तनु… कहां है ओहो, वहां किचन में क्या कर रही है? दो दिनों के लिए मायके आई है, चैन से बैठ ले। आ, मेरे पास बैठ। तब तक बहू गाजर हलवा बना कर यहीं ले आएगी। रागिनी जी ने जोर से आवाज लगाई, अपनी बेटी को ढूंढते हुए। रागिनी जी की आवाज में एक गहरी देखभाल थी, एक माँ का वात्सल्य था, और साथ ही कुछ प्यारी सी चिंता भी। वे चाहती थीं कि उनकी बेटी तनु मायके में कुछ दिन आराम से बिताए, लेकिन यह तो मुमकिन ही नहीं था। तनु ने घर आते ही हमेशा की तरह रसोई में कदम रख लिया था।
तनु की आवाज आई, “माँ, यही तो मैं भी कह रही हूं। दो दिनों के लिए यहां आई हूं, लेकिन भाभी हैं कि हमेशा किचन में ही लगी रहतीं हैं। इसीलिए मैं इनके साथ हलवा बनवा रही हूं। फिर सब साथ में बैठेंगे।” तनु की बात सुनकर रागिनी जी कुछ चौंकीं। उनकी आँखों में एक मीठा सा सवाल था, जैसे वह खुद को और अपनी बेटी को कुछ समझाने की कोशिश कर रही हों।
“ठीक कहा बेटी तूने।” रागिनी जी ने धीरे से कहा। फिर एक हल्की सी मुस्कान उनके चेहरे पर फैल गई। “फिर तो मैं भी वहीं आती हूं, सब साथ मिलकर जल्दी काम खत्म कर पाएंगे, फिर बैठेंगे।”
तनु की माँ रागिनी जी के शब्दों में एक आंतरिक शांति थी, एक समझदारी। उन्होंने महसूस किया कि यह वक्त उनका है, और उनका घर भी अब बदल रहा था। बेटी बड़ी हो गई थी, अब उसे अपने घर और परिवार का हिस्सा बनाने के लिए एक नया दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत थी।
“किचन में बैठकर हलवा बनाना और फिर सब साथ बैठकर खाना। क्या बात है, माँजी।” बहू की आवाज आई, और वह रसोई में आई।
“हां, मांजी, हलवा भी खत्म कर पाएंगे, और सब मिलकर बैठेंगे।” बहू ने भी मुस्कुराते हुए कहा। तीनों की हंसी ने एक अनजानी सी खुशी का अहसास दिलाया। इस हंसी के बीच, रागिनी जी को यह एहसास हुआ कि बहू और बेटी दोनों ही अब एक ही तरह से घर का हिस्सा बन चुकी हैं। यह उनका घर था, और इन रिश्तों की गर्मी और प्यार ने इस घर को संजीवनी दी थी।
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रागिनी जी अब तक सोच रही थीं कि क्या वह सच में अपनी बहू को अपना समझ पाई हैं? क्या उनकी बहू को वह सब कुछ दे पाई हैं जो एक माँ अपनी बेटी को देती है? और क्या उनके लिए बेटी और बहू के रिश्ते में कोई फर्क था? यह सवाल उनके मन में आता ही था, लेकिन अब, इस छोटी सी घटना ने उनका मन हल्का कर दिया था।
किचन में हलवा बनाने के दौरान एक अजीब सी समझदारी आ गई थी। रागिनी जी ने देखा कि बहू भी अब वही किचन का काम करती थी, जो उनकी अपनी बेटी करती थी। उनके लिए अब यह फर्क नहीं था कि बहू कौन है और बेटी कौन। दोनों ही एक जैसे ही घर में एक समान महत्व रखती थीं। वह चाहती थीं कि बहू भी बेटी की तरह अपनी जिम्मेदारियों को निभाए, और बेटी भी ससुराल में अपने कर्तव्यों को निभाए। लेकिन इन सब के बावजूद, उनका दिल एक माँ का दिल था।
