चिल्ल माॅम…आप दूसरों की बातें सुनते ही क्यों हो..कौन क्या,कब कैसे इनमें दिमाग लगाने की क्या जरूरत है..आप यहां मेरे लिए आए हो तो सिर्फ मेरे बारे में सोचो ना, मुझे अच्छा लग रहा है आपको अच्छा लग रहा है और क्या चाहिए?–रेयांश अपनी मां केतकी को समझा रहा था.
वही बात तो मैं भी कहता हूं तुम्हारी मम्मी से बेटा…हम यहां रेयांश के लिए आए हैं वो खुश हैं हम उसे देखकर खुश हैं दुनिया क्या सोचती बोलती है क्या फर्क पड़ता है–पिता दीपक ने बेटे का समर्थन किया।
बात बोलने की नहीं है..पीठ पीछे तो सब सबकी शिकायतें करते हैं पर बात जब घूम-फिरकर मुझ तक आ जाती है तो सोच में पड़ जाती हूं–केतकी बोली
कुछ भी सोचने की जरूरत नहीं है.. मैं हूं ना..चलो मैं वाॅक के लिए निकल रहा हूं मम्मा.. अच्छा आज आप मूंग दाल के परांठे और बंदगोभी का रायता बना देना डिनर में.. बहुत मन कर रहा है खाने का–रेयांश ने शू लेसेज बांधते हुए कहा।
मूंग दाल उबलने चढ़ाकर,फ्रिज से बंदगोभी निकाल केतकी काटने बैठी और पुरानी बातें याद करने लगी…दो बेटियों के बाद बड़ी मन्नतों से रेयांश आया था उनके जीवन में.. पढ़ने लिखने में कुशाग्र बुद्धि रेयांश बहुत संस्कारी और सीधा सादा था..और मां से हद से ज्यादा प्रेम करने वाला भी… इंजीनियरिंग के चार साल उसने बहुत मुश्किल से काटे केतकी के बिना..दिन में तीन बार बातें करता..अब जब एक बहुत बड़ी सरकारी कंपनी में उसकी नौकरी लगी तो क्वार्टर मिलते ही केतकी और दीपक को अपने पास ले आया..पर लोगों की मानसिकता यही है कि लड़का लायक हुआ कि लोग शादी की सलाह देनी शुरू कर देते हैं..रेयांश ने कहा दिया था कि अभी चार साल तो सोचना भी नहीं है…।
अभी तो बस आप लोग मेरे पास रहो मुझे पढ़ते देखा अब नौकरी करते देखो और अच्छा अच्छा खाना खिलाते रहो मुझे..–खाने का हद से ज्यादा शौकीन रेयांश कहता।
पर…अगल बगल, परिवार के लोग और आगे पीछे जो जहां मिलता यही कहता–अब जल्दी से रेयांश की शादी कर दो ताकि उसकी देखभाल करने वाला कोई हो जाए..भला आप कितने दिनों तक रह सकते हो??
सुनकर केतकी निराश हो जाती उसे भी बड़ा अरमान था कि नौकरी लगने के बाद बेटे के पास मन भर रहेगी फिर उसके बाद शादी ब्याह के चक्कर..पर लोगों की सुन सुनकर उसे भी लगने लगा था कहीं मां बाप से बहुत ज्यादा प्रेम होना तो शादी के लिए उसकी ना कहने की वजह तो नहीं,अगर ऐसा है तो ये तो सच में गलत है।
रायते को फ्रिज और मूंग दाल के परांठों को कैसरोल में रख केतकी ने सोचा थोड़ा नीचे टहल आए तो थोड़ा मन हल्का सा लगे…।
हैलो आंटीजी… नीचे उतरते ही रेयांश के कलीग की पत्नी जिसकी साल भर पहले ही शादी हुई थी, टहल रही थी उसी ने कहा।
हैलो बेटे…कैसी हो??
बढ़िया आंटी..और बताओ आंटी..रेयांश भैया की शादी कब करोगे?
