दीजिए, मैं आपकी सारी मांगे पूरी कर दूंगा।”
”अरे! नहीं-नहीं मेरी कोई मांग नहीं है आप ही का बेटा है आप जैसे चाहे शादी कर सकते हैं।”
तो मैं रिश्ता पक्का समझूं, आप अपनी श्रीमती जी से भी राय ले लीजिएगा। शायद उनकी भी कुछ ख्वाहिश हो। शादी में हर मां के कुछ अरमान होते हैं और उनकी कोई मांग हो तो वह भी पूछ लीजिएगा। क्योंकि मर्दों से ज्यादा महिलाओं को दान-दहेज का शौक रहता है।
“नहीं रामजी बाबू! राधिका से क्या पूछना। हम लोगों की कोई मांग नहीं है। आपके यहां रिश्तेदारी हो जाए यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है, तेज प्रताप बाबू ने बड़ी विनम्रता के साथ कहा।”
“मैं तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा और कोई भी चीज की कमी नहीं होने दूंगा। भगवान की दया से सब कुछ है मेरे पास।”
रामजी बाबू ढेर सारा दान-दहेज देने का वादा कर अपने घर लौट आए।
तेज प्रताप बाबू और राधिका दोनों बहुत खुश हुए कि इतने अमीर व्यक्ति के यहां मेरे बेटे की शादी तय हुई है।
तेज प्रताप बाबू और राधिका जी ने बड़े बेटे की शादी बहुत ही धूमधाम से की। दहेज में ढेर सारा नगद और इतना सामान मिला कि उनका तीनों फ्लोर भर गया। मोहल्ले में तेज प्रताप बाबू सीना चौड़ा किए घुमते थे मानों कह रहे हो “देखा! मेरी हैसियत और अपनी औकात।”
नई-नवेली दुल्हन मॉडर्न जमाने की थी। छोटे कपड़े पहनना, देर से सोना और देर से उठना उसकी फितरत मे शुमार थी। तेज प्रताप बाबू और राधिका जी को यह बिल्कुल पसंद नहीं आता था। राधिका जी अक्सर बहू को टोक देती थी।
एक दिन वह उनकी नजरों के सामने छोटे- छोटे कपड़े पहन चली आई तो उन्होंने मर्यादा पर लंबा -चौड़ा लेक्चर दे डाला। टोका- टोकी बहू को पसंद नहीं आ रहा था।
उसने रवि से कहा,“तुम्हारे मम्मी- पापा को मेरे कपड़े पर आपत्ति क्यों होती है? तुम्हारे मां-बाप तो बहुत ही जाहिल-गंवार है। उनकी कोई बेटी नहीं है। इसलिए बेटियों के साथ कैसा सलूक करना चाहिए इन गंवारो को नहीं पता? यदि उन्हें टिपिकल बहू चाहिए तो कोई गांव -देहात की लड़की लाते? मुझ जैसी मॉडर्न लड़की से तुम्हारी शादी करने की क्या जरूरत थी।अब रईस परिवार की बेटी ब्याह कर लाए हैं नखरे तो झेलने हीं पड़ेंगे। उनसे कह दो अपनी जुबान बंद रखें।”
बहू ने अपनी आदत नहीं बदली छोटे-छोटे कपड़ों को कौन कहे वह जींस-टॉप, स्कर्ट पहन कर बाजार निकलने लगी। लोगों ने तेज प्रताप बाबू से कहा यह-क्या आपकी बहू तो जींस-टॉप पहनती है।
मुझे लगता है अब आपकी घर में नहीं चलती।या मना करने की आपकी औकात ही नहीं है। अमीर घर की बिगड़ी बेटी लाएंगे तो यही हाल होगा न। दहेज के लालच में आपने कई अच्छे-अच्छे रिश्तो को ठुकरा दिया। अब देखिएगा यही मॉडर्न बहू आपकी नाक कटवाएगी।
तेज प्रताप बाबू ने बेटे रवि से कहा-“बहू को रस्मो -रिवाज की समझ तो होनी ही चाहिए। तुम थोड़ा उसे सलीके से रहने की हिदायत दे दो क्योंकि मोहल्ले में लोगों ने बातें बनानी शुरू कर दी है।‘
बेटे ने तपाक से कहा “मुझे समझ में नहीं आता आप लोगों को मेरी पत्नी के कपड़ों पर क्यों आपत्ति है? वह क्या पहनती है, क्या ओढ़ती है, इससे आप लोगों को क्या मतलब? हमेशा हम लोगों के जीवन में झांकना छोडिए। जब देखो तब आप लोग ताक-झांक टोका-टोकी करते रहते हैं।”
रवि ने हाथ जोड़कर कहा। “हमें अपनी जिंदगी जीने दीजिए ना।”
रवि की मुंह से ऐसी बातें सुनकर तेज प्रताप बाबू अवाक् रह गए। उन दोनों को रवि से ऐसी बातों की उम्मीद नहीं थी। वह तो बस यह समझाना चाह रहे थे कि सलीके से बहू रहे कि सामने वाले को कुछ कहने का मौका ना मिले’।
अगले दिन रविवार था, सत्यनारायण स्वामी की पूजा होने वाली थी और उसमें बहू-बेटे को ही बैठना था। पूजा के लिए मोहल्ले की औरतें आ चुकी थी और कुछ पुरुष भी आए थे। सारे लोग आ गए अभी तक बहु नीचे नहीं आई। पंडित जी भी आते ही होंगे।
उनकी पडोसन सावित्री ने राधिका से कहा “अब तो बहू को बुलाओ।”
