संजना खामोश बैठी है। बाहर वाले इस बड़े कमरे में बिछी तखत पर सासू माँ का एकाधिकार होता था।उनकी सारी गतिविधियों
का केंद्र था यह।और आज पहली संक्रांति उनके बिना।कल ही शहर से आई यहाँ पहला त्योहार होने से आना तो था ही।वह यही सोच रही थी कि अम्माँ तिल के कितने लड्डू बनातीं थीं पर आज देखो तो घर में एक लड्डू नहीं बना। उसके ख्यालों की तंद्रा टूटी भी नहीं थी कि पड़ोस की महिलाओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया। लड्डू के साथ-साथ उसकी झोली उपहारों से भर गई।सभी अम्माँ को याद करती जा रही थी। धीरे-धीरे पूरा बरामदा महिलाओं से भर गया। उसे रह-रह कर वह एक संक्रांति याद आ रही थी जब अम्माँ शहर आईं थीं। संजना तो बाज़ार से ही बने बनाए दस-बारह लड्डू ले आई थी। आम-तौर पर अम्मा टोका-टाकी बहुत कम करती थीं। पर उस दिन अम्मा ने चौंकते हुए कहा था -” बेटा यह तो घर में ही बन जाते… वैसे भी इन दो चार लड्डडुओं से क्या होगा ?”
उसने बड़ी बेरुखी से ही जवाब दिया था,”बेटू तो खाता नहीं…बाकि बचे हम दोनों …तो काफी हैं हमारे लिए… मैं तो कहती हूँ अम्मा…आप भी इतना सब क्यों बनाती हैं वहाँ गाँव में?”
” बेटा…खुद के लिए नहीं… त्योहार तो मिल-बांटने के लिए होते हैं… अड़ोस-पड़ोस बहन-बेटियां , नाते-रिश्तेदार जितना बाँटो उतना कम है।”
उस समय तो समझ नहीं आया। पर आज वह भीगी आँखों से देख रही थी कि अम्माँ की बाँटी हुई मिठास उनके नहीं होने पर भी वापस लौट रही है।
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समाप्त
ज़रूरत
“हलो.. भैया मैं बाबा को सुबह लेने आ रहा हूँ… आप बार-बार फोन कर रहे थे पर क्या करूँ खेत में खड़ी फसल थी छोड़ कर आ भी नहीं सकता था बस इसीलिए थोड़ी देर हो गई।” रमेश ने बड़े भाई महेश को देरी का कारण बताते हुये कहा।
करीब एक महीने से बाबा शहर में बड़े बेटे के पास बड़े शौक से रहने आये थे ….रमेश को बड़े भाई के फोन लगातार आ रहे थे उसमें स्पष्ट तो नही पर सांकेतिक कुछ ऐसा होता था …जैसे वो संकोचवश कुछ कह न पा रहे हो…. उसकी सोच का आसमान उनकी अस्पष्ट बातो से धुंधला रहा था।
पर पिछले तीन चार दिन से तो भैया के बार-बार फोन आ रहे थे, और अब वे स्पष्ट बोल रहे थे की आओ बाबा को ले जाओ।
“अरे सुन छोटे अब आने की जरूरत नहीं है बाबा को लेने के लिए।” बड़े भाई ने अचानक फैसला बदल छोटे को आश्चर्य चकित कर दिया।
” क्यों भैया दो तीन दिनों से तो आप बार-बार फोन पर यही कह रहे थे कि तेरी भाभी उनके साथ एडजस्ट नहीं कर पा रही है..बाबा को ले जाओ.. बाबा को ले जाओ।अब क्या हुआ?”
“अरे छोटे… आज ही पता चला कि तेरी भाभी का ऑफिस अब ऑफलाइन हो गया है अब उसे ऑफिस जाना पड़ेगा…और सनी इतना छोटा है कि उसे अकेला घर में नहीं छोड़ सकते बाबा रहेंगे तो संभाल लेंगे इसलिए अब उनको हमारे साथ ही रखते हैं।”
……….
“भैया…आप बाबा को अपने साथ रखना चाहते हैं… परंतु मैं बाबा के साथ रहना चाहता हूँ… बस इसीलिए आपके न कहने पर भी आ रहा हूँ बाबा को लेने के लिये… माफ करना भैया …सुबह पहुँच रहा हूँ।”
अब आसमान से बादल छँट चुके थे।
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रश्मि स्थापक