जब वो कह दे..वही नहीं करना चाहता तो हम क्या कर सकते हैं..जोर जबरदस्ती वाला समय तो रहा नहीं, हमारे लिए तो उसकी मर्ज़ी ही सबसे पहली और आखिरी शर्त है–केतकी ने पहले से जवाब सोच रखा था।
कितने अच्छे पैरेंट्स है आप..और एक प्रदीप के मम्मी पापा हैं..उसकी खुशी का तो बिल्कुल भी ख्याल नहीं..एनीवर्सरी पर प्रदीप और मैंने मिलकर फाॅरेन ट्रिप प्लान किया था.. उन्होंने कहा दिया अगले बार चले जाना ये पहली सालगिरह है इसमें पूजा पाठ और फैमिली गेट टूगेदर करना है उन्हें..ये भी कोई बात हुई क्या?? बहुत डोमिनेटिंग है प्रदीप के पैरेंट्स आंटी… भगवान ऐसे सास ससुर किसी को ना दे–हमेशा की तरह क्षिप्रा सास ससुर पुराण में लगी हुई थी।
केतकी उससे बात करके आगे निकली,उन्ही सोचों में पड़ी थी कि अपने पेट डाॅग “ब्राउनी” को टहलाती हुई रेयांश के एक सीनियर की वाइफ नीला दिख गई..।
आज इतनी देर से?? तुम तो शाम को ही वाॅक करवाती हो ना ब्राउनी को–केतकी पूछ बैठी
अरे आंटी…सास ससुर आने वाले हैं एक हफ्ते से उन्हीं के इंतजाम में लगी हूं..हमारा कुक चार आदमी का खाना बनाने को तैयार नहीं था तो दूसरा कुक ढूंढना पड़ा.. कामवाली बाई को भी एक्स्ट्रा पैसे पकड़ाने पड़ेंगे..उनकी पसंद के खाने की चीजों का इंतजाम और भी इतनी सारी चीज़ें रहती है ना कि क्या बताऊं आपको आंटी–वो तो पूरी तरह फट पड़ी।
हां भई…उसपर से तुम्हारे इस ब्राउनी का काम…समझ सकती हूं–केतकी ने लगे हाथों व्यंग्य कसा।
अरे आंटी.. यही बोलकर तो लड़ रहे थे हस्बैंड कल कि दिन रात इस कुत्ते की सेवा में लगी रहती हो क्योंकि ये स्टेटस सिंबल है और मेरे मां बाप के नाम से तुम्हारा सर भारी होता है…अब आप ही बताइए आंटी..मेरा बोझ ना बढ़े इसलिए तो मैंने इसके सारे पपीज़ को पेट हाउस पहुंचा दिया..इतना बड़ा सैक्रीफाइज नहीं दिखता उन्हें..और ये छोटा सा जीव हमेशा आंखों में खटकता रहता है
जैसे उसके मां बाप तुम्हारी आंखों में–मन ही मन बोल पड़ी केतकी।
बहुत होशियार है रेयांश…सबकी सुनकर देखकर उसे एहसास हो चला होगा कि शादी के बाद जीवन इतना भी आसान नहीं होता है,शायद इसीलिए शादी के नाम से ही घबरा उठता है वो..अपनी और अपने मम्मा पापा की खुशी के नाम वो दो चार साल करना चाहता है…अभी तक उसके शादी से भागने को माता पिता के प्रति प्यार ही समझी थी…पर यहां तो डर का भी आधिपत्य दिख रहा है।
पर उसे समझाना होगा…दिखाना होगा कि सारी लड़कियां एक सी नहीं होती…छोटी मोटी परेशानी कहां नहीं होती..पर शादी के बाद आने वाली मुश्किलों का सोच शादी ही ना करना कैसी समझदारी है…वो समझाएगी रेयांश को..
दुनिया क्षिप्रा और नीला और ऐसी ही लड़कियों तक थोड़े ही सिमटी… बल्कि बहुत सारी लड़कियां समझदार और सुलझी हुई होती हैं, परिवार को जोड़ना रिश्तों को निभाना आता है उनको..हर इंसान का स्वभाव उसके संस्कारों पर निर्भर करता है…और संस्कार घर परिवार माता पिता से आते हैं… बेटियां तो निभा रही हैं ना अपने ससुराल में… क्योंकि उसने उन्हें अच्छे संस्कार दिये है।
जाकर कहेगी रेयांश से–
शादी करले बेटा..लड़की बिल्कुल अपने जैसी ढूंढकर लाऊंगी तेरे लिए…वैसे भी तूने समय तो दे ही रखा है ना साल दो साल में जांच परख कर तू भी तसल्ली कर लेना,तब करना शादी..वैसे तो तेरी मां ही मास्टर पीस है अपने जैसी लाने के लिए उसे दिन में भी दीया जलाकर निकलना होगा…है कि नहीं?
सोचते सोचते खुद में मुस्कुरा पड़ी केतकी…।
#संस्कार
मीनू झा