रागिनी जी ने जब अपनी बहू को गाजर हलवा बनवाने में मदद करते देखा, तो उनके मन में एक सुखद अहसास था। उन्होंने सोचा, “यह घर अब पूरी तरह से बहू और बेटी का घर बन गया है। कोई भी रिश्ते का अंतर अब खड़ा नहीं रहा।” रागिनी जी ने महसूस किया कि बेटे और बहू के रिश्ते में अब कोई फर्क नहीं था। जब तक रिश्तों में प्यार और समझ होती है, तब तक कोई भी रिश्ता मजबूत होता है।
तनु और बहू की बातचीत में एक गहरी मित्रता थी। दोनों ने रसोई में एक साथ काम किया और हलवा बनाने में समय बिताया। रागिनी जी की यह इच्छा थी कि वह अपनी बहू और बेटी दोनों के साथ इस वक्त का आनंद लें। यह एक छोटी सी बात थी, लेकिन इसने रिश्तों के भीतर गहरे बदलाव को महसूस कराया।
जैसे ही हलवा तैयार हुआ, तीनों ने उसे एक साथ मिलकर खाया। वह न केवल स्वादिष्ट था, बल्कि इस हलवे में उनके रिश्तों का स्वाद भी था। घर के हर कोने में यह समझदारी और एकता का अहसास हो रहा था। रागिनी जी ने यह महसूस किया कि घर की खुशहाली तब होती है जब माँ, बहू और बेटी सभी एक-दूसरे के साथ मिलकर हर काम करते हैं और अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।
“माँ, भाभी, यह हलवा बहुत अच्छा बना है,” तनु ने कहते हुए अपनी बहू की तारीफ की। “अब हम तीनों साथ बैठकर इस दिन को और भी खास बना सकते हैं।”
रागिनी जी ने मुस्कराते हुए कहा, “अब जब आप दोनों साथ हो, तो मैं क्या कह सकती हूं। मेरे दिल में तो बस यही है कि घर में हमेशा ऐसे ही प्यार और शांति बनी रहे।”
तीनों के चेहरों पर हंसी और खुशी थी। रागिनी जी ने फिर एक गहरी सांस ली, और उन्हें यह अहसास हुआ कि उनका घर अब सच में एक खुशहाल घर बन चुका है। यहाँ रिश्ते अब प्यार और समझदारी से बनते थे, और यही सबसे महत्वपूर्ण था।
कुछ समय बाद, रागिनी जी ने अपनी बेटी से कहा, “बिलकुल, बेटी, बहू को भी अपनी बेटी की तरह प्यार देना चाहिए। जब तक हम एक-दूसरे के साथ हैं, तब तक कोई भी मुश्किल हमें तोड़ नहीं सकती।”
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तनु ने हामी भरते हुए कहा, “हां, माँ। अब मैं समझ रही हूँ कि घर में कभी भी कोई फर्क नहीं आना चाहिए। अगर रिश्ते सच्चे हैं, तो कोई भी महिला बेटी, बहू, या पत्नी के रूप में एक ही भूमिका में हो सकती है।”
दोस्तों यह कहानी सिर्फ एक सास, बहू और बेटी के रिश्ते की नहीं थी, बल्कि यह थी रिश्तों में प्यार, समर्पण, और एकता की कहानी। रागिनी जी ने अपनी बहू को अपने घर का हिस्सा बनाने के साथ-साथ उसे अपनी बेटी जैसा प्यार दिया। और इसी प्यार ने उनके घर को सच्ची खुशहाली दी।
तीनों के चेहरों पर मुस्कान थी, और घर का माहौल भी एक नया रूप ले चुका था। आज, रागिनी जी का घर एक आदर्श घर बन चुका था, जहाँ हर रिश्ते में समझ, प्यार और समर्पण था।
मूल रचना
लतिका श्रीवास्तव