मैं आश्नवी बचपन से ही ‘ बड़ी बहन माँ के समान होती है ‘
सुन कर पली बढ़ी हूँ।
कहाँ पता था ?
भविष्य में यह कथन मेरे द्वारा ही चरितार्थ होने वाली है।
कुल चार जनों का छोटा परिवार था मेरा जिसमें मैं, मेरा छोटा भाई, मम्मी-डैडी थे। हंसते -खेलते हम बड़े होते जा रहे थे।
मुझे पढ़-लिख कर वकालत करने का शौक था जब कि डैडी मुझे डॉक्टर एवं भाई को इंजीनियर बनाना चाहते थे।
छोटा भाई निखिल हमेशा मीठे स्वर में गुनगुनाता था …
” फूलों का तारों का सबका कहना है एक हजारों में मेरी बहना है “
बहुत खुशी-खुशी दिन बीत रहे थे कि किसी की नजर लग गई हमारी खुशी को।
अचानक एक दिन ऑफिस से लौटते वक्त डैडी की मौत भयंकर ऐक्सिडेंट में हो गयी।
पूरा परिवार टूट कर स्तब्ध रह गया । मम्मी तो बिखर गईं थीं।
छोटा भाई गौरव भी ना कुछ बोलता और ना ही रोता था।
वो मुझसे पूरे सात साल छोटा है। आस-पड़ोस के लोगों ने कहा कि इसका रोना जरूरी है।
तब मैंने ही उसे रुलाने के खयाल से पिता की अर्थी को कंधा एवं मुखाग्नि देने का निर्णय ले लिया।
मेरा अनुमान सही निकला यह देख कर उसने जो़र -जो़र से रोना शुरू कर दिया और मुझे धक्का दे कर किनारे कर दिया।
मेरे लिए यही बहुत था कि मैं अपने प्लान में सफल हो गई थी।
सभी जान-पहचान वाले नाते रिश्तेदार आए और पन्द्रह दिनों तक रह कर हमलोग को ढ़ाढ़स बंधा कर चलते बने थे।
किसी ने भी अपनी तरफ से मदद का हाँथ नहीं बढ़ाया।
खैर पापा की सरकारी नौकरी थी वह या तो मम्मी को मिलती या भाई को पर मम्मी की मानसिक दशा ऐसी नहीं थी कि वह बाहर-भीतर कर पातीं और भाई अभी चौदह साल का ही था।
बड़ी मैं ही थी लिहाजा नौकरी मेरे हिस्से में आई।
तब से लेकर आज तक मैंने ही परिवार को संभाला है। मम्मी और नौकरी सब एक साथ करती हुई।
लेकिन छोटे भाई की पढ़ाई पर जरा भी आंच नहीं आने दिया।
इसी बीच ऑफिस में सहकर्मी सलाह देते रहते आश्नवी आप अपने भविष्य पर भी ध्यान दें।
लेकिन मेरे पास किसी को सुनने का अवसर कहाँ था ?
दिन भर ऑफिस में सिर खपाती और शाम से मम्मी और भाई के साथ।
तब उस समय मुँह से उफ्फ तक नहीं निकलती सारा कुछ हँस कर करती जाती।
धीरे-धीरे कर के भाई की पढ़ाई कम्प्लीट हो गई नौकरी भी लग गयी।
मुझे लगा कि मेरे अच्छे दिन आ गए अपनी बीच में ही छूटी पढ़ाई पूरी करने की सोच रखी थी।
लेकिन हाए री मेरी किस्मत भाई एक दिन अपनी मर्जी से बड़े घर की इकलौती बिटिया को ब्याह लाया।
फिर यह सोच कर कि जो हो गया उसे टाल नहीं सकते कलेजे पर पत्थर रख के भाभी की आरती कर उसे गृहप्रवेश करवाया।
मन में कंही एक संतोष था अब भाई-भाभी मिल कर मम्मी को संभाल लेगें तो मैं कुछ अपने बारे में भी सोच सकूंगी। ना सही पढ़ाई भावी जीवन के बिषय में।
अतुल जो ऑफिस में मेरे साथ ही काम करते हैं न जाने कब से मेरा इंतजार कर रहे हैं।
इसी बीच भाई का ट्रांसफर उसके ससुर ने जबरदस्ती बड़े शहर में करवा दिया था।
जहाँ वे उसे अपनी छत्रछाया में रख सकें।
भाभी को हमारा घर छोटा और हम यानी मैं और मम्मी तुच्छ लगते थे। मम्मी के पास तो वे भूले से नहीं जातीं अगर कभीगलती से सामने हो जाएं तो नाक बंद कर लेतीं उन्हें मम्मी से एक खास तरह की बदबू आती थी।
मैं देखती पर मन मसोस कर रह जाती थी और भाई बेशर्मी से हँसता रहता।
मुझे उस पर गुस्सा तो बहुत आता पर कुछ भी टोकने पर भाभी घर को लड़ाई का अखाड़ा बना देती थी।
बहरहाल एक दिन मैं ऑफिस से लौट कर बिना कपड़े बदले ही सुस्ता रही थी।
जब भाई के तबादले की सूचना भाभी को फोन द्वारा मिली।
वह तो खुशी से पागल हो गई थी।
मुझे सुनाने के लिए ही शायद उसने जोर से कहा था ,
‘ थैंक्स गॉड , तुमने मेरी सुन ली अब इन दो कौड़ी के लोगों और बदबूदार घरसे निजात मिल पाएगी ‘
पता नहीं उसके गॉड ने सुनी या नहीं ?
