शादी के एक साल के बाद ही ईश्वर ने मेरी झोली खुशियों से भर दी, एक प्यारे से बेटे की किलकारियों से मेरा घर आंगन चहक उठा। परिस्थितियां थोड़ी कमज़ोर थी, आर्थिक परेशानियां और पारिवारिक जिम्मेदारियां बहुत थी। फिर भी हम दोनों खुशी_ खुशी पूरी लगन और मेहनत से सब कुछ मैनेज कर रहे थे। हम दोनों को भी बेटी की बहुत चाहत थी,
पर परिस्थितियां इजाजत नही दे रही थी, दो बच्चों को ठीक से सुविधा दे भी पाएंगे की नही। उनका लालन_पालन सही ढंग से कर पाएंगे या नही ये चिंता हमेशा बनी रहती थी। सब कुछ अपने दम पर करना था, कही से कोई सपोर्ट नही था।
आखिरकार बेटे के तीन वर्ष के हो जाने पर मैने चांस लेने का निर्णय लिया। बस मन में एक ही आस थी ईश्वर एक प्यारी_ सी बिटिया ही देना। कहते है ईश्वर बच्चों की प्रार्थना जल्दी सुनते है । मेरा बेटा प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करता,,,, भगवानजी, मुझे एक प्यारी _सी गुड़िया देदो । पूरे नौ महीने मेरा नन्हा सा बच्चा पूरे दिल से ईश्वर से प्रार्थना करता रहा।
मेरी खुशी का ठिकाना न रहा जब ईश्वर ने मेरी झोली में परियों की तरह प्यारी एकदम डॉल की तरह वरदान स्वरूपा लक्ष्मी को भेज दिया। नर्स से मेरा पहला प्रश्न यही था, बेटी है, ना ।वो भी हंस पड़ी इतने दर्द में भी तुम्हे बेटी का ही ध्यान है, हा बाबा हा, बधाई हो।
अब मेरा जीवन का एक ही लक्ष्य था, चाहे जितनी मेहनत करनी पड़े अपने बच्चों को अच्छी तालीम देना,और अच्छे संस्कार देना उन्हें सही मायने में एक अच्छा और जिम्मेदार और समझदार नागरिक बनाना।
ये तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर ही रहे थे, मैने भी अपनी नौ महीने की बिटिया के साथ एक प्राइवेट स्कूल ज्वाइन कर लिया, ओनर अच्छी थी बिटिया को आया बाई संभाल लेती, बेटे का एडमिशन भी उसी स्कूल में करवा दिया।
बिटिया ढाई साल की हुई तो बेटा, बेटी दोनों का एडमिशन रीवा की बेस्ट स्कूल में हो गया। मैनेभी रीवा का नामी गिरामी स्कूल सैनिक शिशु निकेतन ज्वाइन
कर लिया। साथ ही साथ मैने अपनी पढ़ाई भी प्राइवेट कंप्लीट की, रेगुलर बी,एड, कंप्लीट किया। सुबह 7से 1बजे तक स्कूल,फिर तीन से सात बजे तक कोचिंग, घर और बच्चे और परिवार सब मैनेज होने लगा। बच्चे इतने समझदार की कभी शिकायत का मौका ही नही दिया
ना बच्चों की कभी कोई जिद, ना किसी चीज़ के लिए मचलना, हालांकि हम दोनों बच्चों का बहुत ध्यान रखते, मैने कभी भी अपने बच्चों से कोई काम नही करवाया टाईम टू टाइम खाना_पीना, सोना , पढ़ना एकदम फिक्स था ।
बच्चे भी बहुत अच्छा रिजल्ट दे रहें थे, बेटे का इंजीनियरिंग में एडमिशन हो गया था, बिटिया का 12 th का फाइनल एग्जाम था, और हम पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा, इनके पापा का बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया।
इनके रिश्तेदारों ने इन्हें नागपूर एडमिट करवा दिया, बच्ची का साल बर्बाद ना हो इसलिए दिलपर पत्थर रख 15दिनों बाद एक्जाम होने के बाद हम नागपूर गए। बेटे का भी लास्ट ईयर था, पर छुट्टीलेनी पड़ी।ये डेढ़ महीने भर्ती रहे। ईश्वर की कृपा से, और इनके विल पावर की बदौलत शीघ्र ही इन्होंने अपना काम संभाल लिया।
बेटे को एम,बी,ए करना था, परिस्थितियां ऐसी नही थी, उसने पूना में जॉब ज्वाइन कर लिया। बिटिया ने बड़े अच्छे रिजल्ट के साथ इंजीनियरिंग कंप्लीट कर ली
