मेरी “बहू” नहीं झेलेगी !! – मीनू झा

एक एक करके सारा पुराना समान हटाती जा रही है,पुराना फर्नीचर,पुराने बर्तन,पुराने कपड़े… मुझे तो डर है कहीं एक दिन पुरानी समझ मुझे भी बाहर ना फेंक दें मेरी बहू–सासु मां श्यामावती देवी अपनी सखी को अपनी बहू देवकी के बारे में बता रही थी धीरे धीरे।

घर में जगह बना रही होगी..श्यामा…उसकी भी तो बहू आने वाली है,तो वहां से जो सामान आएंगे उनके लिए भी तो जगह चाहिए होगी

खाक सामान आएंगे…अरे लव मैरिज है लव मैरिज… उसमें भी कोई सामान देगा क्या?? उसपर से परिवार भी कुछ खास नहीं है…तीन बहनें ही हैं और ये सबसे बड़ी है…अब तू ही बता कुछ गुंजाइश है क्या मिलने की??

हाय…इतना सुंदर बच्चा अपना रोहन… मौका देता तो घर के आगे लाइन‌ लग जाती रिश्तों की..पसंद भी किया तो ऐसा बेकार सा परिवार…हे भगवान!!

फिर भी पता नहीं ये देवकी क्यों पगलाई हुई है पूरा घर ठीक करवाने में…रोज पुराने सामान जा रहे हैं और नए सामान आ रहे हैं…सब तो मेरे बेटे की ही पाॅकेट से ना??दोहरी मार पड़ी है घर पर मेरे…

तुम कुछ कहती नहीं..

ना बाबा…कौन मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाले…वैसे भी मेरे समय में मेरी चली…अभी उसकी बहू आने वाली है तो उसी की चलेगी ना…।

संभाल कर निकालो भईया…दीवार में लग जाएगी—पुराना सोफ़ा निकलवा रही देवकी की आवाज आई तो दोनों चुप हो गई और उधर देखने लगी।

खूब जोरों शोरों से तैयारी चल रही है नई बहू के स्वागत की—श्यामावती की सखी ने कहा।

जी चाची जी… कोशिश कर रही हूं –मुस्कुराकर बोली देवकी।



स्टोर रूम पूरी तरह से खाली हो चुका था…बस एक पुरानी सी टीवी बची थी…।

मैडम इसे भी निकालकर रूम साफ कर दूं—कामवाली ने आकर पूछा।

हां निकाल दे रमा…पर बाहर नहीं रखना इसे..मेरे रूम में जो टेबल है ना उसपर रख दें

मैडम जी ये क्या अच्छा लगेगा वहां…इत्ता पुराना टीवी..सब तो हटा ही दिया इसे भी डाल दो ना कबाड़ी में..चलेगा भी नहीं ये तो..।

रमा जितना कहा उतना कर ना तू…अपना दिमाग क्यों लगा रही है

सकपका कर रमा ने वो टीवी देवकी के कमरे के टेबल पर रख दिया।

सारा काम निपटाकर जब देवकी चाय लेकर अपने कमरे में पहुंची तो टीवी को देखकर पहले थोड़ा मुस्कुराई,फिर पल भर को उसकी आंखें नम हो गई और मन सालों पीछे भाग गया..।

औकात से बढ़कर हर चीज दिया था पापा मां ने उसे…उस समय की हर बेस्ट चीज…सबसे छोटी और लाडली बेटी थी वो घर की…तीन बेटियां पहले ब्याहते ब्याहते पिता की कमर टूट चुकी थी…पर देवी के ब्याह में कोई कसर ना रहे उसके लिए उन्होने अपनी सबसे अच्छी जमीन जिसपर वो सेवानिवृत्ति के बाद घर बनाने वाले थे वो बेच कर हर शौक अरमान पूरा किया….।

ससुराल सामान से तो भर गया…पर सबके मन कहां भरने वाले थे…शादी में पापा ने बड़ा वाला ब्लैक एंड व्हाइट टीवी दिया था..सबसे बेस्ट कंपनी का..और ससुराल में पहले से एक छोटा सा टीवी था..जो लाइट जाने पर बैटरी से चलता था..।

सब तो ठीक था पर ,ननद देवर सहित सासु मां को भी उम्मीद थी कि बहू नई नई आई कलर टीवी लेकर आएगी..पर ले आई ब्लैक एंड व्हाइट…फिर क्या था उठते बैठते सोते जागते ताने पड़ने लगे देवकी को…

“हमारे घर ब्लैक एंड व्हाइट टीवी तो देखकर गए ही थे इसके पिता फिर वही देने की क्या जरूरत थी…हमने कुछ मांगा थोड़े ही था… खानापूर्ति करने की क्या जरूरत थी



कौन देखेगा ये फालतू टीवी…बंद ही रहने दो…फलांने की बहू कलर टीवी लेकर आई है…बेचारे बच्चे उसके घर भागते हैं टीवी देखने..बगलवाली का गर्व देखकर मैं तो उससे नजरें भी नहीं मिला पाती….”