हाँ मेरे ईश्वर ने जरूर सुन ली थी।
ठीक उसी वक्त दरवाजे पर भाई आ कर खड़ा था उसने सुन ली थी।
मैं तो उससे भाभी की बावत कभी कुछ बोलती या कहें कि शिकायत नहीं करती थी। और माँ तो वैसे ही निरीह बूढ़ी गाय की तरह पड़ी रहतीं।
जानती थी भाई की आंखों पर इस समय पूरी तरह से भ्रम का पर्दा पड़ गया है।
उसे क्यों कर किसी की बात का विश्वास होगा ?
लेकिन आज नहीं तो कल जरूर हटेगा यही सोच कर चुप ही रहती।
शायद आज वह दिन आ गया था। जब भाभी अपनी रौ में बोलती जा रही थी,
‘ एक तो सरकारी नौकरी हथिया ली उस पर रोज न जाने कहाँ-कहाँ से मुँह मार कर आती हैं घिन आती है यहाँ मुझे तो ‘
उफ्फ… इतना बड़ा चरित्र हनन का दोष मैंने अपने कान पर हाँथ रख लिए और भाई की तरफ निस्तेज आंखों से देखती रही मानों कह रही हूँ ,
जो अब भी तुम्हारा खून नहीं खौला तो वह पानी है । धिक्कार है मेरे त्याग , परिश्रम एवं माँ के दूध पर।
लेकिन भगवान् ने भी उस दिन शायद मेरे या हम सबके के भले की सोच रखी थी,
‘ बिना कुछ कहे भाई मेरी गोद में सिर रख कर रोने लगा मैं निशब्द उसके सिर पर हाँथ फेरती रही ‘
माँ जो इन दिनों बहुत मुश्किल से चल पाती थीं वे भी दरवाजे पर आ कर खड़ी हुई गंगा – जमुना के इस पवित्र मिलन को देख रही थीं।
भाभी की हालत तो ‘ काटो तो खून नहीं ‘ वाली जैसी हो गई थी।
तब भाई ने कड़ेऔर स्पष्ट तौर पर कह दिया ,
मेरी’ गंगा माँ’ जैसी दीदी पर तुमने लांक्षण लगा दिए,
तुमसे बड़ा दुष्ट और इस दुनिया में कोई नहीं है।
मैं कहीं भी बाहर नहीं जाने वाला हूँ जिसको घिन आती है वह जाना चाहे तो चला जाए।
‘ मेरी तो काबा भी यहीं और काशी भी यहीं हैं मेरी दीदी माँ के चरणों में ‘
फिर हाँथ में पकड़े हुए प्रसाद के दोने को मेरी गोद में रख कर शांत स्वर में बोला ,
‘ दीदी आज बाजार में आपके ऑफिस वाले अतुल सर मिले थे आपके बारे में पूछ रहे थे।
कह रहे थे अब तो उस बिचारी पर दया करो उसके सिर में चांदी के तार झलक रहे हैं ‘
‘ धत्त ‘ कह कर मैंने उसके सर पर प्यार से चपत जमा दी वह वही उसी पुराने मीठे स्वर में गुनगुना रहा था,
” फूलों का तारों का सबका कहना है …
एक हजारो में मेरी बहना है … “
स्वरचित / सीमा वर्मा