तभी पंडित जी भी आ गए। आते ही उन्होंने पूजा में बैठने वालों को बुलाया कि अब विलंब करना ठीक नहीं है जजमान। जल्दी से आप अपने बहू -बेटे को बुलाये।
“हां पंडित जी अभी बुलाती हूं”, राधिका ने कहा और रामू को ऊपर बहू -बेटे को बुलाने भेजा।
रामू ने आकर कहा कि-“भाभीजी अभी सोई हुई हैं।
“तो तुमने उन्हें उठाया नहीं”, राधिका ने गुस्साते हुए कहा। मैंने उन्हें जगाया तो
“उन्होंने कहा है कि माताजी खुद ही पूजा में बैठ जाए।”
“अरे रामू! तुमने बताया नहीं कि पूजा उन दोनों के लिए रखी गई है।”
“मैंने बताया था मांजी लेकिन उन्होंने कहा कि मैं पूजा–पाठ नहीं मानती हूं।”
तभी तेज प्रताप बाबू ने कहा कि “कोई बात नहीं मैं ही पूजा पर बैठ जाता हूं।”
किसी तरह पूजा संपन्न हुई। सभी लोग बातें बनाते हुए अपने-अपने घर को लौट गए।
राधिका जी ने बहू को डांटते हुए कहा -“जब तुम जानती थी कि पूजा तुम लोगों के लिए ही रखा गया है तो नीचे क्यों नहीं आई। पूजा के बाद भी तो तुम सो सकती थी। सबके सामने इतनी बेइज्जती कराने की क्या जरूरत थी? ”
बहू ने रोते हुए रवि से कहा “अब तो मेरा सोना भी तुम्हारी मम्मी को रास नहीं आ रहा है। बात-बात में मुझे डांटती रहती है। इनको तो देहाती बहू चाहिए थी जो दिन-रात जी मांजी, हां मांजी कहते रहती। मुझ जैसी पढ़ी-लिखी और मॉडर्न लड़की कहां इन जाहिलो के बीच फंस गई।”
बेटा बाथरूम से निकला और बोला,“क्या बात है? क्या चाहती हो मम्मी तुम?अब रूपाली सोया भी ना करें? रविवार था देर तक सोती रही तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा।”
“कैसे बेशर्म हो गए हो बेटे! अरे जब तुम लोगों के लिए पूजा रखी थी, तो तुम लोगों का फर्ज नहीं बनता कि पूजा में शामिल हों। मोहल्ले की औरतों के सामने मेरी नाक कटवा दिया तुम लोगों ने। अब हर जगह ढिंढोरा पीटते चलेंगी कि राधिका के बच्चे मर्यादा विहीन हो गए हैं। अपने मां-बाप की नहीं सुनते। कितनी बातें बनाते हुए अपने घर को लौटी है सब।”
“मम्मी आप फिर से लेक्चर ना दीजिए। आप तो सवेरे उठ जाती है ना, रामू काका के साथ मिलकर सारे काम निपटा क्यों नहीं लेती। लेकिन आप ऐसा क्यों करेंगी। आपको तो बहू के पीछे पड़ने की आदत हो गई है।”
सोमवार को बिना ब्रेकफास्ट किए ही रवि अपने ऑफिस चला गया। रात में भी देर से घर लौटा और सीधे अपने कमरे में चला गया। अपने मम्मी- पापा से कोई बात नहीं की। मंगलवार को अचानक एक मालवाहक गाड़ी दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई। उसमें से कुछ मजदूर निकलकर रवि के कमरे की तरफ जाने लगे।
राधिका जी ने कहा “अरे! ऊपर की तरफ तुम लोग कहां जा रहे हो? ”
इस पर रवि ने कहा कि “आओ तुम लोग सीधे ऊपर ही चले आओ।”
वहां से सारा सामान लाकर उस गाड़ी में लादने लगे। तेज प्रताप बाबू और उनकी पत्नी राधिका जी परेशान हो गए। दोनों ने पूछा “कहां जा रहे हो सामान लेकर लेकिन उन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया।”
तब सामान ले जाने वाला एक मजदूर ही बोला कि, ”मैडम के पिताजी ने इनके लिए आलीशान घर खरीदा है, उसी में रहने जा रहे हैं।”
तेज प्रताप बाबू ने विस्मित नजरों से बेटे की ओर देखा और कहा- “ऐसा क्यों कर रहे हो बेटा कोई अपने मां-बाप का साथ छोड़कर जाता है क्या? ”
“रूपाली आप लोगों के साथ एडजस्ट नहीं कर पा रही है इसलिए उसके डैडी ने हम दोनों को एक मकान उपहार स्वरूप दिया है। उसी में हम लोग रहने जा रहे हैं।”
सामान लदता देख आसपास के लोग जमा हो गए। तेज प्रतापबाबू और राधिका जी के पास मोहल्ले वालों की घूरती निगाहों का जवाब नहीं था। बेटा बहू चले गए और तेज प्रताप बाबू और राधिका जी अपने घर में कैद हो गए।उनके दोनों बेटों को जब पता चला कि भैया भाभी घर छोड़ कर चले गए तो उन लोगों ने भी अपने मम्मी- पापा को ही दोषी करार दिया। तेज प्रताप बाबू और राधिका जी खामोश थे। किससे अपना दुखड़ा कहे उन्हें समझ नहीं आ रहा था।कैसे अपने दोनों बेटों को समझाएं कि कसूरवार वह नहीं है।
प्रियंका पाठक
संप्रति– असिस्टेंट प्रोफेसर,डी०बी०एस०डी०
डिग्री कॉलेज,गरखा,सारण,बिहार