अधेड़ उम्र के डॉक्टर विश्वास जैसे ही ऑपरेशन थिएटर से बाहर आए, रोशनी के माता-पिता उनकी तरफ दौड़ पड़े और चिंतातुर होते हुए पूछने लगे-” रोशनी अब कैसी है डॉक्टर साहब,हमारी बच्ची का ऑपरेशन कैसा रहा, वह होश में कब आएगी? ”
उन्होंने डॉक्टर साहब से दो क्षण में ढेरों सवाल पूछ डाले। डॉ विश्वास ने अपनी ओटी वाली यूनिफॉर्म उतारते हुए उनके प्रश्नों की झड़ी के उत्तर में सिर्फ इतना ही कहा-” ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा” और इतना कह कर वह बाहर के दरवाजे की तरफ बढ़ गए और अपनी बड़ी सी सफेद कार में बैठकर चले गए।
रोशनी की मां अनीता की रुलाई फूट पड़ी। उसके पति विनोद उसे सांत्वना देने लगे। तब आंसू पोंछते हुए अनीता बोली-” डॉक्टर साहब ने बहुत बड़ी बात कही कि ऑपरेशन सफल रहा परंतु पूरी बात बताएं बिना निकल गए। ”
विनोद-” इन बड़े लोगों को हम जैसे मध्यम वर्गीय लोगों के दुख दर्द से क्या लेना देना, हमने कैसे पैसों का इंतजाम किया है और अपनी बच्ची के दिल की हालत देखकर हमारी छाती कैसे फट रही है इन्हें क्या पता,
इन लोगों को सिर्फ अपने पैसों से मतलब होता है।इनके सीने में दिल नहीं पत्थर होता है। पत्थर दिल होते हैं ऐसे लोग,जब अपनी संतान पर बितती है तब पता लगता है। तू अपना दिल छोटा मत कर, रोशनी जल्दी ही ठीक हो जाएगी। ”
पास खड़ी हुई एक जूनियर डॉक्टर अर्पिता सब कुछ सुन रही थी। वह उन दोनों के पास आई और बोली-” आपकी बेटी को शाम तक होश आ जाएगा, आप यह दवाइयां और इंजेक्शन ले आइए और मुझे आप लोगों से कुछ और बात भी करनी है वह मैं अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद आपसे करूंगी।”
उन दोनों ने रोशनी की चिंता में उसकी बात पर कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया और दवाइयां लाकर उसे दे दी। रोशनी जब होश में आई तो नर्स ने उन्हें आईसीयू में 15 मिनट तक मिलने का समय दिया और कहा कि रोशनी को कल रात रूम में शिफ्ट कर दिया जाएगा तब आप दोनों में से एक व्यक्ति उसके साथ रह सकता है।
थोड़ी देर बाद जूनियर डॉक्टर अर्पिता उनसे मिलने आई और कहने लगी, ” आप लोग बिल्कुल चिंता मत कीजिए, रोशनी बिल्कुल ठीक हो जाएगी। डॉ विश्वास बहुत ही काबिल और नेक दिल इंसान है, उन्होंने कई लोगों की मदद की है।”
अनीता-” आप हमें यह सब क्यों बता रही हैं जबकि हम उनका व्यवहार देख चुके हैं।हमारी बच्ची का ऑपरेशन करने के बाद जब से वह गए हैं तब से दोबारा उसे देखने आए तक नहीं है और हमारे सवालों का जवाब भी नहीं दिया, बड़े घमंडी और पत्थर दिल लगते हैं।”
अर्पिता-” देखिए आपको उनके बारे में ऐसे नहीं बोलना चाहिए।आप उनके बारे में कुछ नहीं जानती हैं इसीलिए ऐसा कह रही हैं। सच्चाई का जब आपको पता लगेगा,तो आपको स्वयं अपने व्यवहार पर अफसोस होगा। आप स्वयं को कोसने लगेगी।
हां, तो मैं डॉक्टर साहब के बारे में आपको बता रही थी। मेरी मां डॉक्टर साहब के घर बर्तन धोने और सफाई करने का काम करती थी।।कभी-कभी छुट्टी वाले दिन मै भी उनके साथ चली जाती थी। मुझे पढ़ाई का बहुत शौक था। मैं डॉक्टर बनना चाहती थी।
