मेरी जननी – Hindi kahani

किशनगढ़ स्टेट के प्रधानमंत्री गुलाब राय सक्सेना …..जिन्हें ” राय साहब”

  की उपाधी से नवाजा गया था ,उनकी बड़ी पुत्री सरला जैसे ही विवाह योग्य हुई, रिश्ते ढूंढे जाने लगे 1935 में जन्मी सरला अपने नाम के अनुरूप… भावुक, सरल  गौर वर्ण तथा अत्यधिक सुन्दर बालिका थी, बड़े बड़े नामी खानदानों के रिश्ते देखे जाने लगे… पर गुलाब राय जी “जन्म कुंडली” पर अत्यधिक विश्वास करते थे..  एक रिश्ता उन्हें बेहद पसन्द आया……कहां राजस्थान

कहां मध्यप्रदेश के सागर जिले का छोटा सा गांव ” तोड़ा पाली” जिसका नाम तक सुना नहीं था किसी ने, वहां के निवासी श्री काशी प्रसाद जो तहसीदार के पद पर नियुक्त थे… उनके इकलौते पुत्र

बद्री प्रसाद जो M A एलएलबी पास  कर,नायब तहसीलदार के पद पर कार्यरत थे… उनसे सरला की कुंडली मिलान करवाई गई जो

34  गुणों के साथ सर्वश्रेष्ठ रुप से मिल गई !!

जहां सरला अद्वितीय सुन्दर बालिका वहीं बद्री प्रसाद लंबे कद के,  असाधारण रुप से  बुद्धिमान युवक  थे!! गुलाब राय जी सभी तरह से सन्तुष्ट होकर पांच सोने की गिन्नी

फल मिठाई शगुन में देकर खुशी खुशी अपने घर लौट आए!!

पत्नी चिन्ता में लिप्त… इतनी दूर बच्ची को क्यों ब्याहना…. पर उन्हें अपनी लाड़ली कन्या की क़िस्मत में राज योग जो दिख रहा था.. पूरी तरह मन बना ही लिया!!

 8 फ़रवरी 1952  काशी प्रसाद जी बारात लेकर किशनगढ़ पहुंचे शानदार स्वागत ऐसा..जैसा स्वप्न में भी नहीं सोचा था सत्कार मिला, पांच दिन बारात ठहराई गई, सारे बारातियों को विभिन्न प्रकार के उपहारों से लाद दिया गया, मुक्त कंठ से वाहवाही करते हुऐ बारात सरला को बिदा कर लाई!!

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कहां राजे रजवाड़ो में पली, राजकुमारियों सा जीवन जीती सरला, ससुराल की ड्योढ़ी पर जब उतरी, लालटेन की पीली मध्यम रोशनी.. छोटा सा दरवाज़ा जिसमें झुक कर अन्दर प्रवेश करने की आवश्यकता थी… अपने भाग्यशाली कदमों के साथ दांया पैर धरा, हाथ भर का घूंघट.. सामने कुछ दिख ही नहीं रहा… कदम लड़खड़ाए जिसे पति ने तुरंत थाम कर सहारा दिया… ये पहला वचन निभाने का संकेत था…. हमेशा साथ हूं और रहूंगा!!

डरी सहमी सी सोलह वर्षीय बालिका इकलौती वधू बनकर एक रूढ़िवादी, परंपराओं से बंधे परिवार की अहम सदस्या बन गई!!

सारी रस्मों को निभाने के बाद नंबर आया…. बहू के हाथ की रसोई का ,ढेरों पूजा पाठ के बाद रसोई की पूजा करवाई गई, बड़ा सा अंधेरा कमरा जिसे दियों की रौशनी से प्रकाशित किया गया था, कोने में बना चूल्हा, भरे पूरे परिवार की सुख साधनों में पली वो नव वधू घबराकर मां का आंचल ढूंढने लगी पर कठोर ताई सास उन्हीं की तरह सास और ननद, एक क्रूर निरीक्षक की तरह उनको आंकने बैठ गई, डरते डरते किसी तरह खीर बनी, महिलाओं द्वारा उलाहने और पुरुषों द्वारा नेग देकर रसोई छुलाई की रस्म पूरी की गई!!

    पति से जब मिली तो फूट फूटकर रो पड़ीं….. मुझे ठीक से काम करना आता नहीं, माताजी नाराज़ सी दिख रहीं हैं, मैं किसकी सहायता लूं जो मुझे मार्ग दर्शन दे…. पति ने ढांढस बंधाया, अपने घर की रीत और परंपराओं के बारे में विस्तार से बताया पर नियम कठोर क्यों हैं इतने…… कुछ कह न पाए!!

