योगेश नोएडा के एक प्राइवेट कंपनी में साधारण सी नौकरी करता था और उसकी बड़ी बहन शीतल पुणे के एक कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर थी। मां की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी योगेश को बड़ी बहन ने अपने बेटे की तरह पाला था। शीतल योगेश से उम्र में 15 साल बड़ी थी तो वह योगेश को कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी। योगेश को अपने पास ही रख कर पढ़ाया लिखाया।
कोरोना काल में योगेश की जॉब जा चुकी थी। जब यह बात शीतल को पता चला कि उसकी भाई की नौकरी छूट गई है। शीतल हर महीने अपने भाई के अकाउंट में चुपके से 10 हजार रुपये ट्रांसफर कर देती थी। योगेश और उसकी पत्नी सोचते पता नहीं कौन हमारे अकाउंट में ₹10 हजार हर महीने ट्रांसफर कर देता है वह भी महीने की 1 तारीख को ही इतना टाइम से तो नौकरी करते थे तब भी सैलरी नहीं मिलती थी। उसने अपने दीदी शीतल से भी पूछा था लेकिन शीतल ने इनकार कर दिया था कि पैसे मैंने नहीं भेजे हैं उसने सोचा अगर भाई को पता चलेगा तो शायद भाई को बुरा लगे इसलिए वह चाहती थी कि इस बात का पता ही ना चले कि पैसे कौन भेजता है।
उनके बाबू जी की तबीयत कई दिन से खराब चल रही थी एक दिन उन्होंने अपने बेटे योगेश से कहा,” बेटा तुम अपनी दीदी शीतल को फोन करके बुला लो मैं उसे अपनी आंखों के सामने देखना चाहता हूं अब मुझे नहीं लगता है कि मैं ज्यादा दिन तक जी पाऊंगा अब तुम्हारी माँ के के पास जाने का समय हो गया है।
योगेश ने फोन कर अपनी दीदी से कहा, “दीदी बाबू जी की तबीयत बहुत खराब चल रही है वह आपको आंखों के सामने देखना चाहते हैं मैंने तो बाबू जी से कहा भी कि वीडियो कॉल कर लेते हैं आप वीडियो कॉल पर देख लो लेकिन बाबू जी नहीं मान रहे हैं वह कह रहे हैं नहीं मैं अपनी बेटी को छूना चाहता हूं अपनी आंखों के सामने देखना चाहता हूं।”
शीतल बोली, “हां भाई मन तो मेरा भी कर रहा है क्योंकि बाबूजी कि अब उम्र भी हो गई है। लेकिन तुम देख ही रहे हो हवाई जहाज चल नहीं रही है और ट्रेन से आना भी संभव नहीं है देखती हूँ बाय रोड आने की कोशिश करती हूँ ।
दो-तीन दिन बाद ही बाय रोड शीतल अपने मायके नोएडा आ गई थी। शीतल को देखकर उसके बाबूजी के आंखों से आंसू छलक पड़े थे शीतल अपने बाबूजी के आंसू पोछते हुये बोली, “बाबूजी आपको कुछ नहीं होगा मैं आ गई हूं ना आप बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगे।”
बाबू जी बोले, “नहीं बिटिया अब लग रहा है बुलावा आ गया है तुम्हारी मां से मिलने का समय आ गया है।”
शीतल अच्छी तरह से जानती थी कि इस महंगाई में ₹10 हजार से कुछ नहीं होता अपने मायके आने से पहले रास्ते में ही एक मॉल से 2 महीने का राशन अपने भाई के लिए खरीद कर लेकर गई।
योगेश की पत्नी बोली, “दीदी इस सब की क्या जरूरत थी।”
शीतल बोली, “क्यों नहीं जरूरत थी रमा तुम्हें पता नहीं है योगेश मेरा भाई भी है और मेरा बेटा भी मैंने बचपन से इसे अपने बेटे की तरह अपने पास पाला है और वह माँ ही क्या जिसे बेटे का दुख बिना कहे पता ना चल पाए।”
योगेश और उसकी पत्नी को अब यकीन हो गया था कि वह हर महीने ₹10 हजार जरूर दीदी ही ट्रांसफर करती हैं।
