मिर्ची वाले भटूरे — – नेकराम : Moral Stories in Hindi

हमारे मोहल्ले में साप्ताहिक बाजार लगता है शाम को थैला लेकर बीवी के पीछे-पीछे चलना मेरी हमेशा से ही आदत रही है

बीवी हमेशा आगे आगे चलती सब्जी का मोल भाव करती और खरीद लेती मेरे पास जो थैला रहता उसमें सब्जियां रख देती यही हमारा हर सप्ताह का नियम था

उस दिन भी साप्ताहिक बाजार फिर लग गया शाम होते ही मैं बीवी के पीछे-पीछे चल पड़ा उसी बाजार में एक छोले भटूरे वाला अपने भटूरे बेचा करता था उसकी दुकान पर बहुत भीड़ रहती थी

लोगों को छोले भटूरे खाते देखा हमारे भी मुंह में पानी आ जाता और हम भी एक-एक प्लेट छोले भटूरे खा लेते थे

छोले भटूरे की कीमत भी ज्यादा नहीं थी केवल ₹35 की एक प्लेट

एक प्लेट में छोले और गरमा गरम दो भटूरे साथ में सलाद रखकर वह ग्राहकों को दे देता

,, बाजार के बीच में उसने दो-तीन टेबल लगवा रखी थी लोग उस टेबल पर अपनी प्लेट रखकर बड़े मजे से छोले भटूरे का आनंद लेते थे

हमने भी दो प्लेट छोले भटूरे का ऑर्डर दे दिया और मैंने काउंटर पर पैसे जमा करके टॉकिंग ले लिया और हम टेबल पर खड़े होकर अपने भटूरे का इंतजार करने लगे

5 मिनट बाद ही एक छोटा लड़का दो प्लेट भटूरे की लाकर हमारे सामने रखकर चला गया जब हमने भटूरे खाए तो छोले में अधिक मिर्च थी

पत्नी के मुंह से तो,,सी ,,सी की आवाज निकलने लगी

इतनी तेज मिर्च वाले छोले खाकर मेरा तो पसीना ही निकल आया

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ग्राहकों ने भी दुकानदार से कहा छोले में मिर्च ज्यादा है मगर छोले स्वादिष्ट है और भटूरे तो आपके बड़े फेमस है इसलिए जब भी साप्ताहिक बाजार लगता है तो हम लोग आपकी ही दुकान में चले आते हैं

पत्नी ने छोले खाते ही कहा मिर्च बड़ी तेज है जल्दी से पानी ले आओ

मैंने दुकानदार से कहा भाई पानी एक गिलास चाहिए

तब दुकानदार ने मुझे इशारा करते हुए कहा वहा एक ठंडे पानी की मशीन दिखाई दे रही है वहीं से पानी ले लो

मैं उस ठंडी मशीन के पास पहुंचा तो उस बुजुर्ग से दिखने वाले आदमी ने कहा ₹2 गिलास है पानी का ,,

वह बुजुर्ग पुराना सा कुर्ता पजामा पहने हाथ उसके कांप रहे थे शायद

40 बर्ष की उम्र का होगा उसकी दुकान पर पानी पीने वालों की बहुत भीड़ थी जो भी छोले भटूरे खाता उसकी दुकान से ही पानी खरीद कर पी लेता

दो गिलास में पी गया और दो गिलास पत्नी को पिला दिए उस बुजुर्ग को ₹8 देने के बाद मैं छोले भटूरे की दुकानदार के पास पहुंचा

और दुकानदार से कहा तुमने छोले में इतनी मिर्च डाली है हमारा पेट भी खराब हो सकता है पहले तो तुम्हारे छोले कम मिर्च वाले बनते थे आज मिर्च ज्यादा क्यों है क्या इस तरह तुम दुकान चलाओगे

और तुमने पानी की व्यवस्था भी नहीं की हुई है पहले तो तुम एक ड्राम पानी से भरा हुआ रखते थे तुम्हारा ड्राम कहां है पानी का

अगली बार से मैं तो क्या कोई ग्राहक भी तुम्हारी दुकान से छोले भटूरे खरीदने नहीं आएगा इस साप्ताहिक बाजार के मुखिया को मैं अच्छी तरह जानता हूं अगर मैंने उनसे शिकायत की तो तुम्हारी छोले भटूरे की दुकान इस साप्ताहिक बाजार में नहीं लगेगी मैंने थोड़ा कड़क होकर कहा

मुझे गुस्से में देख दुकानदार ने नरमी से कहा ,,भाई साहब ,,बात ऐसी है

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मैंने मिर्च सब्जी में जानबूझकर डाली है ,,

यह सुनकर तो मैं और भी ज्यादा क्रोधित हो गया ,, और कहने लगा यह क्या मजाक है,,

तब दुकानदार ने समझाया ,, वह बुजुर्ग जो ठंडे मशीन की रेहड़ी से पानी बेंच रहा है,, ₹2 प्रति गिलास,,

उसकी एक बेटी है रेशमा वह अपनी बेटी को आईपीएस ऑफिसर बनाना चाहता है कोचिंग की फीस देने के लिए कुछ रुपए कम पड़ रहे थे

दिन भर वह फुटपाथ के बने बस स्टैंड पर अपनी ठंडे पानी की मशीन लगाकर कुछ रुपए कमा लेता है हमारे ही मकान का किराएदार है

मुझसे कर्जा मांग रहा था लेकिन मैंने नहीं दिया क्योंकि 3 महीने का किराया उसने अभी तक नहीं दिया ,,,

अब मैं भी तो एक गरीब ही हूं मकान जरूर हमारा अपना है लेकिन इस साप्ताहिक बाजार में छोले भटूरे बेचकर अपना परिवार पाल रहा हूं

जो कमाता हूं घर में खर्च हो जाता है लेकिन मैंने उस बुजुर्ग की मजबूरी समझ कर 3 महीने से किराया अभी तक नहीं मांगा ,,

तब वह कहने लगा मुझे कल तक कोचिंग की फीस जमा करवानी है और मेरे पास रकम नहीं थी इसलिए मैंने उसे कहा मैं जहां साप्ताहिक बाजार लगता हूं तुम अपनी ठंडे पानी की मशीन वहां ले आना

मैं छोले में थोड़ी मिर्च ज्यादा डाल दूंगा लोगों को ज्यादा प्यास लगेगी और वह एक के बदले दो गिलास पानी पी लेंगे इस तरह तुम्हारी दुकानदारी भी हो जाएगी और जो रुपए इकट्ठे होंगे तुम कल तक कोचिंग की फीस जमा करवा देना

मुझे बुरा ना समझना भाई साहब ,, उस बुजुर्ग की बेटी की पढ़ाई का सवाल है ,, वरना अपनी चलती हुई दुकान को कौन खराब करना चाहेगा बस आज आज की बात है अगले सप्ताह से आपको फिर से कम मिर्च वाले छोले मिलने शुरू हो जाएंगे

दुकानदार की बात सुनने के बाद मैं अपनी पत्नी के साथ सब्जियां खरीद कर घर की तरफ चल पड़ा यह सोचते हुए इस दुनिया में कैसे-कैसे लोग है

एक पिता अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए कितने संघर्षों से जुझता है

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और उनकी मदद करने के लिए कोई ना कोई फरिश्ता उन्हें इंसान के रूप में मिल ही जाता है

लेखक नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से

स्वरचित रचना

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