मीनू को इस स्कूल में आये कुछ ही दिन बीते थें और उसके मिलनसार स्वभाव के कारण जल्दी ही कई लड़कियाँ उसकी सहेलियाँ भी बन गई थी।तान्या नाम की एक लड़की भी उसी की कक्षा में पढ़ती थी जो अक्सर ही उसे परेशान किया करती थी।कभी उसकी किताबें गायब कर देती तो कभी सीढ़ियों से उतरने में उसे टाँग लगा देती जिसकी वजह से वह कई बार गिरती-गिरती बची थी।लंचब्रेक में भी उसका टिफ़िन गिराकर साॅरी कह देना, उसके बालों और ड्रेस पर कमेन्ट्स करना तो तान्या की जैसे आदत बन गई थी।मीनू के लिये तान्या के व्यवहार को सहन करना बहुत मुश्किल हो गया था।उसका पढ़ाई से भी मन उचटने लगा था।उसने जब अपनी सहेलियों से भी इस बात की चर्चा की तो कुछ ने सलाह दी, ” उसे इग्नोर कर मीनू, वह तो ऐसी ही है।” तो कुछ ने कहा, ” मीनू, तुझे भी उसे मज़ा चखाना चाहिए।”
एक दिन तो तान्या ने हद कर दी,मीनू के बैग से उसकी काॅपी निकालकर फाड़ने लगी,तभी मीनू की एक सहेली ने देख लिया और मीनू को बता दिया।और तब, मीनू गुस्से से तमतमा उठी और तान्या के साथ वैसा ही व्यवहार करके उससे बदला लेने का उसने निश्चय कर लिया।
मीनू की सखी ज्योति को जब मीनू के इरादे का पता चला तो उसने मीनू को समझाया, ” देखो मीनू , तुमने अपने अच्छे व्यवहार से शिक्षकों और अपने सहपाठियों के बीच एक अच्छी जगह बना ली है।तुम्हारा अपना एक अलग व्यक्तित्व है, पहचान है।अब अगर तुम भी तान्या जैसा ही व्यवहार करोगी तब उसमें और तुममें क्या फ़र्क रह जायेगा।ऐसा करने से तो तुम तान्या जैसी लड़की ही कहलाने लगोगी।तुम्हारा अपना व्यक्तित्व तो खत्म हो जायेगा।क्या तुम ऐसा चाहोगी?” सुनकर मीनू बहुत दुखी हुई और बोली, ” लेकिन तान्या का क्या करूँ, मुझे इतना परेशान करती है और पढ़ने में भी डिस्टर्ब करती है।” ज्योति बोली, ” इसका भी उपाय है,हम कल ही चलकर प्रिंसिपल मैडम से सारी बात कहेंगे, वो ज़रूर इस समस्या का समाधान निकालेगी।” अगले दिन असेंबली के बाद मीनू ज्योति के साथ प्रिंसिपल मैडम के ऑफ़िस में गई और उन्हें पूरी बात बताई।प्रिंसिपल मैडम ने तुरन्त तान्या को बुलवाया और मीनू को साॅरी कहने को कहा।साथ ही,उन्होंने तान्या को यह हिदायत भी दी कि भविष्य में अगर उसकी शिकायत दुबारा आई तो उसे स्कूल से सस्पेंड कर दिया जाएगा।
उस दिन के बाद से तान्या ने मीनू को परेशान करना तो छोड़ दिया लेकिन वह अकेली उदास रहने लगी।यह देखकर मीनू को अच्छा नहीं लगा।आखिर तान्या भी तो उसकी सहपाठिन थी।एक दिन लंच ब्रेक में वह तान्या के पास गई और मुस्कुराते हुए बोली, ” चलो तान्या, पुरानी बातें भूलकर हम दोस्त बन जाते हैं।” तान्या शायद इसी बात का इंतज़ार कर रही थी।मीनू के स्नेह भरे शब्दों ने उसके मन की कटुता को दूर कर दिया।तभी ज्योति आ गई। मीनू को तान्या के साथ देखकर वह बहुत खुश आई और बोली, ” देखा मीनू , मित्रता के रंग ने तुम दोनों के बदला लेने और ईर्ष्या की भावना को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है।” ” हाँ ज़्योति, सही समय पर तुमने मेरी आँखें खोल दी,मुझे सही राह दिखाई।तुम्हारी जैसी सखी पाकर तो मैं धन्य हो गई।” मीनू की बात सुनकर तान्या बोली, ” और मैं भी ” फिर तो तीनों ही खिलखिला कर हँस पड़ी।उस दिन के बाद से तीनों की मित्रता के चर्चे पूरे स्कूल में होने लगे।सच है, छोटा-सा मित्र शब्द कितने बड़े-बड़े काम कर जाता है।
—— विभा गुप्ता