देवकी ने शुरू से इस तरह की बातें कभी नहीं सुनी थी पर धीरे धीरे सुनने और बर्दाश्त करने लगी थी…वैसे भी अपने मायके की हालत उससे छुपी नहीं थी तो वहां ये सब बताकर उसे सबको दुखी नहीं करना था…।

ये तानों का सिलसिला जारी ही रहा…तीज में नेग पहुंचाने आए थे खुशी खुशी पापा…

अरे छुट्टी का दिन है पर बच्चे नहीं दिख रहे घर में —ढेर सारे सामान और मिठाई फलों से लदे पापा ने आते ही पूछा…

वो बगल वाले घर में “कलर टीवी” है ना वहीं धारावाहिक देखने गए हैं —देवकी के बोलने से पहले श्यामावती बोल पड़ी।

कलर टीवी पर इतना जोर देकर बोलने और देवकी की सकपकाहट से ही भांप गए पिता कि क्या बात है…समधियाने का लंबा अनुभव था उनके पास…।

अगले ही दिन कलर टीवी आ गई थी…पर…पापा के हाथ की वो रत्न वाली अंगूठी गायब थी…जो उसने उनके हाथों में बचपन से देखा था…दादी कहती थी कि पापा बचपन में बहुत बीमार रहते थे किसी सिद्ध पंडित की सलाह पर जबसे ये अंगूठी उनके हाथ में आई थी वो स्वस्थ रहने लगे थे।

पापा….आपकी वो अंगूठी

अरे…थोड़ी ढीली हो गई थी,पर गिर जाएगी ऐसा नहीं लगा था..



पापा ने घबराने और खोने का नाटक किया..पर कभी झूठ ना बोलने वाले पापा सफल नहीं हो पाए.. लेकिन देवकी के रोने लगने पर पैसों का इंतजाम होते ही बना लेने की बात की थी उन्होंने… लेकिन सारे काम तो होते रहे पर अपने लिए उनके पास ना पैसे हुए ना अंगूठी बनी…।

और ऐसा दुर्भाग्य हुआ कि छह महीने के अंदर अंदर मामूली बीमारी लगी…और अचानक अनंत यात्रा पर निकल गए।

फिर तो उस कलर टीवी को देवकी ने पूरे जीवन कभी नहीं देखा… बल्कि उसे देखकर उसे इतना तेज आक्रोश होता कि उसका बस चलता तो उसे फोड़कर टुकड़े टुकड़े कर डालती…पर बहू थी ना..।

समय के साथ जब नया टीवी आया तो उस टीवी को स्टोर में पहुंचा दिया गया…और आज देवकी ने उसे अपने कमरे में लगा लिया था…।

श्रीमती जी….ये मैं क्या देख रहा हूं… आपकी दुश्मन आपके साथ आपके कमरे में —बाहर से आए पति टीवी देखते ही बोल पड़े।

हूं…आपने सुना है ना निंदक नियरे राखिए…

हां सुना तो है…

उसे मैंने बदल दिया है…” दुश्मन नियरे राखिए अपने टेबल सजाय..देख देख सीख मिले..देवकी बुरी सास ना बनने पाय”

कमाल है श्रीमती जी….मतलब शब्द नहीं मेरे पास आपकी तारीफ के लिए…क्या कहूं…।

 

बस इतना ही कहिए कि मैं अपने उद्देश्य में सफल हो पाऊं ..जो समय और दुख मैंने झेला..उस तरह का दुख अपनी बहू को देने से पहले ये टीवी मुझे मेरे समय की याद दिला दें…।

देवकी ने एक अच्छा सा टेबल क्लॉथ डाल दिया उसके ऊपर और आसपास फूल सजा दिया…ये टीवी उसकी प्रेरणा के लिए है… लोगों के सवाल और जवाब के सिलसिलों के लिए नहीं……।

मीनू झा 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!