मेरी वंशिका – नीना महाजन नीर

आजकल वंशिका मानसिक रूप से बहुत परेशान थी  इससे उसकी पढ़ाई पर भी असर आने लगा था क्योंकि गली से नुक्कड़ पर आते जाते उसे कुछ आवारा लड़के उसे फब्तियां कसते और उल्टा सीधा बोल उसका मज़ाक बनाते थे। 

         वंशिका ने अपनी बचपन की मित्र और सहपाठी सौम्या को सब बताया कि आकाश अपने साथियों के साथ मिलकर उसे आते जाते बहुत तंग करता है , जिससे वह बहुत परेशान हो गई है।

 तुम ही बताओ…सौम्या..उसे किस तरह से रोका जाए… 

              उसकी बात सुनकर सौम्या भी उसका हौंसला ना बढ़कर उसे ही डराने लगी… इन आवारा लड़कों से हमें कोई पंगा नहीं लेना वंशिका… तू इनसे कुछ मत कहना नहीं तो यह तेरा घर से निकलना बंद करवा देंगे , लड़कियों पर तेज़ाब फेंकने के किस्से भी तो आजकल तू सुन ही रही है ।

          बात बहुत आगे बढ़ गई थी पर जाने यह सब मां को बताने से वंशिका क्यों डर रही थी    

         प्रतिदिन वंशिका के स्कूल से आने के समय पर गली के नुक्कड़ पर आकाश अपने दोस्त के साथ खड़ा दिखता था और दोनों वंशिका को देखकर  फब्तियां कसा करते थे। 

               कईं दिन से मैं देख रही थी वंशिका  आजकल कुछ असहज सी रहती है मेरे पूछते ही वो रोने लगी…और… मां कहकर गले लग गई 

         कुछ कहने की जरूरत ना थी, मैंने उसे गले लगा लिया।




             मन आक्रोश से भरा था

          मूल्यहीन परिस्थितियों ने नारी जीवन अधिक असुरक्षित बना दिया है हर जगह लुच्चे लफंगे से भरा भेड़िया समाज उसे चबा जाने के लिए लार टपकाता रहता है। 

      क्रोध के मारे मुझे रात को चैन नहीं पड़ रहा था जी तो चाहता था की उसी क्षण जाकर दोनों का मुंह नोच लूं पर रात तो अपने समय से ही कटनी थी 

          अगले दिन दोपहर को मैं वंशिका को लेने पहुंच गई .

वंशिका पर पड़ती आकाश की गंदी नजर और अपशब्दों से मेरे तन- मन में आग लग गई थी ।

          हर प्रकार के अपमान का जवाब देकर मुझे वास्तविक मुक्ति चाहिए थी, अपनी लड़ाई लड़ने के लिए मैंने कमर कस ली

       मेरे पास प्रबलता से जागा हुआ आत्मविश्वास और अदम्य साहस था  मैं हर हालत में डटे रहने का निश्चय कर चुकी थी।




           यह संघर्ष था बेटी के बचाव के लिए…

      जाने कैसे मुझमें इतनी हिम्मत आ गई मैंने रुक कर उसे आग्नेय दृष्टि से घूरा, एक झन्नाटेदार चांटा रसीद कर उसे आगे से वंशिका का पीछा ना करने की हिदायत दी।

              उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिए मैं क्षण भर भी वहां ना रुकी  जल्दी  से मैं वहां से आगे बढ़ गई 

        अब मेरा हृदय डर से भी कांप रहा था।

              पर पुरुष समाज के दृष्टिकोण और व्यवहार में बदलाव लाने के लिए यह जरूरी था 

               हमें तो केवल सुषुप्त अवस्था में पड़ा अपना वह स्थान वह चाहिए जिनका पुरुषों के लिए कोई उपयोग नहीं है।

     वंशिका ने कसकर मेरा हाथ पकड़ा और हम दोनों घर की ओर बढ़ गए।

 

 

 

 

-नीना महाजन नीर

 

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