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एक दिन जब मेरी मां ने बातों बातों में यह बात डॉक्टर साहब के सामने कहीं तो उन्होंने अपनी बेटी स्नेहा के साथ-साथ मेरी पढ़ाई का खर्च भी उठा लिया। उनकी बेटी स्नेहा मुझसे एक साल बड़ी थी,मैं अक्सर उसकी किताबें खोल कर देखने लगती थी।
मेरे बचपन से लेकर मेरे डॉक्टर बनने तक सारा खर्च डॉक्टर साहब ने उठाया। स्नेहा और मैं जब डॉक्टर बन गए, तब इसी अस्पताल में काम करने लगे,मेरी तरह डॉक्टर साहब ने कई जरूरतमंदों की कई तरीकों से मदद की है।
आपकी बेटी का हाल-चाल वह हमसे लगातार फोन पर पूछते रहते हैं और यह लीजिए चैक, उन्होंने आपका ऑपरेशन का खर्चा वापस कर दिया है। आप लोग नहीं जानते कि पिछले तीन दिनों में उन पर क्या बीती है
फिर भी वह हिम्मत करके अस्पताल आए और रोशनी का हाल देखकर जल्दी ऑपरेशन किया। उनकी जगह कोई और होता तो हिम्मत हार जाता लेकिन उन्होंने रोशनी की हालत पर गौर किया पर अपनी हालत पर नहीं। ”
रोशनी का पिता विनोद-” हम कुछ समझ नहीं जरा ठीक से बताइए। ”
अर्पिता-” वैसे तो डॉक्टर साहब ने मुझे बताने के लिए मना किया था लेकिन आप लोग उन पर पत्थर दिल होने का आरोप लगा रहे थे तो मुझसे रहा नहीं गया, दरअसल मेरी प्यारी सहेली स्नेहा यानी कि डॉक्टर साहब की इकलौती बेटी का तीन दिन पहले एक्सीडेंट में देहांत हो गया और उन्होंने अपनी
बेटी का दिल रोशनी को दे दिया और इसीलिए उन्होंने कहा कि आपका जो पैसे अस्पताल में जमा हो गए, उसके लिए तो मैं कुछ नहीं कर सकता और उन्होंने अपने पर्सनल अकाउंट से आपको पैसे वापस कर दिए, उन्होंने कहा कि मैं एक बेटी का दिल दूसरी बेटी को दे रहा हूं, मैं उसे बेच नहीं
सकता और रोशनी के ऑपरेशन के बाद जब वह भागते हुए गए थे,तब मेरी प्यारी सहेली स्नेहा की चौथे की रस्म थी,मैं भी जाना चाहती थी पर आप लोगों के कारण डॉक्टर साहब ने मुझे यहां रुकने को कहा। “इतना कहकर अर्पिता रो पड़ी।
रोशनी के माता-पिता को सचमुच अपने ऊपर बहुत शर्म आ रही थी। डॉ विश्वास सचमुच नेक दिल इंसान है और हम उन्हें घमंडी और पत्थर दिल कह रहे थे,हे ईश्वर! हमारी भूल को क्षमा करना।
अगले दिन वह रोशनी से मिले, वह काफी हद तक ठीक लग रही थी तभी डॉक्टर साहब आए। जैसे ही वह रोशनी को चैक करने के बाद कमरे से निकलने लगे, रोशनी के माता-पिता उनके पैरों में गिर पड़े और रोने लगे। डॉक्टर साहब ने उन्हें उठाया और कहा -” यह आप लोग क्या कर रहे हैं? ”
माता-पिता -” डॉक्टर साहब हमें माफ कर दीजिए। हमने आपको बहुत गलत समझा,आपने तो अपने दुख की परवाह न करते हुए भी अपनी बेटी का दिल हमारी बेटी———-।। ”
डॉक्टर साहब -” ओह! तो आपको अर्पिता ने सब कुछ बता दिया, रोशनी आपकी बेटी होने के साथ-साथ मेरी भी बेटी समान है। ”
अगले दिन रोशनी को देखने जब डॉक्टर साहब आए तब तक रोशनी को पूरी बात पता चल चुकी थी। उसने भरे गले से डॉ विश्वास को पुकारा -” पापा”
डॉ विश्वास की आंखों में आंसू भरे हुए थे, जब उन्होंने पलट कर देखा तो रोशनी ने पूछा, ” मैं आपको पापा कह सकती हूं ना? ”
डॉ विश्वास ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए सहमति में गर्दन हिलाई और बोले -” मेरी स्नेहा”।
अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली
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