“रजनी बहन, गांव में पहुंचे हुए हकीम आये है, जो हर समस्या का इलाज बताते हैं, और उनके द्वारा बताए गये उपाय करने से सबके काम हो रहे हैं, हरीश भाई साहब की तबीयत इतनी खराब हो रही है, तो आप वहां जाकर ही इनका इलाज क्यों ना करवा लेती हो।” पड़ोस की बीना भाभी ने सलाह देते हुए कहा।
“मेरे बेटे ये सब नहीं मानते हैं, शहर में नौकरी करते हैं, और हम अगले सप्ताह शहर उनके पास इलाज के लिए जा रहे हैं, अस्पताल में इनका नाम भी लिखवा रखा है, तो जल्दी ही फर्क पड़ जायेगा।” रजनी जी ने अपनी बात भी रखी।
“अरे! अभी तो एक सप्ताह है, बड़े दिन है, भाई साहब की हालत तो खराब हो रही है, हो सकता है इन्हीं संत के यहां जाने से ठीक हो जाएं और शहर जाना ही ना पड़े, इलाज का खर्चा बच जायेगा, और शहर में तो तुम्हारा मन भी नहीं लगता है, बहूएं तो तुमसे बात भी नहीं करती है तो फिर उनकी चौखट पर जाकर क्यों पड़ती हो।” बीना जी ने आग में घी डालना शुरू किया।
रजनी जी का मन पुरानी यादें याद करके कड़वाहट से भर गया, और उन्होंने बीना भाभी के साथ जाने के लिए हां कर दी।
अगली सुबह वो खेत में काम कर रहे रामू को अपने पति के पास छोड़कर बीना भाभी के साथ चल दी, वहां बहुत भीड़ थी, लोग अपनी परेशानी लेकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। तभी रजनी जी की बारी आई, उन्होंने पति की बीमारी के बारे में बताया, हकीम ने उन्हें दवाई दी और दोनों समय खाने के लिए बोला।
रजनी जी के आंचल में प्रसाद दिया और कहा, इसे दोनों जने बराबर बांटकर खा लेना, तुम दोनों का कल्याण हो जायेगा। वो घर पर आई और रात को खाना बनाया साथ में वो प्रसाद भी दोनों ने खा लिया, दोनों जने अगली दोपहर तक सोते ही रहे, बड़ी मुश्किल से नींद खुली तो पता लगा कि घर में चोरी हो गई थी, सारे गहने और कीमती सामान गायब हो गया था, तभी बीना भाभी भी भागकर आई, उन्होंने भी अपने यहां चोरी होने की बात की।
“बीना भाभी मेरी तो अक्ल ही जाने कहां चली गई थी जो मैंने आप पर और उन हकीम पर विश्वास किया, जबकि मुझे पता था, बीमारी का इलाज केवल डॉक्टर ही करता है,
आपकी बातों में आकर मेरा तो बहुत नुक्सान हो गया, मेरी तो बुद्धि ही भ्रष्ट हो गई थी।
“रजनी बहन, उस हकीम और उसके चेलों ने जिसे भी दवाई और प्रसाद दिया, वो सब बेहोश हो गये और उन सबके घर में चोरी हो गई है, मेरी भी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी जो मै गांव वालों की बातों में आ गई।”
दोनों पड़ोसन अपनी अक्ल चले जाने पर अफसोस करने लगी।
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
#मुहावरा
अक्ल चले जाना