बिना कोचिंग के इंजीनियरिंग के साथ कैट भीं क्वालीफाई कर लिया। काफ़ी अच्छे कॉलेज मिल रहे थे,बेटे ने बहुत परेशानियां झेली थी, वो नहीं चाहता था बहन को वो सब झेलना पड़े, अंत में यही डिसाइड हुआ कि चाहे जितना खर्च आए एडमिशन वही करवाएंगे जहां हॉस्टल और सारी फैसिलिटीज हो। बैंक से लोन लेकर नोएडा के जे पी कॉलेज में एडमिशन करवा दिया। बड़ा पक्का मन कर मैं उसे छोड़ आई। बहुत रोती वो,कभी एक पल भी दूर नही रही थी, लौट आने की जिद करती, पक्का मन कर मैं उसे सख्ती से डांटती,
कुछ नही करना है, तो लौट आओ। मेरी बच्ची अपने को संभालने की कोशिश करती। हॉस्टल का माहौल बहुत अच्छा नही था। फर्स्ट ईयर में काफ़ी स्ट्रगल रहा। फिर वो एडजस्ट हो गई। बहुत सिंसियर बच्ची थी टीचर की फेवरेट थी। एम बी ए फाइनल मे कॉलेज में2nd टॉपर रही। जे पी में ही उसका कैंपस सिलेक्शन हो गया ।
फुल टाईम जॉब के साथ, शाम को घर आने के बाद वो बच्चों को ट्यूशन देती, डांस क्लास लेती। अपना घर का सारा काम अपने हाथ से करती।वो बच्ची जिसे दूध का गिलास भी मैं हाथ में पकड़ाती थी,आज कितनी जिम्मेदार हो गई थी, भविष्य की चिंता ने मेरी बच्ची को समय से पहले समझदार बना दिया था। लोन भी पटाना था। दोनो बहन भाई ने मिलकर लोन चुकाया। दोनो बच्चे अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहें थे।
घर का कोई भी फंक्शन हो,भाई के शादी की तैयारी हो, ऐसे फटाफट काम करती की मुझे कुछ देखना ही नही पड़ता।हम लोगो की इतनी चिंता की भाई _बहन मिलकर कुछ न कुछ प्लान करते रहते है। भाई बहन में अच्छी अंडरस्टैंडिंग है। हम भी निश्चिंत है, बच्चे कभी हमें अकेला नही छोड़ेंगे।
शादी की बात चली अच्छे अच्छे रिश्ते आए।एक बच्चा फेसबुक मे कार्यरत था, बिटिया ने मना कर दिया।मुझे कहीं नहीं जाना। यही रहना आप सब के पास।
फिर वो दिन भी आ गया जब मेरी नन्ही सी गुड़िया
दुल्हनियां बनकर ससुराल चली गई। बहुत प्यारे दामाद जी,और प्यार करने वाला ससुराल, मेरी बच्ची को मायके की कमी कभी महसूस नही हुई। दामादजी इतने अच्छे थे की वो हमेशा उसे आगे बढ़ने के लिए बूस्ट करते, काबीले तारीफ़ वो भी है इतनी व्यस्त दिनचर्या के बाद भी पढ़ने का समय निकाल लेती। इसका फायदा उसे मिला पर्सनेलिटी भीं निखरी, जॉब स्विच करने में मदद मिली। इसका सारा क्रेडिट दामादजी को जाता, वो उस से सब करवा लेते। शादी के दो साल बाद उनके जीवन में एक प्यारी सी लक्ष्मी का आगमन हुआ।
लेकिन बच्ची के जन्म के डेढ़दो महीने बाद ही जब वो मेरे पास रीवा आई गुड़िया की तबियत बिगड़ गई, प्लेटलेट्स एकदम कम हो गए , मैं बुरी तरह घबरा गई, लेकिन उस बच्ची ने जिस हिम्मत और समझदारी से अपने बलबूते पर अपनी बच्ची का ईलाज करवाया, तारीफे काबिल है।मैं शायद अकेले ये सब नही कर पाती।
उसकी बिटिया अब तीन साल की हो है। शादी के बाद भी उसके जीवन मे बहुत से उतार चढ़ाव आए। लेकिन बड़ी समझदारी से वो परिवार और काम दोनो संभाल रही है। सुबह 12से रात के 12बजे जॉब से जब वो लौटती है ,तो उसके माथे पर शिकन नही होती, चेहरे पर मुस्कुराहट होती है। दामादजी के हर पसंद का ध्यान रखती है, उनकी पसंदिदा डिशेज चुटकियों में पूरे मन से बनाती है। हर सेलिब्रेशन को यादगार बनाने की पूरी कोशिश करती है, अपनो की भावनाओं का आदर करती है, गलत का विरोध बड़े शालीन तरीके से करती है।
बहुत प्यारा डांस करतीहै,बहुत सुंदर गाती भी है। सिंपल इतनी की मैने कभी मेक अप करते नही देखा।
कभी भी देखो , एकसी प्यारी,_सी डॉल की तरह।
मेरी बेटी मेरी दुनिया,मेरा जहान है, मैने कभी नही चाहा कि मेरे बच्चे बहुत बड़ी पोस्ट पर हो,बस इतनी चाहत थी कि जहां भी हो सब कुछ अच्छे से संभाल ले।
मेरी बिटिया मेरी आशाओं पर खरी उतरी है, मुझे अपनी बच्ची पर गर्व है,और अपनी परवरिश पर नाज।
बेटा खूब तरक्की करो, अपनो से जुड़े रहो,सदा जमीन से जुड़े रहो