     डरकर सहमकर समय निकाला और पिता के आने पर विदा होकर  जैसे ही मायके पहुंची….. मां की फैली बाहों में टूटी बेल सी टूटकर गिर पड़ी,सिसक उठी….. मां वो लोग बहुत अलग हैं हमसे…. सब दूर रहते हैं मुझसे,नज़दीक कोई आता नहीं, मैं किससे अपने मन की व्यथा कहूं … बहुत घबराहट होती है, अपनी तीनों छोटी बहनें, बड़े भाई साहब और दोनों छोटे भाई बहुत याद आते हैं…. पिताजी ने कहां ब्याह दिया मुझे….. मां गले के कैंसर से पीड़ित  , आंखों की रोशनी खो चुकी थी, अंग्रेज डाक्टरों का इलाज चलता था पर उपयुक्त दवाएं उपलब्ध न थीं ….. जीवन का कोई भरोसा न था, सिर्फ उम्मीद पर उनकी जिन्दगी टिकी हुई थी!!

मां ने समझाया, अभी गौने की बिदा में समय है तुम महाराज जी के साथ रसोई के कामों में दक्षता हासिल करो, चिन्ता न करो!!

अगली विदाई में थोड़ी परिपक्वता के साथ कदम रखा, कटु वचनों से छुटकारा मिला, पति के साथ उनकी नौकरी पर गई, सास ससुर को अपनी सेवा और मृदुल व्यवहार से अपना बनाकर समीप किया!!

सन 56 में स्वस्थ बालक को जन्म दिया, प्रसूति गृह में जचकी कराने से बालक को ऑक्सीजन न मिल पाई और वो चल बसा, मूर्छित हो हो गई, असहनीय था बेटे को खोना, जीभर देख भी न पाई अपने लाल को, दूध भी न पिला पाई अपनी छाती का,और छीनकर ले गए और ज़मीन के अन्दर सुला आए उसे !!




क़िस्मत में अभी और दर्द लिखा था, बच्चे नहीं हुए, पढ़ाई जारी रखी, पति और ससुर का सहयोग हासिल था…. घर की महिलाओं का सुनाना आरंभ…… क्या फायदा दूध सी रंगत और सुंदरता का ये तो बंध्या है, संतान ठहरती ही नहीं…. मां! भईया के लिए दूसरी लड़की देखना शुरु करो…. इस बांझ के आंगन में तो फूल खिलने से रहा..

पति की ओर आशागीर निगाहों से देखा… उम्मीद और आश्वासन मिला, सबकी सुनी और सहन करती रही …. अब ईश्वर को आया रहम, सन 60 में प्रथम कन्या रत्न पाई, ऐसे चार पुत्री दो पुत्रों की भाग्यशाली माता बनने का सौभाग्य मिला!!

पति की पदोन्नति में हमेशा सहायक बनी, संतान आज्ञाकारी, माता पिता के दिए संस्कारो से युक्त बनीं!! सास ससुर की मृत्यु पर्यन्त देखभाल सेवा में कोई कमी न आने दी, ननद के परिवार को हमेशा आर्थिक मानसिक सहायता और साथ देने को कृतसंकल्प रहीं, पति के अधीनस्थ जरूरतमंदों की भरसक सहायता करती रहीं,BA ऑनर्स, विदुषी, साहित्य रत्न की उपाधियां हासिल की!! फर्राटेदार धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलकर चमत्कृत कर देती सभी को!!

बहुत अच्छी आत्मा थीं वो…. सुना है ईश्वर अच्छे लोगों को शीघ्र अपने पास बुला लेते हैं, शायद लोग सच ही कहते हैं!!

   मात्र 54 वर्ष की छोटी उम्र में अपनी आधी अधूरी जिन्दगी को लेकर, शल्य क्रिया में अधिक निश्चेतना के दुष्प्रभाव से वो सबको छोड़कर अनंत में समा गईं!!

इतनी कम उम्र में कितनी जिम्मेदारियां घर और बाहर की निभा गई, कितनों के दिल में जगह बना गईं …. आज उनके जाने के 33 वर्ष बाद भी परिवार का हर सदस्य उन्हें हमेशा याद करता है, हर एक की आंखें नम हो जाती हैं उन्हें यादकर !!

पिता को बेटी के जीवन में राज योग तो दिखा था पर  जीवन का ”  संघर्ष ” नहीं दिखा पर वो कोमल सी बच्ची पूरे अपने ससुराल और पीहर की जिम्मेदारियों को अपने नाज़ुक कंधो पर ढोती रही… बिना किसी शिकवा शिकायत किए!!

          ये  संघर्षमय जीवन मेरी जननी  , मेरी मां

” सरला ” का रहा, इस रचना के माध्यम से मैं उन्हें अपने श्रध्दा सुमन अर्पित करती हूं!!

#संघर्ष

प्रीति सक्सेना

अप्रकाशित्

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