शीतल अपने भाई के बेटी के लिए एक अच्छा सा मोबाइल भी खरीद कर लाई थी कि घर से वह ऑनलाइन क्लास कर सके। योगेश ने अपने दीदी को बताया दीदी मैंने इसका नाम स्कूल से कटवा दिया है ऑनलाइन पढ़ाई में क्या रखा है जब स्कूल खुलेगा तो दोबारा से एडमिशन करवा देंगे। योगेश अपने दीदी से क्या बोलता कि उसके पास पैसे नहीं थे इसलिए उसने अपनी बेटी का नाम कटवा दिया है।
शीतल ने योगेश की वाइफ को उसकी मां से फोन पर बात करते हुए सुन लिया था कि उसकी बच्ची का नाम स्कूल वालों ने फीस नहीं भरने के कारण काट दिया है ना कि योगेश ने कटवाया है।
अगले दिन अपने भाई की बेटी की स्कूल गई और 1 साल की फीस भरकर आ गई और अपनी भतीजी रजनी से बोली, “रजनी आज से तुम ऑनलाइन क्लास करोगी।” रजनी बोली, “बुआ मेरा तो स्कूल से नाम ही कट गया है अब स्कूल खुलेगा तो मैं सीधे क्लास जाऊंगी।”
शीतल बोली, “अब मेरी गुड़िया आज से ही ऑनलाइन क्लास करेगी तुम्हारा 1 साल का फिश मैंने स्कूल में भर दिया है।
योगेश की बीवी ने शीतल को कहा, “सच में दीदी आप योगेश की माँ ही है कोई बहन अपने भाई के लिए इतना नहीं करती है।”
शीतल ने देखा कि उसका भाई उसके पिताजी की सुबह शाम शरीर की मालिश करता टाइम से दवाई खिलाता योगेश की बीवी भी उसके पिताजी को बहुत मान करती है । शीतल इसी बात से खुश हो रही थी कि चलो कम से कम योगेश की बीवी पिता जी की सेवा तो करती है नहीं तो आज के जमाने में कौन बहू अपने ससुर की सेवा करती है।
शीतल के बाबूजी की तबीयत भी अब पहले से ठीक हो गई थी वह अपने आप ही बेड पर बैठ जाते थे।
शीतल को आए हुये 15 दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला शीतल बोली, “भाई अब मुझे जाना होगा अब तो ट्रेन भी चलने लगी है मैं देखती हूं कल का अगर टिकट मिल जाता है। तो जाऊँगी क्योंकि तुम्हारे जीजा जी भी परेशान हो रहे होंगे उन्होंने भी आज तक कभी किचन में पैर भी नहीं रखा लेकिन उन्होंने बोला कि तुम जाओ बाबू जी से मिल कर आओ मैं यहां संभाल लूंगा अब बच्चों को तो लेकर आ नहीं सकते थे बाहर इतना कोरोना का डर है।
शीतल अपने भाई और उसकी पत्नी रमा से बोली, ” तुम दोनों किसी भी चीज की टेंशन मत लेना तुम्हारी बड़ी बहन अभी जिंदा है।”
जब शीतल ट्रेन में बैठने लगी तो योगेश की पत्नी अपनी बड़ी ननद को शगुन के रुपए पकड़ाने लगी, शीतल ने साफ मना कर दिया। शीतल ने कहा, “रमा इस बार नहीं अगली बार आएंगे तो जरूर शगुन लेंगे।”
योगेश बोला, “दीदी ठीक है कि नौकरी छूट गई है लेकिन जो रिवाज है वह तो कर लेने दो यह शगुन के पैसे आप ले लो यह पैसे नहीं हैं यह तो मायके का प्यार होता है जो एक बेटी को जोड़े रखता है।” इस बार शीतल ने मना नहीं किया बल्कि चुपचाप रख लिया। वह मन ही मन सोच रही थी इस तरह के भाई और भाभी मिल जाए तो किसी भी लड़की का मायका कभी नहीं छूटेगा एक लड़की मायके से क्या चाहती है बस थोड़ा सा प्यार और मनुहार। शीतल को लगता था कि बाबूजी के जाने के बाद शायद उसका मायका छूट न जाए लेकिन अब उसे यकीन हो गया था उसका मायका कभी नहीं छूटेगा।
दोस्तों अगर इस कहानी के सार को समझें तो सबसे बड़ी बात यह है कि महिलाओं को आत्मनिर्भर होना होगा अब शीतल अपने मायके वाले की मदद इसलिए कर पाई क्योंकि वह आत्मनिर्भर थी उसे अपने मायके में मदद करने के लिए अपने पति से हाथ फैलाने की जरूरत नहीं थी इसीलिए आप यह मत सोचिए कि मैं महिला हूं तो मुझे कमाने की जरूरत नहीं है जीवन में परिस्थितियां कब कैसी आ जाए आप इसका अनुमान नहीं लगा सकती हैं इसीलिए जितना भी हो सके आप पार्ट टाइम भी कुछ कमाने के बारे में सोचिए।